Monday, February 2, 2015

मिलिए प्लम्बर आबिद सुरती से


आबिद सुरती फिलहाल ७९ बरस के हैं. वही धर्मयुग के कार्टून कोना ढब्बूजी वाले. वही ‘पराग’ में छपी जिनकी किस्तवार किताब ‘बहत्तर साल का बच्चा’ आज भी मेरी सर्वप्रिय पुस्तकों में शुमार है.

बहुत कम लोगों को पता है कि राष्ट्रीय ख्याति का यह अलबेला, अनूठा कलाकार, कार्टूनिस्ट, लेखक पिछले कई सालों से मुम्बई में पानी बचाने की अपनी ख़ास तरह की मुहिम में जुटा हुआ है. उनसे अगर आप उनकी उपलब्धि की बाबत पूछें तो तो वे कहते हैं कि उन्होंने कोई बीसेक लाख लीटर पानी को नालियों में जाने से बचाया है आज तक.

हर इतवार को मुम्बई के सुदूर उपनगर मीरा रोड के इलाके में वे अपने एक मिस्त्री दोस्त के साथ किसी भी घर के टपकते  नल को ठीक करने एक सूचना मिलते ही निकल जाते हैं. उनकी यह सेवा मुफ्त होती है.

इसके बदले उन्हें क्या मिलता है? इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं “बहुत सा पानी ... और कभी कभार लंच का प्रस्ताव भी.”

“मैं मुम्बई की फुटपाथों पर बड़ा हुआ था जहां पानी के लिए कई बार भीषण हिंसा तक हो जाया करती थी. सो मुझसे एक भी बूँद पानी का बर्बाद होना बर्दाश्त नहीं होता.”  


इस की शुरुआत की कहानी जानना चाहिए तो वे बताते हैं कि एक दफा एक दोस्त के घर उन्हें निमंत्रण पर जाना हुआ. वहां बाथरूम में टपकते नल ने उन्हें बुरी तरह खीझ से भर दिया. दोस्त से इस बाबत शिकायत की गयी तो उत्तर मिला “करा लूँगा.” पर जैसा हम लोग अक्सर करते हैं दोस्त ने भी किया कुछ नहीं. अगली बार जब आबिद ने तनिक डपटते हुए पूछा तो दोस्त ने बहाना बनाया कि मुम्बई में आसानी से प्लम्बर नहीं मिलते क्योंकि इतने छोटे से काम के लिए आने को कोई भी तैयार नहीं होता. .

आबिद कहते हैं “मैंने पढ़ रखा था कि अगर एक सेकेण्ड में एक बूँद पानी बर्बाद होता है तो महीने भर में कुल मिलाकर वह एक हज़ार लीटर हो जाता है. तो बिसलेरी के पानी की १००० बोतलें मेरे मन में कौंध गईं.” यह बात सन २००७ की है. और उसे इंटरनेशल वाटर ईयर के तौर पर मनाया जा रहा था. उस साल आबिद को उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य संस्था ने १०००० रूपये का इनाम दिया था जिसका इस्तेमाल उन्होंने अपने नए मिशन के लिए करने की ठान ली.
  
तो हर इतवार को आबिद साहब कुछेक नल ठीक करते हैं और कुल छः सौ रुपये इस काम में खर्च करते हैं. और पैसे जुटाने के लिए वे टीशर्ट्स प्रिंट करते हैं जिन पर पानी बचाने के काम में लगे उनके एनजीओ का लोगो छपा होता है. “टीशर्ट छपने में १०० रूपये खर्च होते हैं और मैं लोगों से कहता हूँ कि वे सौ रूपये से अधिक पैसा उसके लिए दें. कोई ११० रूपये देता है तो कोई १०००.

टपकते नल को ठीक करने में  एक वाशर लगता है बस. थोक में इसकी कीमत २५ से ५० पैसे तक होती है. इस समाजसेवा में सबसे अधिक खर्च प्लम्बर के आनेजाने में होता है.

हर साल आबिद करीब १६०० घरों में जाया करते हैं. और अनुमानतः ४१४००० लीटर पानी बचाते हैं. और अब तो वे खुद भी यह काम करना सीख गए हैं.

“गंगा और यमुना को बचाने की बातें बहुत बड़ी हैं और उस के लिए आप स्वयं ज़्यादा कुछ नहीं कर सकते. हाँ अपने घर में टपकता नल ठीक करा लें तो बड़ी सेवा होगी.”

सुरती के इस ग़ज़ब फितूर का नाम है ‘ड्रॉप डैड’.

1 comment:

girish melkani said...

Very practical approach.