
मुकदमे के विराट और हताशाभरे शून्य में काफ्का की मुलाकात दो लोगों से होती है – वकील हुल्ड और चित्रकार तितोरेली – जो उसे मुक्ति के दो परस्पर विरोधाभासी विकल्प बतलाते हैं। वकील हुल्ड उस अंधेरे में रहता है जिसे ईश्वर ने दुनिया के ऊपर फैलाया हुआ है।उसका घर अंधेरा है जहां उसकी नर्स मोमबत्ती जलाकर रोशनी करती है। इसी अंधेरे कमरे में हुल्ड लेटा रहता है : बिना हजामत बनाए। लेकिन इस अंधेरे में भी वह जोसेफ के को बताता है कि मुकदमे से बच निकल आने के लिए उसे परमात्मा का रास्ता चुनना होगा।
हुल्ड के पैरों पर लेनी नाम की नर्स नौकरानी रहती है जो एक पवित्र वेश्या का चरित्र निभाती है। ऐसा नहीं कि लेनी उस सलेटी शहर के झोपड़पट्टों में रहनेवाले हर आदमी के लिए वेश्या बन जाती है। उसकी वासना को सिर्फ वे लोग भड़का पाते हैं जिन पर न्यायालय ने कोई आरोप लगा रखे हों और जिन के भीतर आपराधिक मुकदमे की कार्रवाई ने एक अजीब सा सौन्दर्य भर दिया हो। के द्वारा भोगे जाने से पहले वह उसे अपने दांए हाथ की दो उंगलियों को जोड़नेवाली एक मांसदार झिल्ली दिखाती है। लेनी एक ऐसा आकर्षण है जिसकी तनिक बाहर उभरी काली आंखें¸ जर्द गाल¸ गोल माथा¸ लम्बा सफेद एप्रन¸ और बालसुलभ किन्तु अश्लील सम्मोहन कानून द्वारा चुने गए अपराधियों को अपने से बांधे रखता है। वह उन्हें उबकाईभरी एन्द्रिकता और भावुक अपनेपन का वह मिश्रण परोसती है जो काफ्का की स्त्रियों की विशेषता है। वह उन्हें चूमती है¸ दुलराती है¸ उनका ख्याल रखती है¸ उन्हें सहानुभूति देती है¸ उनका हौसला बढ़ाती है¸ उन्हें अपमानित करती है और उन्हें लगातार नीचे गिराती जाती है। और अगर हम उस पर यकीन करें तो वह उनके लिए अपना बलिदान भी कर सकती है ठीक जिस तरह उनकी मुक्ति के नाम पर वकील हुल्ड आत्मदाह कर लेता है।
रोबिन्सन और देलामार्चे के रूप में काफ्का ने पतन की उस रंगीनी को चित्रित किया है जो यथार्थ के केन्द्र में है। ब्लोक नाम के एक आरोपी व्यापारी के रूप में पतन हमें पवित्रता के पास जाने की अनुमति देने वला रास्ता बन जाता है। पांच सालों से चल रहे मुकदमे को ब्लोक सीधे सीधे स्वीकार कर लेता है। वह अपना घर छोड़कर वकील हुल्ड के पास रहने चला आता है और हर समय उस पवित्र किताब को पढ़ता रहता है जो उसे हुल्ड ने दी है। वह हर समय एक ही पन्ना पढ़ता रहता है और लगातार प्रार्थनारत रहता है वकील नाम के ईश्वर द्वारा बुलाए जाने का इन्तजार करता हुआ।
जब भी वकील उसे बुलाता है – हमें नहीं पता कब – क्योंकि यह वकील के मूड पर निर्भर करता है और बुलावे की घंटी रात को भी बज सकती है¸ ब्लोक अपने हाथ पीछे बांधे बहुत हौले से आगे बढ़ता है – अपने पीछे दरवाजा खुला छोड़ जाता हुआ। जब भी वह वकील की आवाज सुनता है वह लड़खड़ा जाता है मानो किसी ने उसकी छाती पर वार किया हो। वह ठहर कर अपने हाथ हवा में उठाकर दोहरा हो जाता है और बच भागने को तैयार। वकील बोलता जाता है और ब्लोक उसकी आंखों में देख पाने की हिम्मत नहीं कर पाता। उसकी निगाह किसी कोने पर ठहर जाती है जैसे कि उसके भीतर हुल्ड की गुप्त गरिमा का सामना करने की ताकत न हो। वह कांपता