बाहर से मस्तमौला मिजाज़ दिखने वाले अभिनव असल में भाषाओं के धनी हैं और उनके अध्ययन का दायरा असीमित है. अपने पूरे कार्यकाल में अभिनव को उनकी बेबाकी, ईमानदारी और हिम्मत के लिये जाना जाता है और वे एक लोकप्रिय अफ़सर हैं.
ऑक्सफ़ोर्ड में उम्बेर्तो एको और स्टीफ़न हॉकिंग जैसे विद्वानों की संगत पा चुके अभिनव अपनी व्यस्त दिनचर्या में से समय निकाल कर यदा-कदा इन्डियन एक्सप्रेस के लिये भी लिखते हैं. छठे वेतन आयोग की सिफ़ारिशों के आने के बाद उन्होंने मार्च और अप्रैल माह में इन सिफ़ारिशों से अपनी अस्वीकृति जताते हुए बहुत बेलौस टिप्पणियां कीं और आईएएस और आईपीएस काडरों को मिलने वाली सुविधाओं के मध्य भीषण विसंगतियों पर पाठकों का ध्यान खींचते हुए भारतीय अफ़सरशाही के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को सामने रखा.
पुलिस की कार्यशैली के बिल्कुल अनछुए आयामों पर अभिनव की कलम लगातार चलती रही है और वे हमेशा सबसे ग़रीब, सबसे ज़्यादा उपेक्षित और सबसे ज़्यादा गाली खाने वाले मामूली सिपाही के पक्ष में खड़े नज़र आते रहे हैं. इस वजह से मैं उनके लेखन का प्रशंसक हूं. वेतन आयोग वाले उनके आलेख में जिस तरह उन्होंने हमारे सड़े शासनतन्त्र को उघाड़ कर रख दिया था, उसका परिणाम आज देखने को मिला.
आज के इन्डियन एक्सप्रेस में मुखपन्ने पर लगी खबर के मुताबिक केन्द्र सरकार के आला अफ़सरान इस बात से बुरी तरह बौखलाए हुए हैं और उन्होंने बाकायदा इस बात की शिकायत राज्य सरकार तक पहुंचा दी है. भारत सरकार के केन्द्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग द्वारा जारी नोटिसनुमा चिठ्ठी में पहले तो अभिनव कुमार के दो लेखों का ज़िक्र है. उसके बाद एक पैराग्राफ़ में लेखों का पोस्टमॉर्टम करते हुए लिखा गया है:
"The writer has explicitly stated that the nation is presided over by a triad of politicians, businessman and bureaucrat kleptocracy. Kleptocracy is defined as a government or state in which those in power exploit natural resources and steal; rule by a thief or thieves. The term kleptocracy is used for high level corruption by senior officials. Therefore, the writer has implied that the nation is ruled by an evil triad of politicians bureaucrats and politicians and their rule is a rule of thieves. He has also stated that the politicians and the businessmen are even now shaping the rules of the game in a manner suited to their unending greed and that the IAS officers are helping them in this nefarious purpose. He has further made serious accusations by stating that the IAS is concerned only with ensuring its own primacy even at the cost of the national interest. "
यानी लेखक ने साफ़ साफ़ शब्दों में बताया है कि देश का नियन्त्रण राजनेताओं, व्यापारियों और चोट्टी अफ़सरशाही के त्रिकोण के पास है. उसके बाद 'Kleptocracy' का मायने भी बताती है यह चिठ्ठी. 'Kleptocracy' माने चोरों और ठगों का राज. 'Kleptocracy' शब्द का इस्तेमाल वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा उच्च स्तरीय भ्रष्टाचार के संदर्भ में इस्तेमाल किया जाता है वगैरह, वगैरह ...
