बडी बोल्डन |
अगर संगीत एक स्थान है तो जैज़ एक नगर है
-वेरा नज़ारियन
सच तो यह है कि न्यू ऑर्लीन्स की चर्चा के बग़ैर जैज़ की चर्चा करना
सम्भव नहीं. और देखा जाये तो न्यू ऑर्लीन्स था भी ऐसा ही एक मस्त शहर जहाँ जैज़
जैसे जीवन्त, ज़िन्दगी की धड़कनों से भरपूर संगीत के विकसित होने
की पूरी गुंजाइश थी. अमरीका के दक्षिणी लूज़ियाना प्रान्त की इस बन्दरगाह को ही
संगीत के अधिकतर पारखी जैज़ की - जैसा कि हम आज उसे जानते हैं - जन्मभूमि मानते हैं.
उसी तरह जैसे न्यू ऑर्लीन्स निवासी जेली रोल मॉर्टन को जैज़ का जन्मदाता. हालाँकि
उन दिनों अनेक संगीतकार विभिन्न शहरों और इस सदी के रैगटाइम और ब्लूज़ से जैज़ तक के
पड़ाव तय कर रहे थे. पिछली सदी के अन्तिम और इस सदी के आरम्भिक वर्षों में न्यू
ऑर्लीन्स अपने किस्म का अनोखा नगर था. बन्दरगाह की चहल-पहल, मल्लाहों
की आवा-जाही, स्पेनी, फ्रांसीसी और
अंग्रेज़ी मूल के गोरों और अफ्रीका से लाये गये लोगों की मिली-जुली आबादी, हल्ला-गुल्ला, नाच-गाना और तरह-तरह के खेल-तमाशे,
हवा में समुद्र की पागल कर देने वाली गन्ध और हौलियों और शराबख़ानों
में समुद्री डाकुओं और जाँबाज़ नाविकों की गाथाएँ. राग-रंग और संगीत में रचे-बसे
चकले और तवायफ़ख़ाने. बाज़ारों और गलियों में डाभ और मछली बेचने वालियों की
हाँक-पुकार. चूने से पूते हुए सफ़ेद मकान, जिनकी बनावट पर
स्पष्ट फ्रांसीसी और स्पेनी छाप थी. न्यू ऑर्लीन्स अमरीका के दक्षिणी हिस्से का एक
बड़ा और रंग-बिरंगा शहर था, इसलिए इस पूरे इलाके से लोग खिंच
कर वहाँ आते. इसी गहमा-गहमी ने जैज़ के लिए एक बिल्कुल मुनासिब ज़मीन तैयार की.
न्यू ऑरलीन्स सेकेण्ड लाइन - बॉब ग्रैहम की पेंटिंग |
न्यू ऑर्लीन्स में काम की कमी नहीं थी. न तो मज़दूरों के लिए,
न संगीतकारों के लिए, न गोरों के लिए, न कालों के लिए और न ही गोरों और कालों के मेल से पैदा हुई ‘क्रियोल’ जाति के लिए. यही नहीं, बल्कि न्यू ऑर्लीन्स में संगीत का दायरा बहुत व्यापक था. तवायफ़ख़ानों और
नाचघरों की दीवारों के भीतर भी और बाहर खुली फ़िज़ा में भी. झील के किनारे पिकनिक
मनाते लोग हों या तरह-तरह की संस्थाएँ, जो उन दिनों न्यू
ऑर्लीन्स में फल-फूल रही थीं, हर जगह संगीत की गुंजाइश थी -यहाँ
तक की अर्थियों और अन्त्येष्टि के गम्भीर, गरिमा-भरे वातावरण
में भी, जिनके साथ-साथ अक्सर बैण्ड-बाजे कवायद करते हुए
दिखायी देते. इन्हीं बैण्डों से जैज़ को परेड-नुमा धुनें मिलीं और मिले वे वाद्य,
जिनका जिक्र अभी हमने किया. यानी ट्रम्पेट, ट्रॉम्बोन
और क्लेरिनेट.
मगर यह तो बहुत बाद की बात है. न्यू ऑर्लीन्स में नीग्रो संगीत की
जड़ें अमरीकी गृह युद्ध के बाद ही पनपने लगी थीं और उस युग का उल्लेख जैज़ के विकास
को समझने के लिए ज़रूरी है. एक तरह से यह दौर उन लोगों की दुख-भरी कहानी का हिस्सा
है, जिन्हें अपनी धरती से उखाड़ कर, अपनी परम्परा, धर्म और लोक संस्कृति से काट कर,
पहले तो ग़ुलाम बनाया गया और फिर एक ऐसी आज़ादी का आश्वासन दिया गया,
जो अस्पष्ट और भ्रामक साबित हुई. अमरीकी गृह युद्ध के बाद नीग्रो
दासों के लिए स्वाधीनता का अर्थ केवल इतना ही नहीं था कि उनके साथ-कम-से-कम काग़ज़
पर-भेद-भाव और ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं बरती जायेगी, बल्कि इसका एक
पहलू यह भी था कि उन्हें अचानक मुक्त करके शहरी जीवन की क्रूरता के बीच अकेला और
असहाय छोड़ दिया गया था, जहाँ उनके पास कोई आसरा नहीं था.