हुआ घुटनों पर गिर जाता है¸ भगवान की तरह हुल्ड का आहवान करता है¸ चारों हाथ पैरों पर घिसटता हुआ उस बिस्तर की तरफ बढ़ता है जहां हुल्ड लेटा होता है। वह सावधानी से उसकी पंखों वाली रजाई को सहलाता है और उसके बूढ़े हाथ को तीन बार चूमता है। फिर वह सिर झुका कर उसकी आवाज का इन्तजार करने लगता है। वह अपमान और पतन की निकृष्टतम गहराइयों में पहुंच चुका है: उसकी बुद्धिमत्ता और संवेदना उसके दिमाग में कुन्द पड़ चुके हैं। ब्रूनेल्दा की बालकनी पर रोबिन्सन की भांति नह एक कुत्ता बन चुका है: हमें आश्चर्य नहीं होगा अगर वह बिस्तर के नीचे घुस कर वहां से भौंकने लगे। लेकिन अपमान ही पर्याप्त नहीं है। हुल्ड और लेनी की मांगें और भी हैं। लेनी¸ उसे और जोसेफ के को और बाकी सारे आरोपियों को अपना बिस्तर प्रस्तुत करती है ताकि वे सारे अपना अपराध स्वीकार करें और पश्चात्ताप करें या कम से कम ऐसा करने का दिखावा करें। अपमान और पतन की इस प्रक्रिया के संपूर्ण हो चुकने के बाद ही वकील हुल्ड उनसे वादा करता है कि एक दिन न्यायालय उन्हें क्षमा कर देगा और वे सूरज की रोशनी के नीचे होंगे।
अगर हुल्ड रात के दिल में रहता है तो तितोरेली का निवास नर्क में है। हम शहर के उस गंदगी भरे हिस्से से पहले ही परिचित हो चुके हैं। इस बार हम लकड़ी के छोटे और क्षुद्र कमरे में प्रवेश करते हैं जो पोर्ट्रेटों और लैंडस्केपों से भरा हुआ है। जहां की हवा न्यायालय के गलियारों की हवा की तरह प्रदूषित और दमघोंटू है। अपनी नाइटशर्ट और कैनवस की चौड़ी पतलून पहने नंगे पांव तितोरेली जोसेफ के से बहुत देर तक बातें करता रहता है। एक तरफ तो वह न्यायालय की कुलीनता का हिस्सा है क्योंकि न्यायालय के लिए तमाम तरह के चित्र बनाने का काम उसे अपने पिता से उत्तराधिकार में मिला होता है। लेकिन दूसरी तरफ उसके पोर्ट्रेटों और लैंडस्केपों में इस कदर अनगढ़पन है कि वे हमें आधुनिक विश्व में इस कदर पतित हो चुकी एक पवित्र फॉर्म दिखाने लगते हैं। उसके भीतर हुल्ड की सी गरिमा नहीं है। सीढ़ियों पर दिखाई देने वाली लड़कियों से उसके संबंध बेहद अश्लील तरह के हैं और वे लड़कियां बात बात पर उसके कमरे में झांका करती हैं। जो उसे जानते हैं वे उसके साथ किसी भिखारी और झूठे की तरह व्यवहार करते हैं। हमें¸ जिन्होंने उसके माध्यम से न्यायालय के बाबत एक महत्वपूर्ण सूचना पाई है¸ यह अहसास होता है कि वह आधुनिक संसार में यूलिसिस जैसे हजारों चालबाजों में से एक है। उसका सबसे नजदीकी संबंधी गुइटे का मैफिस्टोफिलीज़ है जिससे उसने अपनी तीक्ष्ण बुद्धि पाई है। मैफिस्टोफिलीज़ की तरह वह हमें कभी दगा नहीं देता हालांकि वह झूठा है और उस पर सत्य की आत्मा उसी तरह पसरी रहती है जैसा कर पाने में चालबाजों को महारत होती है। काफ्का के संसार में स्वर्ग को अपने और धरती के बीच माध्यम के रूप में इसी तरह के वंचित और विडम्बनापूर्ण चरित्रों को छांटने में आनन्द आता है।
