Sunday, January 31, 2016

कई पीढ़ियों तक भारत में वैध एडल्ट फिल्म इंडस्ट्री बनने की संभावना नहीं - सनी लियोनी


मैं सनी लियोनी को स्थापित करने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ पर आप हैरान मत होइएगा. सनी लियोनी शहरी युवा महिलाओं के एक हिस्से की रोल-मॉडल बनती जा रही है. आमिर खान भी अब उसके साथ फिल्म करने की मंशा जतला चुके हैं.

ऋषि-मुनियों के एक देश में पिछले कुछ दशकों से पोर्न देखने की परम्परा है. ऐसा मैं इस वजह से कह रहा हूँ कि आंकड़े गवाही दे रहे हैं. इंटरनेट के चलन के बाद से यह परम्परा और भी सुदृढ़ हुई है. छोटे-छोटे बच्चे भी मोबाईल में आई क्रांति के चलते इसका भरपूर लुत्फ़ उठाने लगे हैं. यह अलग बात है कि इस पर सार्वजनिक प्लेटफ़ॉर्म में चर्चा नहीं होती - ऐसी बातों पर चर्चा करने का रिवाज़ ऋषि-मुनियों के देश में सदियों पहले बंद हो चुका.

मैं बहुत लम्बे समय से ऐसा कोई बहाना ढूंढ रहा था कि जैसा कि मुहावरा है, अलमारियों से कंकाल निकाल बाहर किये जाएं. चौबे जी द्वारा लिए गए सनी लियोनी एक हालिया इंटरव्यू ने कई सारी चीज़ों को उलट-पुलट कर रख दिया है और हमें आईने में अपनी सूरत दिखनी शुरू हुई ही है. तीन साल पहले भी सनी के एक इंटरव्यू में काफी कुछ ऐसा कहा था जो तमाम सवालात खड़े करता था पर हमारे मीडिया ने तब सनी को सीरियसली नहीं लिया था. ज़रुरत है कि आप एक बार उस इंटरव्यू को दुबारा से देखें और ईर्ष्या करें इस पोर्नस्टार के विवेक और ह्यूमर के साथ संयत बने रहने के साहस से. वह बहुत संजीदगी से इस बात को रेखांकित करती है कि हमारे यहाँ पोर्न को अगले कुछ दशकों तक वैध स्वीकृति नहीं मिल सकती.

फिलहाल तब तक हमारे ऋषि-मुनि पुत्र छिप-छिप कर पोर्न देखते रह सकते हैं. ब्रह्माण्ड में किसी फील्ड में तो नंबर एक बने रहने का हक़ है हमें. क्या कहते हैं? 

ज़ूम टीवी पर 2012 में दिखाए गए इस साक्षात्कार में भी अलबत्ता इंटरव्यूअर अपनी ऐसी-तैसी कराने में कोई कसर नहीं छोड़ती - यह बात तक उसके पक्ष में नहीं जाती कि उसकी माइक्रो-मिनी-ड्रेस के सामने सनी लियोनी की पोशाक एक हद तक गंवार और पिछड़ी लग रही है. 

कुछ बात तो है इस बहादुर लड़की में! 


2015 के सबसे प्रसिद्ध फ़ोटोग्राफ़्स - 3

इस्ताम्बुल में बर्फ़बारी

फ़ोटोग्राफ़र: मुराद सेज़र
इस्ताम्बुल, तुर्की
17 फ़रवरी 2015
स्विट्ज़रलैंड के सेंट मौरित्ज़ पर्वत पर सूर्य की आभा

फ़ोटोग्राफ़र: आर्न्ड वइगमैन 
स्विट्ज़रलैंड
24 जनवरी 2015
नीदरलैंड के लीस इलाके में फूलों के खेतों का विहंगम दृश्य
फ़ोटोग्राफ़र: ईव्स हरमन
हवाना, क्यूबा
15 अप्रैल 2015

अब जिस नरक में जाओ, वहां से चिट्ठी-विट्ठी डालते रहना

फ़हमीदा रियाज़ किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं. पाकिस्तानी प्रगतिशील साहित्यिक परम्परा के अग्रणी हस्ताक्षरों में गिनी जाने वाली फ़हमीदा की यह नज़्म अब तक काफ़ी नाम कम चुकी है. सरहद के उस तरफ़ से आईना दिखाती और आगाह करती इस रचना की पृष्ठभूमि की बाबत बहुत बताने की ज़रुरत नहीं है शायद. 

