Friday, October 3, 2008

मुझे सुनाई पड़ती है हमेशा विलाप करती एक चिड़िया


मुझे सुनाई पड़ती है हमेशा विलाप करती एक चिड़िया

अन्ना अख़्मातोवा

मुझे सुनाई पड़ती है हमेशा विलाप करती एक चिड़िया
और मैं सुनती हूं भरपूर गरमियों को विदा होते
सांप जैसा फुंफकारता है हंसिया
मुझे कटते हुए मक्के के तनों की आवाज़ सुनाई देती है

छरहरी चरवाहिनों के नन्हे घाघरे
हवा में उड़ते हैं छुट्टियों में फहराए जाने वाले झंडों सरीखे
प्रसन्न घंटियों की टनटन, और धूल ढंकी पलकों के नीचे से
सरक आने वाली वह निगाह

प्यारभरी बातों से मुझे
आने वाली किसी काली घटना का अन्देशा तक होने की उम्मीद नहीं
पर तुम आओ फिर भी, और देखो तो इस स्वर्ग को
जहां हम साथ थे कभी -प्रसन्न और छलहीन!

मेरे भीतर

एक स्मृति का वास है मेरे भीतर
जिससे न मैं लड़ सकती हूं, न लड़ूंगी
कुंए की गहराई में किसी स्फटिक कंकड़ सी है वह -
ख़ुशी भी, दर्द भी!

मेरी आंखों को देखने वाला शख़्स
इसे देखे बिना नहीं रह पाता
जैसे किसी दुःखभरी कथा को सुनते हुए
वह अधिक विचारवान, शान्त और उदास हो जाता है -

मुझे पता है ईश्वर चीज़ों में बदल देता है लोगों को
मुक्त छोड़कर उनकी जीवित चेतना को
उनकी चमत्कारभरी यातना को जिलाए रखकर.

तुम बदल दिये गए हो मुझ में!

(फ़ोटो: बीमार अन्ना अख़्मातोवा, १९२४)

10 comments:

शायदा said...

मुझे पता है ईश्वर चीज़ों में बदल देता है लोगों को
मुक्त छोड़कर उनकी जीवित चेतना को
उनकी चमत्कारभरी यातना को जिलाए रखकर.

तुम बदल दिये गए हो मुझ में!

क्‍या कहूं इस पर...
बस इतना ही कि आपने यहां इन्‍हें देकर बहुत अच्‍छा किया, पढ़ रहे हैं आप पढ़वाते रहिए।
यह फोटो देर तक ज़हन में रहेगा।

महेन said...

अशोक भाई, बिल्कुल ही अख़्मातोवी हो गए सडनली। मगर चेंज अच्छा है। पढ़वाते रहिये। ये कविताएं जल्दी पीछा छोड़ने वाली लग नहीं रहीं।

Rachna Singh said...

thanks
for givign an opprtunity to read these
regds

ravindra vyas said...

पर तुम आओ फिर भी, और देखो तो इस स्वर्ग को
जहां हम साथ थे कभी -प्रसन्न और छलहीन!
आह।
बेहतरीन अनुवाद।
और वह फोटो जिसके बारे में शायदाजी ने भी लिखा।
मैं उनकी आंखों के सामने अपना बनाया पीला फूल रखना चाहता हूं... जहां अभी राख झर रही है...

रंजन राजन said...

पर तुम आओ फिर भी, और देखो तो इस स्वर्ग को
जहां हम साथ थे कभी -प्रसन्न और छलहीन!
...बहुत अच्छा लिखा है. पढ़वाते रहिये।

Ek ziddi dhun said...

aah, kaisi bheetar utarne walee panktiyan

anurag vats said...

itna sara अख़्मातोवा ek sath...!!!...bahut badhiya...yah shubh sanket hai hindi men is badi kawitri ke awtaran ka...

Geet Chaturvedi said...

बहुत अच्‍छी कविताएं.

vipin dev tyagi said...

बहुत अच्छा सर...जारी रखिये
विपिन

makrand said...

good job u have taken
regards
us to updated with other litreature