न्यायालय का ब्रहमांड बेहद अजीब है। तितोरेली को न्यायालय द्वारा धार्मिक कलाकार और विश्वासपात्र के तौर पर रोजगार दिया गया है : इस कारण वह पवित्र संसार का हिस्सा है। लेकिन उसने पवित्र संसार से पीठ मोड़ ली है और वह उसके भीतर इस तरह रहता है मानो वह संसार पवित्र हो ही नहीं। विडंबनापूर्ण शालीनता के साथ वह घोषणा करता है कि उसे न तो न्यायालय की संरचना में कोई दिलचस्पी है न उच्चतम न्यायाधीश में। उसके लिए हुल्ड की मान्यताओं का कोई मतलब नहीं : उसके संसार में संपूर्ण त्याग संभव नहीं। वह मोक्ष या उसकी किसी भी उम्मीद को छोड़ चुका है। पश्चात्ताप¸ अपराध का स्वीकार या पवित्र वेश्यावृत्ति उसके लिए फालतू चीजें हैं। अपने दमघोंटू कमरे में वह जोसेफ के को बतलाता है कि वह चीजों के आगे तक टाले जाने भर की उम्मीद कर सकता है। इस तरह सारा अस्तित्व मुकदमों¸ पेशियों और टाले गए फैसलों की श्रृंखला बन कर रह जाता है। इस अनन्त हताशा में हमें बिना मुक्ति और उम्मीद के लगातार रहना होता है। तितोरेली द्वारा दिया गया प्रस्ताव असल में काफ्का के आधुनिक संसार की परिकल्पना है : ऊब और दोहराव की वह दोयम जिन्दगी जिसे जोसेफ के भली भांति पहचानता है और प्यार करता है जब तक कि उस एक सुबह उसके “बिना कुछ भी गलत किए” पहरेदार उसके कमरे में घुस आते हैं।
जोसेफ के बदल चुका है। बेनाम अपराध और मुकदमे की यातना ने उसे खुद से ऊपर उठा दिया है। वह समझ लेता है कि हुल्ड और तितोरेली दोनों के बताए रास्तों से रिहाई मिलना असंभव है और हताश साहस के साथ वह इन दोनों रास्तों को छोड़ देता है। अपनी सारी इच्छा के साथ अपने भीतर विस्मृत कर दी गई कामनाओं को खोजता है और प्रकाश का स्वप्न देखता है।
‘द ट्रायल’ लिखे जाने के एक अबूझ क्षण में काफ्का ने इस बदल गए नायक को बचाने का विचार किया था। इस का निशान हमें स्वप्नों के दो टुकड़ों में मिलता है जिनका वाल्टर साकेल ने बहुत गहन अध्ययन किया है। पहले में जोसेफ के का संपूर्ण रूपान्तरण होता है। तितोरेली उसे अपने गले लगाकर अपनी तरफ खींचता है। न्याय के भवन में पहुंचने पर वे सीढ़ियों पर दौड़ कर चढ़ना शुरू कर देते हैं¸ पहो वे ऊपर की तरफ जाते हैं फिर बारी बारी ऊपर और नीचे। ऐसा वे बिना मेहनत के करते हैं – पानी में हिचकोले खाती किसी हल्की नाव की तरह। ठीक इसी क्षण जोसेफ के अपने पैरों पर निगाह डालता है और उसका कायान्तरण शुरू हो जाता है। जो रोशनी अब तक पीछे से आ रही थी अचानक किसी विस्फोट की तरह सामने से आने लगती है। के उसे देखता है और उस पर विचार करने लगता है। क्या भीषण परिवर्तन है? तब तक जोसेफ के ने सोचा था कि न्याय बहुत भारी बोझे जैसा होता है लेकिन अब उसकी समझ में आने लगता है कि न्यायरूपी ईश्वर असल में रोशनी की तरह हल्का होता है और उसमें दूसरों को भी अलौकिक तरीके से हल्का बना देने का गुण होता है।
दूसरे स्वप्न में जोसेफ के एक कब्रिस्तान में टहल रहा है। बेहद शानदार दिन है : चारों तरफ का वातावरण बहुत खुशनुमा है और वह करीब करीब तैरता सा चल रहा है जैसा कि सपनों में अमूमन होता है। पत्थर वाली एक कब्र पर उसका ध्यान जाता है। एक कलाकार अपनी पेन्सिल से पत्थर के ऊपरी हिस्से में कुछ लिखना शुरू करता है। वह सुन्दर सुनहरे शब्दों में लिख रहा है। “यहां लेटा है …” वह इन तीन शब्दों को लिखने के बाद अचानक