ज़ाहिर है यह कहानी ऐसे लोगों की कहानी है, जो बलपूर्वक अपनी
संस्कृति से वंचित कर दिये जाने पर एक नयी संस्कृति बनाने की कोशिश कर रहे थे.
न्यू ऑर्लीन्स के कॉर्नेट-वादक बडी बोल्डन की कहानी इसी दौर की
कहानी है.
11.
उस दौर की याद करते हुए बड़ी बोल्डन के साथी ड्यूक बॉटली ने बताया
है कि गृह युद्ध के बाद न्यू ऑर्लीन्स शायद सबसे बदकिस्मत अमरीकी शहर था. दक्षिणी
राज्यों की बग़ावत को कुचलने के बाद अन्य शहरों की तरह न्यू ऑर्लीन्स पर अमरीकी
सेना के साथ-साथ किस्म-किस्म के दूसरे चोर-बदमाशों का राज्य हो गया था और विडम्बना
यह थी कि जिन लोगों ने नीग्रो दासों की मुक्ति के लिए दक्षिणी राज्यों की बग़ावत को
दबाया था, उन्हीं ने नीग्रो लोगों का दमन करने के लिए
तरह-तरह के भेद-भाव को बढ़ावा दिया और दमनकारी कानून बनाये और पाबन्दियाँ लगायीं.
पहली पाबन्दी तो यह थी कि नीग्रो लोग किसी सार्वजनिक उद्यान में
इकट्ठे नहीं हो सकते थे. अगर होते तो उन पर जुर्माना हो सकता था. जेल हो सकती थी.
लिहाज़ा शहर के बीचों-बीच कौंगो स्क्वेयर नामक मैदान उजड़ गया और इतवार की शाम को
खेल-तमाशे और नाच-गाना शहर के बाहरी खुले इलाके की ओर खिसक गया. धीरे-धीरे
जैसे-जैसे ख़बर फैली, वहाँ भीड़ की तादाद भी बढ़ने लगी और किराये पर
घोड़े-गाडि़याँ चलाने वाले एक खाते-पीते व्यापारी मिस्टर पोरी ने इस इलाके में
अपना अस्तबल बना लिया. इतवार-के-इतवार होने वाले मेले में खोंचे वालों को धड़ल्ले
से धन्धा करते देख कर मिस्टर पोरी ने वहीं एक बड़ा-सा हॉल बनवा दिया, जिसके बाहर खुले में कनात तान कर लोक-सभाएँ की जा सकती थीं. इसी हाल और
उसके बाहर की जगह में खेल-तमाशे, नाच-गाना और इसी किस्म के
दूसरे सामाजिक उत्सव होने लगे.
अब्राहिम लिंकन की याद में मिस्टर पोरी ने इस हाल का नाम रखा लिंकन
पार्क. लिंकन पार्क का उद्घाटन बड़ी धूमधाम से हुआ और जब तक यह हॉल कायम रहा -
यानी बड़े क्लबों, होटलों और मनोरंजन स्थलों के युग से पहले - लिंकन
पार्क न्यू ऑर्लीन्स की सबसे मशहूर तफ़रीहगाह थी. इसी लिंकन पार्क में पिछली सदी के
आख़िरी दशक में, यानी 1890 के आस-पास,
बड़ी बोल्डन ने अपने कार्यक्रम शुरू किये. इनमें गाना-बजाना तो होता
ही था, मगर उसके साथ-साथ आपस में या दर्शकों के साथ
लतीफ़ेबाज़ी और हाज़िर जवाबी के मुकाबिले भी चलते रहे थे.
बडी बोल्डन पेशे से नाई थे. काफ़ी छैल-चिकनिया किस्म के आदमी.