फ़हमीदा रियाज़ (जन्म: 28 जुलाई 1946)

तुम बिल्कुल हम जैसे निकले

- फ़हमीदा रियाज़

तुम बिल्कुल हम जैसे निकले अब तक कहां छुपे थे भाई?
वह मूरखता, वह घामड़पन जिसमें हमने सदी गंवाई
आखिर पहुंची द्वार तुम्हारे अरे बधाई, बहुत बधाई

भूत धरम का नाच रहा है कायम हिन्दू राज करोगे?
सारे उल्टे काज करोगे? अपना चमन नाराज करोगे?
तुम भी बैठे करोगे सोचा, पूरी है वैसी तैयारी,

कौन है हिन्दू कौन नहीं है
तुम भी करोगे फतवे जारी
वहां भी मुश्किल होगा जीना
दांतो आ जाएगा पसीना
जैसे-तैसे कटा करेगी

वहां भी सबकी सांस घुटेगी
माथे पर सिंदूर की रेखा
कुछ भी नहीं पड़ोस से सीखा!
क्या हमने दुर्दशा बनायी
कुछ भी तुमको नज़र न आयी?

भाड़ में जाये शिक्षा-विक्षा, अब जाहिलपन के गुन गाना,
आगे गड्ढा है यह मत देखो वापस लाओ गया जमाना

हम जिन पर रोया करते थे
तुम ने भी वह बात अब की है
बहुत मलाल है हमको,
लेकिन हा हा हा हा हो हो ही ही
कल दुख से सोचा करती थी

सोच के बहुत हँसी आज आयी
तुम बिल्कुल हम जैसे निकले
हम दो कौम नहीं थे भाई मश्क करो तुम, आ जाएगा
उल्टे पांवों चलते जाना,
दूजा ध्यान न मन में आए

बस पीछे ही नज़र जमाना
एक जाप-सा करते जाओ,
बारम्बार यह ही दोहराओ
कितना वीर महान था भारत!
कैसा आलीशान था भारत!

फिर तुम लोग पहुंच जाओगे
बस परलोक पहुंच जाओगे!
हम तो हैं पहले से वहां पर,
तुम भी समय निकालते रहना,
अब जिस नरक में जाओ,
वहां से चिट्ठी-विट्ठी डालते रहना

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*देखिये फ़हमीदा को. यही नज़्म सुना रही हैं: 

Thursday, January 28, 2016

एक मिनट का मौन


एक मिनट का मौन
- एम्मानुएल ओर्तीज 

(अनुवाद: असद ज़ैदी)

इससे पहले कि मैं यह कविता पढ़ना शुरू करूँ
मेरी गुज़ारिश है कि हम सब एक मिनट का मौन रखें
ग्यारह सितम्बर को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और पेंटागन में मरे लोगों की याद में
और फिर एक मिनट का मौन उन सब के लिए जिन्हें प्रतिशोध में
सताया गया, क़ैद किया गया
जो लापता हो गए जिन्हें यातनाएं दी गईं
जिनके साथ बलात्कार हुए एक मिनट का मौन
अफ़गानिस्तान के मज़लूमों और अमरीकी मज़लूमों के लिए

और अगर आप इज़ाजत दें तो

एक पूरे दिन का मौन
हज़ारों फिलस्तीनियों के लिए जिन्हें उनके वतन पर दशकों से काबिज़
इस्त्राइली फ़ौजों ने अमरीकी सरपरस्ती में मार डाला
छह महीने का मौन उन पन्द्रह लाख इराकियों के लिए, उन इराकी बच्चों के लिए,
जिन्हें मार डाला ग्यारह साल लम्बी घेराबन्दी, भूख और अमरीकी बमबारी ने