पलट कर जोसेफ के को देखता है। अब वह काम नहीं कर पाता और उसे शर्म आने लगती है। वह दुबारा से जोसेफ को देखने लगता है। अब तक की सारी खुशनुमा चीजें गायब हो जातi हैं। चित्रकार की शर्म देखकर जोसेफ हताश हो जाता है और अपने चेहरे पर हाथ रख कर रोने लगता है। वह बहुत देर तक सुबकता रहता है। उसके शान्त होने पर कलाकार दुबारा बेमन से काम शुरू करता हे पर इस दफा उसके शब्द कम सुन्दर बनते हैं। जैसे ही वह एक ‘जे’ लिखना खत्म करता है जोसेफ उसके बेमन से काम करने को समझ जाता है। वह कब्र दरअसल उसी के लिए बनाई जा रही है। अब वह अपनी उंगलियों से मिट्टी उलीचने लगता है और गड्ढे में धंस जाता है। जहां नीचे उसे अभेद्य गंभीरता का आश्रय मिलता है ऊपर पत्थर पर उसका नाम तैरता रहता है। इस क्षण वह जाग जाता है – खुशी से भरा हुआ। इन शानदार पन्नों में हमें 'द जजमेन्ट' और 'द मेटामॉरफॉसिस के अन्त की याद आती है हालांकि यहां अनुभव किया गया आनन्द कहीं अधिक है। अपने स्वप्न में जोसेफ के समझ जाता है कि अब उसका जीवन और उसकी देह बाधा बन चुके हैं; इसलिए बिना किसी तरह का दुख या प्रतिवाद किए वह अपनी कब्र में धंसकर अपनी बलि दे देता है ताकि उसकी मौत संसार के विजयी संगीत को फूट पड़ने में मदद दे। वह खुश होकर मरता है जबकि कला का तिलिस्म सुनहरे अक्षरों में उसकी कब्र के पत्थर के गिर्द मंडराता रहता है।
ठीक जिस तरह काफ्का ने ‘निरपराध’ कार्ल रोसमान को बचाने का विचार किया था यहां वह ‘अपराधी’ जोसेफ के को बचाने का विचार करता है। स्वप्न के हवा में टंग जाने में वह अपने नायक को दो महान चीजें बख्शता है : अध्यात्मिक आलोक और अपनी नियति और मृत्यु के साथ आनन्दपूर्ण समझौता। ‘द ट्रायल’ भी इसी तरह समाप्त होगी। हम नहीं जानते जोसेफ के कितने समय बचा रहा : कुछ घंटे¸ कुछ दिन या कुछ हफ्ते। फिर काफ्का पर खुद उसकी नियति अधिकार कर लेती है। वह समझ जाता है कि उसके संसार में जोसेफ के को नहीं बचाया जा सकता। उसे विश्वास करना पड़ेगा कि ईश्वर अन्धकार¸ हिंसा¸ भार और दमन है। उसे रात क ेवक्त अपमान और शर्म के साथ किसी कुत्ते की तरह समर्पण कर देना होगा। सुनहरे शब्दों से उसकी मदद करने वाला कोई कलाकार भी नहीं होगा और दो दुष्ट हत्यारे उसके दिल में कसाई का लम्बा चाकू उतार देंगे।
किताब के अन्त तक पहुंचते पहुंचते देर शरद के एक बरसाती दिन जोसेफ के का सीधा सामना न्याय के प्रतिनिधियों से होता है। यह ‘मुलाकात’ ‘संयोगवश’ एक गिरजाघर में होती है। तमाम अध्यात्मिक अर्थों से भरपूर गिरजाघर में होने वाली घटनाओं के बाद जोसेफ के के चरित्र की एक और कमजोरी सामने आती है : वह प्रतीक्षा करने में अक्षम है।
गिरजाघर के दृश्य और ‘द ट्रायल’ आखिरी अध्याय के बीच एक विशाल खालीपन है। हम नहीं जानते कि देर शरद से देर बसंत के महीनों में जोसेफ के ने क्या किया¸ उसके पास कौन सी उम्मीदें बची हुई थीं या उसने क्या प्रयास किए। हमारी मुलाकात उसकी इकतीसवीं सालगिरह से पिछली शाम का ेदेर वसंत के मौसम में होती है। जैसा कि न्यायालय का आदेश है वह अनुष्ठानों वाला काला सूट पहन कर आया है और दरवाजे के पास की कुर्सी पर