Tuesday, April 22, 2008

चंद्रकांत देवताले

अशोक ने पिछले दिनों देवताले जी की एक कविता लगाई थी जो माँ के बारे में थी - मैं बेटी के बारे में लिखी एक कविता लगा रहा हूँ !

प्रेम पिता का दिखाई नहीं देता !

तुम्हारी निश्चल आंखें
चमकती हैं मेरे अकेलेपन की रात के आकाश में

प्रेम पिता का दिखाई नहीं देता
ईथर की तरह होता है
जरूर दिखायी देती होंगी नसीहतें
नुकीले पत्थरों -सी

दुनिया भर के पिताओं की लम्बी कतार में
पता नहीं कौन-सा कितना करोड़वां नम्बर है मेरा
पर बच्चों के फूलोंवाले बगीचे की दुनिया में तुम अव्वल हो
पहली कतार में मेरे लिए

मुझे माफ करना
मैं अपनी मूर्खता और प्रेम में समझा था
मेरी छाया के तले ही
सुरक्षित रंग-बिरंगी दुनिया होगी
तुम्हारी

अब जब तुम सचमुच की दुनिया में निकल गई हो
मैं खुश हूं सोचकर
कि मेरी भाषा के अहाते से परे है तुम्हारी परछाई !

3 comments:

Arun Aditya said...

बहुत अच्छी कविता। पिछले महीने उज्जैन गया था। देवताले दादा से मुलाकात हुई। और पिता का प्यार भी खूब देखा। वापस आते हुए उन्होंने मुझे अपना नया संचयन दिया जिसमें कुछ बिल्कुल नई रचनाएं भी हैं। देवताले जी का कहन गज़ब का है और उससे भी ज्यादा गज़ब की है उनकी सहजता। बिल्कुल ७० साल के बच्चे हैं वे।

दीपा पाठक said...

बहुत शानदार कविता है।

BOSE said...

Have tried to write something please tell me what you think

TOOTHPASTE

Aaj subah ek
saaf
seedhi
Tez
Safed
Toothpaste ki Rekha mere peeche pad gayi

Ek Dhage
Ek Nadey
Ki tarah

Par tha Toothpaste hi …

Voh boli
“Main tumhare din se guzar ti hoon
Main deti hoon usey spasht ta
Main dhaga bhi hoon aur sui bhi”

Uske yeh bolte hi mujhe kuch chub ne laga
Kuch gadne laga mujhe

“Main kaat ti hoon do hisson mein
neend aur hosh ko

Jaisey aasman ko
kaat ta hai Aeroplane” voh boli

Phir boli
“Samay ho gaya hai”
“Jaago.”