इस लेख की कुछेक और तफ़सीलें मुहैय्या कराने के बाद यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि अभिनव कुमार ने किन किन लोगों पर लांछन लगाने का दुस्साहस किया है. ज़रा एक बानगी देखिये:
१. छठे वेतन आयोग के सभी मेम्बरान
२. कैबिनेट सचिव
३. गृह सचिव
४. रक्षा सचिव
५. व्यय सचिव
६. सचिव (कार्मिक व प्रशिक्षण)
७. सचिव (पेन्शन)
८. सचिव (डाक)
९. सचिव (विज्ञान व तकनीकी)
१०. रेलवे बोर्ड
११. डेपुटी कम्ट्रोलर एन्ड ऑडिटर जनरल
१२. सचिव (सुरक्षा)
इन महानुभावों के नाम पढ़ते-पढ़ते यदि अभिनव कुमार आपको भारतीय दण्ड संहिता की सारी धाराओं के तहत बहुत गम्भीर अपराध कर चुके लगने लगे हों तो कोई संदेह नहीं होना चाहिये. इस के बाद की चिठ्ठी बताती है कि अभिनव ने किन किन धाराओं का उल्लंघन किया है.
यह पत्र मुझे कहीं से हाथ लग गया था और इसे पढ़ते हुए मुझे 'अन्धेर नगरी' सरीखे किसी प्रहसन को पढ़ने की अनुभूति हुई. समूचे भारत की छोड़िये, अकेले उत्तराखण्ड में पिछले कुछ सालों में मुझे कम से कम चार ऐसे प्रकरण ज्ञात हैं जिनमें वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों ने भ्रष्टाचार की नई गाथाएं रचीं और वे साफ़-साफ़ छूट गये और हमारी सरकारों द्वारा बड़े से बड़े ओहदों पर प्रतिष्ठित किये गये.
जब अभिनव कुमार से एक्सप्रेस के संवाददाता ने इस बाबत पूछा तो उनका जवाब था: "एक आईपीएस अफ़सर के नाते मैं यह मानता हूं कि यदि मैं पुलिस के पेशे से ताल्लुक रखने वाले एक संकटपूर्ण मुद्दे पर सार्वजनिक बहस से बचता , तो अपने पेशे से न्याय नहीं कर पाता. और यदि भारत की जनता की आशाओं पर खरा न उतर पाने के लिये आईएएस और आईपीएस की निन्दा करना विक्टोरियाई ज़माने सिविल सर्विस कोड का उल्लंघन है तो मैं उतना ही अपराधी हूं जितना उपमन्यु चटर्जी हैं, जो एक कार्यरत आईएएस हैं और जिन्होंने अपने उपन्यासों में इसी तरह की निन्दा की है."
अभिनव कुमार ने बस इतना करना था कि चुपचाप बैठे रहते या अध्ययन करने सरकारी खर्चे पर ऑक्सफ़ोर्ड चले जाते. शायद आला दर्ज़े के अफ़सरों को इसमें कोई उज्र न होता. या वे नित लूटे जा रहे उत्तराखण्ड राज्य में दस पांच प्लॉट हथिया लेते. वरिष्ठ अधिकारियों को 'ब्लू लेबेल' की पार्टियां देना भी इस तरह की सेवाओं में मुफ़ीद माना जाता रहा है.
मगर अभिनव को सच लिखना था. सो उन्होंने लिखा.
हो सकता है उन्हें सस्पेंड कर दिया जाए, हो सकता है किसी पनिशमेन्ट पोस्टिंग पर भेज दिया जाय. कम पढ़े लिखे अफ़सरों के पर कतरने को सरकारें यही किया करती हैं ताकि 'त्रिकोण' सलामत बचा रहे. लेकिन अभिनव दुम हिलाने और रेंगने वाले उस काट और धज के अफ़सर नहीं हैं, जिनकी बड़े लालफ़ीताशाहों को आदत पड़ी रहती है. वे एक हिम्मती और समझदार व्यक्ति को अपनी खीझ और कुंठा का निशाना भर बना रहे हैं.
जो भी हो, हमें नाज़ है इस अधिकारी पर! बस. और हम उसके साथ हैं.