बैठा हुआ है। वह अपने जल्लादों का इन्तजार कर रहा है : हालांकि किसी ने भी उनके आगमन की घोषणा नहीं की है लेकिन उसे इस बात का भान हो जाता है। करीब नौ बजे फ़्रॉक कोट पहने दो आदमी उसके घर आते हैं। वे एक भी शब्द नहीं बोलते। वे प्लास्टिक के बने मशीनी मानवों जैसे हैं। ठीक इसी क्षण जोसेफ के अपने आप को बतलाता है कि उसे किसी और का इन्तजार था। उसे किसका इन्तजार था? क्या वह कम अपमानभरी और कम रंगमंचीय मृत्यु का इन्तजार कर रहा था? शायद वह उस पादरी का इन्तजार कर रहा था जिसने उसे अंधेरे में चलना सिखाया था?
वह खिड़की के पास चला जाता है – और एक बार फिर से अंधेरी सड़क को देखता है। गली के उस तरफ की खिड़कियों पर भी उसकी निगाह जाती है जहां 'उस' सुबह उसकी यातना का लुत्फ उठाने को दर्शक जमा थे। उनमें से ज्यादातर खिड़कियां अंधेरे में हैं या उनके परदे खिंचे हुए हैं। लेकिन अब भी रोशन एक खिड़की से आखिरी बार जीवन का गतिमान दृश्य दिखाई देता है जो कि जोसेफ के की मौत के बाद भी खुद को लगातार नया करता जाएगा :अभी तक चलना न सीखे कुछ बच्चे खेल रहे हैं और एक दूसरे की तरफ हाथ बढ़ा रहे हैं। जोसेफ और दोनों जल्लाद सीढ़ियां उतर कर सड़क पर पहुंचते हैं। वे एक वीरान चौराहा पार करके एक पुल पर पहुंचते हैं। एक पल को ठहर कर जोसेफ के नदी के बहाव को देखता है। फिर वे चलना जारी रखते हैं और गलियों से होते हुए शहर के बाहर आकर पत्थर की एक छोटी खदान में पहुंचते हैं। इस परित्यक्त सी खदान में शहरी चरित्र लिए एक मकान है। “हर जगह चन्द्रमा की चमक थी ¸ नैसर्गिक और शान्त¸ जैसा किसी और रोशनी के साथ नहीं होता।” दिल को किस कदर छील कर रख देते हैं ये शब्द ! पूरी किताब में पहली बार प्रकृति अपनी अनुपस्थिति से जागती है और जोसेफ के के ऊपर वह शान्ति और कोमलता निछावर करती है जिस पर वह कभी अधिकार नहीं कर सकेगा।
औपचारिक अभिवादनों के बाद दो में से एक आदमी जोसेफ के के पास आता है और उसकी जैकेट¸ कमीज और बनियान उतार देता है। के कांपता है। खदान की दीवार के नजदीक एक बड़ा पत्थर उठ आता है। दोनों आदमी के को सीधा खड़ा करके उसके सिर को चट्टान पर व्यवस्थित करते हैं। फिर एक आदमी अपना फ़्रॉक कोट उतारता है और भीतर से एक पतला लम्बा तीखा दुधारी चाकू निकालता है। वह उसे रोशनी में लाकर परखता है। एक बार फिर वही भौंडी औपचारिकताएं होती हैं। चाकूवाला आदमी जोसेफ के की पसरी हुई देह के ऊपर से चाकू दूसरे को जांचने को देता है और थोड़ी देर बाद दूसरा वाला उसी तरह जोसेफ के के ऊपर ही से चाकू पहले वाले को थमाता है। जोसेफ के अपने आसपास देखता है। उसकी निगाह खदान के पास के मकान कै सबसे ऊपरी मंजिल पर टिक जाती है। खिड़की के शटर एक चमकीली रोशनी के साथ खुलते हैं और एक धुंधली मरियल आकृति बाहर झांकती है और अपनी बांहों को आगे तक पसारती है। “वह कौन है? कोई दोस्त? कोई भला आदमी? कोई ऐसा जिसे उस से सहानुभूति है? कोई मददगार? क्या वह सिर्फ एक ही आदमी था? या बहुत सारे थे? क्या अब भी कोई उम्मीद है? कहां हैं वे न्यायाधीश जिन्हें उसने कभी नहीं देखा? कहां है वह न्यायालय जहां वह कभी नहीं पहुंच सका?”