इससे पहले कि मैं यह कविता शुरू करूँ

दो महीने का मौन दक्षिण अफ़्रीका के अश्वेतों के लिए जिन्हें नस्लवादी शासन ने
अपने ही मुल्क में अजनबी बना दिया. नौ महीने का मौन
हिरोशिमा और नागासाकी के मृतकों के लिए, जहाँ मौत बरसी
चमड़ी, ज़मीन, फ़ौलाद और कंक्रीट की हर पर्त को उधेड़ती हुई,
जहाँ बचे रह गए लोग इस तरह चलते फिरते रहे जैसे कि जिंदा हों.
एक साल का मौन विएतनाम के लाखों मुर्दों के लिए...
कि विएतनाम किसी जंग का नहीं, एक मुल्क का नाम है...
एक साल का मौन कम्बोडिया और लाओस के मृतकों के लिए जो
एक गुप्त युद्ध का शिकार थे... और ज़रा धीरे बोलिए,
हम नहीं चाहते कि उन्हें यह पता चले कि वे मर चुके हैं. दो महीने का मौन
कोलम्बिया के दीर्घकालीन मृतकों के लिए जिनके नाम
उनकी लाशों की तरह जमा होते रहे
फिर गुम हो गए और ज़बान से उतर गए.

इससे पहले कि मैं यह कविता शुरू करूँ.

एक घंटे का मौन एल सल्वादोर के लिए
एक दोपहर भर का मौन निकारागुआ के लिए
दो दिन का मौन ग्वातेमालावासिओं के लिए
जिन्हें अपनी ज़िन्दगी में चैन की एक घड़ी नसीब नहीं हुई.
45 सेकेंड का मौन आकतिआल, चिआपास में मरे 45 लोगों के लिए,
और पच्चीस साल का मौन उन करोड़ों गुलाम अफ्रीकियों के लिए
जिनकी क़ब्रें समुन्दर में हैं इतनी गहरी कि जितनी ऊंची कोई गगनचुम्बी इमारत भी न होगी.
उनकी पहचान के लिए कोई डीएनए टेस्ट नहीं होगा, दंत चिकित्सा के रिकॉर्ड नहीं खोले जाएंगे.
उन अश्वेतों के लिए जिनकी लाशें गूलर के पेड़ों से झूलती थीं
दक्षिण, उत्तर, पूर्व और पश्चिम

एक सदी का मौन

यहीं इसी अमरीका महाद्वीप के करोड़ों मूल बाशिन्दों के लिए
जिनकी ज़मीनें और ज़िन्दगियाँ उनसे छीन ली गईं
पिक्चर पोस्ट्कार्ड से मनोरम खित्तों में...
जैसे पाइन रिज वूंडेड नी, सैंड क्रीक, फ़ालन टिम्बर्स, या ट्रेल ऑफ टियर्स.
अब ये नाम हमारी चेतना के फ्रिजों पर चिपकी चुम्बकीय काव्य-पंक्तियाँ भर हैं.

तो आप को चाहिए खामोशी का एक लम्हा ?
जबकि हम बेआवाज़ हैं
हमारे मुँहों से खींच ली गई हैं ज़बानें
हमारी आखें सी दी गई हैं
खामोशी का एक लम्हा
जबकि सारे कवि दफनाए जा चुके हैं
मिट्टी हो चुके हैं सारे ढोल.

इससे पहले कि मैं यह कविता शुरू करूँ
आप चाहते हैं एक लम्हे का मौन
आपको ग़म है कि यह दुनिया अब शायद पहले जैसी नहीं रही रह जाएगी
इधर हम सब चाहते हैं कि यह पहले जैसी हर्गिज़ न रहे.
कम से कम वैसी जैसी यह अब तक चली आई है.

क्योंकि यह कविता 9/11 के बारे में नहीं है
यह 9/10 के बारे में है
यह 9/9 के बारे में है
9/8 और 9/7 के बारे में है
यह कविता 1492 के बारे में है.

यह कविता उन चीज़ों के बारे में है जो ऐसी कविता का कारण बनती हैं.
और अगर यह कविता 9/11 के बारे में है, तो फिर :
यह सितम्बर 9, 1973 के चीले देश के बारे में है,
यह सितम्बर 12, 1977 दक्षिण अफ़्रीका और स्टीवेन बीको के बारे में है,
यह 13 सितम्बर 1971 और एटिका जेल, न्यू यॉर्क में बंद हमारे भाइयों के बारे में है.

यह कविता सोमालिया, सितम्बर 14, 1992 के बारे में है.

