Tuesday, January 22, 2008

नैनीताल - घूमना बस घूमना


क्या लिखें क्या ना लिखें इस हाल में .
लोग कितने अजनबी हैं शहर नैनीताल में .

कोहरे मे डूबा हुआ है चेहरा दर चेहरा,
वादी जैसे गुमशुदा है सुन्दर मायाजाल में .

इस सड़क से उस सड़क तक घूमना बस घूमना ,
इक मुसलसल सुस्ती-सी है इस शहर की चाल में .

धूप में बैठे हुये दिन काट देतें हैं यहां ,
कौन उलझे जिन्दगी के जहमतो-जंजाल में .

आज के हालात का कोई जिकर होता नहीं ,
किस्से यह कि दिन थे अच्छे शायद पिछले साल में .

इस शहर का दिल धड़कता है बहुत आहिस्तगी से,
इस शहर को तुम न बांधो तेज लय-सुर -ताल में

6 comments:

काकेश said...

गुनगुनी धूप
जब ताल से आती हवाओं के साथ
चेहरे से टकराती है
फ्लैट में खेलते खिलाड़ी
और भोटिया बाजार के लामा
जब ऊंची आवाज में चिल्लाते हैं
जब तल्लीताल के डांट पर डोटियाल
आपके सामान को
पीठ पर लादने की तैयारी करता है
और तल्लीताल की जलेबी
और मल्लीताल की नमकीन
जब मुंह मे एक नया स्वाद ले आती है
तो समझिये आप को
नराई लग रही है
नैनीताल की....

Prabhakar Pandey said...

कमाल की रचना। सुंदर वर्णन।

mamta said...

अरे वाह आपने तो नैनीताल भी घुमा दिया।

mamta said...

आपकी कविता और उस पर काकेश जी की कविता वाह भाई वाह।

पारुल "पुखराज" said...

इस शहर का दिल धड़कता है बहुत आहिस्तगी से,
इस शहर को तुम न बांधो तेज लय-सुर -ताल में

सच और सुंदर कही आपने……वैसे भी पहाड़ थोड़े सुस्त होते हैं……इंडिया होटल के सामने तैरता ताल याद आ गया ।

मुनीश ( munish ) said...

well said! Nainital,however, is far more cuturally surcharged Himalayan hill town. itz way ahead of simla n mussoorie !! time passes slow in all colonial hill towns but that should be counted as a blessing .