मृत्यु से पहले ये आखिरी सवाल के की आखिरी उम्मीदें हैं : ऐसी उम्मीदें जिन्हें मृत्यु निरर्थक साबित करेगी। तो भी यह कराह मौत के आगे तक जाती है और हत्या के बावजूद इसे दबाया नहीं जा सकता। न्यायालय हमें याद दिलाता है कि न्याय आदमी की प्रतीक्षा करता है और ऊपर एक धुंधली आकृति ही की सही शक्ल में अपनी बाहें पसारता है। काफ्का के संसार में उम्मीद के लिर रास्ता खुला हुआ है और इस उम्मीद को पहचाना जा सकता है क्योंकि अगर ऐसा न होता तो वह उम्मीद नहीं होती। हम केवल एक सामान्य तथ्य को स्थापित कर सकते हैं : हम सब जानते हैं कि उम्मीद कभी पूरी नहीं होती¸ पादरी के कोे धोखा देता है और जल्लाद उसे मार डालते हैं। “क्या इस परिचित संसार के परे कहीं उम्मीद है?" मैक्स ब्राड ने अपने दोस्त से पूछा था। काफ्का मुस्कराया था : "निश्चित ही अनन्त उम्मीद है लेकिन हमारे लिए नहीं।" काफ्का का यह उत्तर 'द ट्रायल' के अन्त को सुनिश्चित करता है। अगर काफ्का का संसार बिना उम्मीद का होता तो उसमें रहना आसान होता। यह उम्मीद है जो काफ्का के संसार को इस कदर हताश¸ त्रासद और असहनीय बनाती है।
काफ्का दण्ड के आनन्द को जानता था। ‘डायरीज़’ में उसने एक सपने का जिक्र किया है जिसमें सजा मिलने पर उसने अपार आनन्द महसूस किया था। “यह आनन्द इस बात में निहित था कि सजा को मैंने इस कदर मुक्त¸ विश्वस्त और प्रसन्न होकर स्वीकार किया था। यह ऐसा दृश्य था जिसे देखकर देवता भी हिल गए होंगे। मैंने देवताओं के तकरीबन रोने की इस गहन संवेदना का अनुभव भी किया था।” यहां ‘द ट्रायल’ के आखिरी पन्नों में जोसेफ के को सजा से कोई आनन्द नहीं मिलता। वह उसे जानता ही नहीं। वह मुक्त¸ विश्वस्त और प्रसन्न होकर उसे स्वीकार नहीं करता। उसके ऊपर हम भी ऐसी किसी संवेदना को महसूस नहीं करते।
जोसेफ के के गले के गिर्द एक जल्लाद के हाथ कस जाते हैं जबकि दूसरा उसके दिल में चाकू उतार कर उसे दो दफा मरोड़ता है। रोशनी खोती अपनी आंखों से जोसेफ के अपने चेहरे के नजदीक आदमी का चेहरा देखता है जो उसकी मृत्यु को देख रहा है। कोई भी मौत अधिक सनसनीखेज और अपमानभरी नहीं हो सकती। कुछ भी उसे सुधार नहीं सकता। यह अपनी सबसे काली गहराइयों में मौत है : अपने अर्थ की पूरी बेशर्मी के साथ। उसमें न्यायालय द्वारा किए गए पाप की शर्म है¸ उस कृत्य की शर्म है¸ और जोसेफ के के अपराधबोध की शर्म है जो सजा दिए जाने के बाद भी बनी रहती है। पवित्रता के आतंक ने इसके पहले कभी इस कदर भयाक्रान्त कर देने वाला तरीका अख़्तियार नहीं किया था जैसा कि इन पंक्तियों में हम देखते हैं।