Saturday, September 27, 2014

कम पानी में काम चलाना हमने सीखा


बड़े शहर में
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-वीरेन डंगवाल

कम पानी में काम चलाना 
हमने सीखा
गाड़ी में उल्टा टंग जाना 
हमने सीखा
झोले में तरबूज छिपाना 
हमने सीखा
झूठ बात को सच्चे मन से सत्य मानना 
अपने जीवन में अपनाना हमने सीखा.

Friday, September 26, 2014

सोया-सोया लगता तो हूँ लेकिन जाग रहा हूँ


घोड़ों का बिल्ली अभिशाप

-वीरेन डंगवाल

घोड़ा एक न बेच सका मैं फिर भी गया सो
इससे मुझको शाप मिला 'तू जैसा है वह हो'
'घोड़े वाले तू अब बिल्ली का धंधा कर ले
बिल्ली के बच्चों से अपना पूरा घर भर ले
बिल्ली के बच्चे तेरे पर्दों पर झूला झूलें
टीवी में घुस जाएँ धूप में बैठ खुशी से फूलें 
कभी मारकर चिड़िया तेरे बिस्तर पर धर जाँय
और कभी अलमारी के पीछे टट्टी कर जाँय
कभी रात के सन्नाटे में ऐसा मातम गायें
पित्ता पानी बन जाए सुनने वाले घबड़ाएं.
मचा रहे कोहराम हमेशा तेरे खंजड़ घर में 
बिल्ली बैठी रहे रसोई में और तेरे सर में'.
घोड़ों से अभिशप्त बिल्लियों से मैं भाग रहा हूँ
सोया-सोया लगता तो हूँ लेकिन जाग रहा हूँ
इसी ताक में हूँ दिख जाए एक अकेली बिल्ली
फिर भी 'दिल्ली' कहकर हरगिज़
कोई तुक न मिलाऊँ
म्याऊँ कभी न बोलूँ.

Thursday, September 25, 2014

कुहरे में, सामने, रक्तालोक-स्नात पुरुष एक, रहस्य साक्षात्


मुक्तिबोध की पचासवीं पुण्यतिथि पर बीबीसी के लिए यह शानदार प्रस्तुति हमारे कबाड़ी पत्रकार राजेश जोशी ने तैयार की थी. आज एक एक्सक्लूसिव कबाड़ -

Friday, September 5, 2014

शिक्षक दिवस पर एक भूतपूर्व शिक्षक की पुरानी कविता



पैर छूना 

गिरिराज किराड़ू

हर बात झूठ लग रही थी अपने रेगिस्तानी शहर से डेढ़ दो हजार किलोमीटर सूदूर दक्षिण में उसी शाम उसे देखने एक लड़का एक होटेल में आयेगा माँ-बाप ने तय किया है फोन पर बात भी करायी गयी  सब फर्जी मेरा दिमाग तो एक टूर इंचार्ज अध्यापक की तरह काम कर ही रहा था मेरी क्लास में छह महीने का बहीखाता भी हक में नहीं था उसके कि तभी अचानक एक उपन्यासकार जैसा जोखिम उठाते हुए कहा जाओ दो घंटे में लौट आना वर्ना अध्यापक ने फर्ज़ अदायगी की वह अपने कमरे में गयी थैंक्स बोलते हुए मैं उपन्यासकार से झगड़ता हुआ वहीं खडा रह गया दसेक मिनट में वह कमरे से निकली तैयार जींस छोटा-सा टॉप अभिसारिका मेरा नायिका भेद बोला बेहद अटपटेपन से उसे देख रहा था कि वह पास आयी और सीधे मेरे पैर छू लिये बिना किसी नाटक के फिर से थैंक्स और चली गयी

अपने को सबसे बेहतर समझने वाला उसका उद्दण्ड आत्मविश्वास छह महीने में कई बार टकरा चुका था मुझसे पैर छूना मास्टरस्ट्रोक नहीं था यह तब जितना साफ़ था मेरे लिये आज भी उतना ही साफ़ है समय से कुछ पहले ही लौट आयी मैंने वह कॉलेज छोड़ दिया उसके अगले साल पाँच सितंबर को एक एसएमएस आया आपके फैसले हमेशा याद रहेंगे मुझे

दूसरी बार और भी अजब हुआ दूर की एक हमउम्र रिश्तेदार सिर्फ़ दूसरी बार मिल रहा था जाते जाते पैर छू लिये कुछ बहुत बड़ा फैसला लेना है मन पक्का कर लिया है आपका आशीर्वाद चाहिये उसके चार दिन बाद उसने भाग कर अपने चचेरे भाई से शादी कर ली

आज तक समझ नहीं पाया दोनों बार ऐसा क्यूं हुआ क्यूं इन दो लड़कियों ने छुए मेरे पैर क्यूं पूरे नहीं हो सकते थे उनके काम मेरे आशीर्वाद के बिना इसका कहीं इस बात से तो कुछ लेनादेना नहीं कि बहुत कायदे से न सही पर दोनों को पता था कुछ राइटर वगैरह हूँ मैं


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(15 मार्च 1975 को बीकानेर में जन्मे गिरिराज किराडू की कवितायें,आलोचना,अनुवाद और कुछ कहानियां बहुवचन,पूर्वग्रह,तद्भव,सहित,वाक्,वागर्थ,इंडिया टुडे वार्षिकी,इंडियन लिटरेचर,अकार,कथाक्रम,जनसत्ता आदि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं. उन्हें कविता के लिये भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार " (2000) प्राप्त हो चुका है और वे एक द्विभाषी पत्रिका ‘प्रतिलिपि’ का संपादन करते हैं.)