Saturday, September 13, 2008

स्कॉच-व्हिस्की और केल्टिक मशकबीन उर्फ़ "स्कॉटलैण्ड द ब्रेव"



दुनिया की सबसे बेहतरीन स्कॉच-व्हिस्की बनाने वाले देश स्कॉटलैण्ड का कोई आधिकारिक राष्ट्रगीत अब तक नहीं है. अलबत्ता १९५० के आसपास एक स्कॉटिश पत्रकार क्लिफ़ हैनली द्वारा गायक रॉबर्ट विल्सन के लिए लिखा गया "स्कॉटलैण्ड द ब्रेव" इस रिक्त स्थान की पूर्ति हेतु सुझाए जा रही रचनाओं में सबसे ऊपर है.

यह रचना अलबत्ता कैनेडियन सेनाओं की द ब्रिटिश कोलम्बियन ड्रैगून्स नामक यूनिट की आधिकारिक पाइप बैण्ड मार्च बन चुकी है. हाल के वर्षों में रॉयल रेजीमेन्ट ऑफ़ स्कॉटलैण्ड द्वारा भी इसे रेजीमेन्टल क्विक मार्च का दर्ज़ा दे दिया गया.
केल्टिक मशकबीनों की उदास कर देने वाली आवाज़ आपको किसी पहाड़ी वादी में पहुंचा दे तो अचरज न कीजियेगा.

यह गीत और उक्त जानकारी मुझे कल उपहार में मिली एक सिंगल मॉल्ट बोतल के भीतर धरी एक मिनी सीडी और उसके खोल से मिली. अब बची-खुची सिंगल मॉल्ट आप के साथ क्या शेयर करूं. आधी बोतल से पिलाना कुफ़्र होगा, सोचा बैगपाइप ही शेयर किये जाएं:

5 comments:

शिरीष कुमार मौर्य said...

ललचाए जाओ दद्दा !
हम भी पडे है कोने मे अपना मीट - भात का कटोरा लिये !

siddheshwar singh said...

भइये, चुल्लू भर मेरे लई भी और शिरीष का कटोरा तो हई है. भूलियो मती!

महेन said...

मेरे लिये तो बीनबाजा ही काफ़ी है, माल्ट-शाल्ट अपन नहीं पीते।
स्काटलैंड जाने का मौका मिला था। स्काटिश ड्रैस में सड़क के किनारे मशकबीन बजाते लोग दिखे और उनके सामने पड़ा मशकबीन का बक्सा जिसमें आते जाते लोग एक-दो पेंस डाल जाते। मैं सोच रहा था कि ये लोग कितना कमा लेते होंगे? हद से हद हज़ार पाउण्ड? मेरी कमाई इसकी आधी है मगर यूरोप के हिसाब से देखें तो हज़ार पाउण्ड में कोई आत्महत्या भी नहीं कर सकता। बात अजीबोगरीब है कि गरीब भारत के सड़क किनारे भीख मांगते लोग वह दर्द पैदा नहीं कर पाते जो अमीर यूके में मशकबीन बजाता आदमी पैदा कर सकता है। अमीर देश में गरीबी गरीब देश में गरीब होने से ज़्यादा बड़ा अभिशाप है।

मुनीश ( munish ) said...

Mahen deserves three cheers . Alas he doesn't drink. Thanx a lot for this experience.

महेन said...

मुनीश भाई, इतना साफ-साफ मत काटो भाई। पीते हैं मगर बहुत्ते कम और अपन बीयरजीवी हैं, स्काचजीवी नहीं। स्काच का तो एक पैग ही काफी है।