शानदार कपड़े पहनते और जम कर इश्कबाज़ी करते - जिसमें कहना न होगा कि उनकी सफलता के
पीछे उनके अद्भुत कॉर्नेट-वादन का भी हाथ था. बोल्डन की दुकान छोटी,
मगर बड़ी साफ़-सुथरी थी. उनके ग्राहक गिने-चुने, मगर खुला ख़र्च करने वाले होते. बोल्डन हर किसी की हजामत नहीं बनाते थे. वे
अपने ग्राहकों को ख़ुद चुनते थे. दूसरे शब्दों में बड़ी बोल्डन से हजामत बनवाने के
लिए ग्राहकों का उनसे परिचित होना ज़रूरी था, अन्यथा ग्राहक
को उनके सहयोगी सँभाल लेते. जब वे दुकान में बझे न होते तो बोल्डन दुकान के बाहर
खड़े हो कर आस-पड़ोस के तमाम छोटे-बड़े बच्चों से बोलते-बतियाते. बच्चों के लिए वे
आज के किसी फ़िल्मी सितारे से कम नहीं थे. कई बार वे बच्चों को मिठाइयाँ ख़रीद देते
या अगर मूड होता तो छै-सात बच्चों को दुकान में ले जाकर उनके सिर मूँड देते और बाद
में जब बच्चों की माँएँ हाय-तोबा मचातीं तो वे ख़ूब मज़ा लेते. बोल्डन की लोकप्रियता
सिर्फ़ उन्हीं तक सीमित नहीं थी. बहुत-से लोग भी, जिन्हें
बोल्डन का संगीत पसन्द नहीं था, उनका आदर करते थे. उनकी अपनी
तो कोई रिकौर्डिंग मौजूद नहीं है, पर उनकी बनायी धुनें बाद
में बहुत-से लोगों ने बजायीं. यहां एक धुन पेश है -
उस ज़माने में सिर्फ़ भले लोग ही संगीत की इन इतवारी सभाओं में नहीं
जाते थे, बल्कि रात ढलने पर न्यू ऑर्लीन्स के चोर, उचक्के, शोहदे, जुआरी, गिरहकट और वेश्याओं के दलाल भी जुट जाते. लेकिन बड़ी बोल्डन में भीड़ को सँभालने
की अद्भुत क्षमता थी. वादकों में घनघोर स्पर्धा तक भी थी, लेकिन
उस ज़माने में न तो प्रेस एजेण्ट थे, न रंगीन पत्रिकाएँ और न
ही प्रचार-प्रसार के दूसरे साधन. लिहाज़ा हर ख़लीफ़ा अपने चाहने वालों की ख़ातिर अपने
मुकाबले में खड़े दूसरे ख़लीफ़ा को ज़्यादा और ज़्यादा देर तक गा-बजा कर ही चित कर
सकता था. ऐसी हालत में बडी बोल्डन का बैण्ड बारह लम्बे वर्षों तक मैदान में जमा
रहा यहाँ तक कि लोगों ने बडी बोल्डन को ‘किंग’ का ख़िताब दे दिया.
कई बार वे लिंकन पार्क में अपना कार्यक्रम शुरू करते और फिर कुछ
देर के बाद किसी और को अपनी जगह खड़ा करके बिना किसी हिचक के पास-पड़ोस के दूसरे
बैण्डों में संगत करने चले जाते और फिर पाँच-सात धुनें बजाने के बाद अपने
कार्यक्रम का आख़िरी हिस्सा ख़ुद पेश करने के लिए वापस आ जाते. बडी बोल्डन की
विशेषता थी उनके ब्लूज़, जिनमें भजनों की अलौकिकता के साथ-साथ लौकिकता का
बेजोड़ मेल था. वे जब चाहते, लोगों को थिरकने पर मज़बूर कर
देते और जब चाहते उन्हें उदासी के नीले नीम-अँधेरों में खींच ले जाते. बोल्डन का
देहान्त 54 साल की उमर में हुआ लेकिन आख़िरी लगभग बीस साल वे
मानसिक बीमारी का शिकार रहे -
(बडी बोल्डन की एक धुन पेश करते हुए जेली रोल मोर्टन)
जैसे-जैसे न्यू ऑर्लीन्स में जैज़
संगीत के अँखुए फूटने लगे और उसकी लोकप्रियता बढ़ी, गोरे संगीतकारों
ने भी जैज़ को अपनाना और उसे धड़ल्ले से बजाना शुरू कर दिया. कुछ ने तो यह दावे भी
किये कि जैज़ का आविष्कार उन्हीं ने किया हालाँकि किसी भी संगीत समालोचक ने इन पर
कान नहीं दिया. तो भी यह बात शायद सबसे दिलचस्प है कि जिस अनोखी संगीत-शैली को
अमरीकी नीग्रो समुदाय ने विकसित किया था, उसे सँजोया था और
परवान पर चढ़ाया था, उसके पहले-पहल रिकॉर्ड 1917 में एक ऐसे बैण्ड ने रिकॉर्ड कराये, जो गोरे
संगीतकारों का था - "द ओरिजिनल डिक्सीलैण्ड जैज़ बैण्ड." इसके विपरीत
किंग ऑलिवर और उनके "क्रियोल जैज़ बैण्ड" को - जो 1917 के आस-पास न्यू ऑर्लीन्स का शायद सबसे अच्छा बैण्ड था - अपना संगीत
रिकॉर्ड कराने के लिए न केवल और पाँच बरस इन्तज़ार करना पड़ा, बल्कि अपने दल-बल समेत न्यू ऑर्लीन्स छोड़ कर शिकागो जाना पड़ा.
(जारी)
No comments:
Post a Comment