Wednesday, July 16, 2008

पटियाला बरास्ता काबुल: संगीत की एक यात्रा पर चलिये



पूर्वी शास्त्रीय संगीत के महानतम ख़लीफ़ाओं में एक उस्ताद मोहम्मद हुसैन सराहंग अफ़ग़ानिस्तान के विख्यात संगीतकार उस्ताद ग़ुलाम हुसैन के सुपुत्र थे. मोहम्मद हुसैन सराहंग का जन्म १९२४ में पुराने काबुल यानी खराबात में हुआ था. परम्परा से ही यह शहर संगीतकारों के लिये जाना जाता रहा है.

स्कूल जाने की आयु से ही उस्ताद ने अपने पिता से संगीत के शुरुआती पाठ सीखना शुरू किए. बहुत जल्द ही पिता से सारा कुछ सीख चुके इस किशोर लड़के की संगीत में रुचि देखते हुए ग़ुलाम हुसैन साहब ने मोहम्मद को भारत के पटियाला संगीत विद्यालय में 'द लाइट ऑफ़ पंजाब' के नाम से जाने जाने वाले उस्ताद आशिक़ अली ख़ान के पास भेज दिया. अगले सोलह सालों तक गुरू की सेवा और उनसे संगीत की बारीकियां सीखने के बाद मोहम्मद हुसैन वापस काबुल लौट गए. २५ साल की आयु में काबुल के प्रसिद्ध पामीर सिनेमा में होने वाले संगीत महोत्सव में शिरकत की और पहली ही सार्वजनिक महफ़िल में संगीतमर्मज्ञों का दिल जीत लिया.

बहुत जल्द ही अफ़गानिस्तान की सरकार ने उन्हें 'सराहंग' की उपाधि से नवाज़ा. जीवन भर संगीत सेवा में लगे रहे उस्ताद ने ख़याल, ठुमरी, तराना, ग़ज़ल और अन्य शास्त्रीय प्रारूपों पर भी ख़ूब काम किया. चन्डीगढ़ स्कूल ऑफ़ म्यूज़िक ने उन्हें 'कोह-ए-बलन्द' की उपाधि से सम्मानित किया तो इलाहाबाद के सेन्ट्रल स्कूल ऑफ़ म्यूज़िक ने उन्हें 'सरताज-ए-मौसीक़ी' कहा. १९७९ में दिल्ली में हुई उनकी आख़िरी कन्सर्ट में उन्हें 'बाबा-ए-मौसीक़ी' का ख़िताब अता किया गया.
उस्ताद ने भारत में क़रीब ५०० राग और ग़ज़लें रेकॉर्ड किए. अमीर खुसरो और अबुल मानी बेदिल का कलाम उन्होंने ख़ूब गाया. इसके अलावा उन्होंने शास्त्रीय संगीत और रागों को लेकर 'क़ानून-ए-तरब' और 'मौसीक़ी-ए-राग-हा' नाम की दो महत्वपूर्ण पुस्तकें भी लिखीं.

१९८३ में उस्ताद का देहान्त हो गया.

इस महान गायक के साथ मेरा परिचय फ़क़त एक दिन पुराना है. कल जीवन में पहली बार असद ज़ैदी साहब से टेलीफ़ोन पर हुई छोटी सी बातचीत के दौरान उन्होंने उस्ताद सराहंग के बारे में बड़ी मोहब्बत के साथ बताया और आज मेरे मेलबॉक्स में असद जी ने उस्ताद का गाया राग यमन अटैच कर के भेजा हुआ था.

सुनने के बाद मेरी पहली प्रतिक्रिया थी: "क्या बात है!" उसके बाद नैट खंगालने का जुनून चालू हुआ और उस्ताद मोहम्मद हुसैन सराहंग का अच्छा ख़ासा संग्रह दिन भर में जमा हो गया.

कबाड़ी द्वारा जुटाए गए इसी ख़ज़ाने से आपके लिए पेश है वही बड़े गु़लाम अली ख़ान साहब की याद दिलाने वाला अमर-अजर-अद्वितीय "याद पिया की आए".

यह पोस्ट हमारे समय के अद्भुत और बड़े कवि माननीय असद ज़ैदी जी को बहुत सारे प्यार और इज़्ज़त के साथ पेश की जाती है. उनके साथ आप भी सुनें.



(आने वाले समय में उस्ताद मोहम्मद हुसैन सराहंग को आप और-और सुनेंगे.)

5 comments:

Priyankar said...

बड़े गुलाम अली खां साहब की ट्रेडमार्क ठुमरियों में 'बाजूबंद खुल-खुल जाय' के साथ यह ठुमरी भी शामिल है . इसे उस्ताद मोहम्मद हुसैन सराहंग की आवाज में फिर से सुनना अच्छा लगा .

उस्ताद बड़े गुलाम अली खां साहब का एक रंगीन पोस्टर हमने २००२ में उनकी जन्मशतवार्षिकी पर छापा था . संभाल कर रखा है आपके लिए .

Ashok Pande said...

प्रियंकर जी,

आपने पोस्टर का ज़िक्र कर दिया है, मैंने भी अपने कमरे की दीवार पर एक जगह बना ली है. अब देर काहे बात की है?

धन्यवाद!

शिरीष कुमार मौर्य said...

कमाल की खोज!
कमाल की आवाज!
कमाल के असद जी और कमाल के आप !
इस गायक का आगे भी इन्तजार रहेगा।

अजित वडनेरकर said...

उस्ताद जी को मैने भी नेट खंगालते हुए ही सुना था। ग़ज़ब का तपा हुआ लोहा !!! आपने खज़ाना बना लिया है तो इससे बडी बात और कुछ नहीं क्योंकि ऐसी दौलत हमेशा साझी विरासत ही कहलाती है।
शुक्रिया बहुत बहुत।
फिलहाल बिना सुने टिप्पणी दे रहे हैं क्योंकि श्रवणयंत्र खराब पड़ा है, कल लाया जाएगा।

Neeraj Rohilla said...

मोहम्मद हुसैन सहारंग जी(मैं अब तक उन्हे सांरग कहता था ) को सुनकर आनन्द आ गया । यूट्यूब पर उनका एक वीडियो है जिसमें वो बेतकल्लुफ़ी से "जोवानी लुटा दी" गाते हैं, सुनकर मन प्रसन्न हो जाता है ।

उस्तादजी को सुनवाने के लिये बहुत आभार,