यह कविता हर उस तारीख के बारे में है जो धुल-पुँछ रही है कर मिट जाया करती है.
यह कविता उन 110 कहानियो के बारे में है जो कभी कही नहीं गईं, 110 कहानियाँ
इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में जिनका कोई ज़िक्र नहीं पाया जाता,
जिनके लिए सीएनएन, बीबीसी, न्यू यॉर्क टाइम्स और न्यूज़वीक में कोई गुंजाइश नहीं निकलती.
यह कविता इसी कार्यक्रम में रुकावट डालने के लिए है.

आपको फिर भी अपने मृतकों की याद में एक लम्हे का मौन चाहिए ?
हम आपको दे सकते हैं जीवन भर का खालीपन :
बिना निशान की क़ब्रें
हमेशा के लिए खो चुकी भाषाएँ
जड़ों से उखड़े हुए दरख्त, जड़ों से उखड़े हुए इतिहास
अनाम बच्चों के चेहरों से झांकती मुर्दा टकटकी
इस कविता को शुरू करने से पहले हम हमेशा के लिए ख़ामोश हो सकते हैं
या इतना कि हम धूल से ढँक जाएँ
फिर भी आप चाहेंगे कि
हमारी ओर से कुछ और मौन.

अगर आपको चाहिए एक लम्हा मौन
तो रोक दो तेल के पम्प
बन्द कर दो इंजन और टेलिविज़न
डुबा दो समुद्री सैर वाले जहाज़
फोड़ दो अपने स्टॉक मार्केट
बुझा दो ये तमाम रंगीन बत्तियां
डिलीट कर दो सरे इंस्टेंट मैसेज
उतार दो पटरियों से अपनी रेलें और लाइट रेल ट्रांजिट.

अगर आपको चाहिए एक लम्हा मौन, तो टैको बैल की खिड़की पर ईंट मारो,
और वहां के मज़दूरोंका खोया हुआ वेतन वापस दो. ध्वस्त कर दो तमाम शराब की दुकानें,
सारे के सारे टाउन हाउस, व्हाइट हाउस, जेल हाउस, पेंटहाउस और प्लेबॉय.

अगर आपको चाहिए एक लम्हा मौन
तो रहो मौन ''सुपर बॉल'' इतवार के दिन
फ़ोर्थ ऑफ़ जुलाई के रोज़
डेटन की विराट 13-घंटे वाली सेल के दिन
या अगली दफ़े जब कमरे में हमारे हसीं लोग जमा हों
और आपका गोरा अपराधबोध आपको सताने लगे.

अगर आपको चाहिए एक लम्हा मौन
तो अभी है वह लम्हा
इस कविता के शुरू होने से पहले.

( 11 सितम्बर, 2002 ) 

गिव मी वन रीज़न टू स्टे हीयर

ट्रेसी चैपमैन

Give Me One Reason

Give me one reason to stay here
And I'll turn right back around
Give me one reason to stay here
And I'll turn right back around
Said I don't want to leave you lonely
You got to make me change my mind

Baby I got your number, oh, and I know that you got mine
You know that I called you, I called too many times
You can call me baby, you can call me anytime
You got to call me

Give me one reason to stay here
And I'll turn right back around
Give me one reason to stay here
And I'll turn right back around
Said I don't want leave you lonely
You got to make me change my mind

I don't want no one to squeeze me, they might take away my life
I don't want no one to squeeze me, they might take away my life
I just want someone to hold me, oh, and rock me through the night

This youthful heart can love you, yes, and give you what you need
I said, This youthful heart can love you, oh, and give you what you need
But I'm too old to go chasing you around
Wasting my precious energy

Give me one reason to stay here
Yes and I'll turn right back around
Give me one reason to stay here
Ooh and I'll turn right back around
Said I don't want leave you lonely
You got to make me change my mind

Baby just give me one reason, Give me just one reason why
Baby just give me one reason, Give me just one reason why I should stay
Said I told you that I loved you

And there ain't no more to say

जॉन साल्मीनेन के सिटीस्केप्स - 6









जॉन साल्मीनेन के सिटीस्केप्स - 5











जॉन साल्मीनेन के सिटीस्केप्स - 4











जॉन साल्मीनेन के सिटीस्केप्स - 3