Saturday, September 27, 2008

राह अन्धेरी बाट न छूटे समझ के क़दम उठाना

कौन देस है जाना, बाबू कौन देस है जाना ... यह गीत अक्सर गुनगुनाते हुए इस के संगीतकार-गायक महान पंकज मलिक की कृतज्ञतापूर्ण याद लगातार बनी रहती है.

१० मई १९०५ को कलकत्ता में मणिमोहन मलिक के घर जन्मे पंकज मलिक ने कलकत्ते के विख्यात स्कॉटिश चर्च कॉलेज में अध्ययन किया. उनके पिता का संगीत की तरफ़ कतई रुझान न था अलबत्ता युवा पंकज को बचपन से ही संगीत आकृष्ट करता था. इत्तफ़ाक से एक पारिवारिक संगीतकार मित्र दुर्गादास बन्दोपाध्याय ने पंकज को गाते हुए सुना तो उन्होंने उसे हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में पारंगत बना देने का कार्य करने का फ़ैसला करने में एक क्षण भी नहीं लिया.

बाद में पंकज मलिक ने दीनेन्द्रनाथ टैगोर से रवीन्द्र संगीत की विधिवत दीक्षा ली. इस क्षेत्र में देखते-देखते वे सबसे अधिक जाने-माने गायक-संगीतकार बन गए. उन्हें गुरुदेव की सबसे विख्यात रचनाओं में से कुछ का संगीत रचने का अवसर भी मिला. 'नेमेछे आज प्रोथोम बादोल' उनका पहला रिकॉर्ड था जो १९२६ में रिलीज़ हुआ.

उनके जीनियस ने शनैः शनैः संगीत के तमाम इलाकों में उस्तादी हासिल की को सन १९७३ में दादासाहेब फाल्के सम्मान दिया गया था. वे एक अच्छे गायक के अलावा एक सफल अध्यापक, निर्देशक और अभिनेता थे. प्रमथेश बरुआ की १९३७ में रिलीज़ हुई फ़िल्म 'मुक्ति' ने उन्हें बहुत प्रसिद्धि दिलाई. इस में वे गायक, संगीत निर्देशक और अभिनेता की तिहरी भूमिका में उपस्थित थे.

हिन्दी और बांग्ला फ़िल्मों में अपनी बहुआयामी संगीत प्रतिभा का शानदार प्रदर्शन कर चुके इस अमर संगीतज्ञ को भारतीय फ़िल्म संगीत का पहला "मॉडर्न" संगीत निर्देशक माना जाता है. सारे बड़े पुरुस्कार पा चुके पंकज मलिक को १९७३ में सिनेमा का लब्धप्रतिष्ठ दादासाहेब फाल्के सम्मान दिया गया.

१९ फ़रवरी १९७८ को उनका देहावसान हुआ.



कौन देस है जाना, बाबू कौन देस है जाना
खड़े-खड़े क्या सोच रहा है, हुआ कहाँ से आना

सूरज डूबा चाँद न निकला
बीता समाँ सुहाना
राह अन्धेरी बाट न छूटे
समझ के क़दम उठाना

कौन देस है जाना, बाबू कौन देस है जाना
खड़े-खड़े क्या सोच रहा है, हुआ कहाँ से आना

सास ये आवन-जावन हरदम
यही सुनाती गाना
जीते-जी है चलना फिरना
मरे तो एक ठिकाना

कौन देस है जाना, बाबू कौन देस है जाना
खड़े-खड़े क्या सोच रहा है, हुआ कहाँ से आना

5 comments:

कनिष्ठा शर्मा said...

Fantastic presentation. I had almost forgotten this song. Thank you for bringing so many memories back. Keep the good work going. All the best.

गिरीश मेलकानी said...

मज़ा आ गया पंकज मलिक का गाना सुनकर.

Yunus Khan said...

पंकज मलिक दुर्गापूजा पर कलकत्‍ता रेडियो स्‍टेशन से महिषासुर मर्दिनी कार्यक्रम करते थे । मौका लगा तो इसके अंश सुनवायेंगे आपको । आपके पास हों तो आप ही सुनवा दीजिये ।

Unknown said...

मरे तो एक ठिकाना। बाबू। किसने लिखा यह गाना। बाबू। लोकगीत हो सायद-लागा बड़ा सुहाना। बाबू।

Ashok Pande said...

अनिल भाई, गीत केदार शर्मा का लिखा है. मुझसे हबड़तबड़ में उन के नाम का ज़िक्र छूट गया था.