Monday, May 4, 2009

साथियो, बेटे का नाम रख दिया गया है

बात निजी है लेकिन फिर आसमान किसलिए है?... और मेरा निजी है ही क्या?
(गलाफाड़ आवाज़ में) साथियो, बेटे का नाम रख दिया गया है. ४ मई को वह २ माह का हो गया.

बेटी का नाम रखते समय मैंने ज्ञानरंजन जी से पूछा था. उन्होंने अपनी शैली में (जो लोग उनकी इस अद्भुत अदा को जानते हैं; उनके लिए) कहा था- 'विजय, जल्दी से बिटिया का कोई प्यारा-सा नाम रख लो वरना तरह-तरह के नाम चलने लगते हैं.'

उन्हीं दिनों कवि निलय उपाध्याय मुंबई आये थे. आजाद मैदान (तबके वीटी स्टेशन के सामने) की घास पर हम लोग लगभग लेटे हुए थे. चर्चा फंसी तो उन्होंने कहा कि उनके मन में एक नाम है अगर मैं पसंद करुँ! उन्होंने नाम सुझाया 'उदिता'. मैंने उनका शुक्रिया अदा करते हुए फ़ौरन स्वीकार कर लिया क्योंकि यह शमशेर जी की एक कविता और आगे को संग्रह का शीर्षक था. ख़ैर, वह आज से 14 वर्ष पहले की बात है.

गुजिस्ता २९ अप्रैल को मैं जबलपुर में था. वहाँ एक आत्मीय कार्यक्रम के दौरान नामकरण समारोह संपन्न हुआ. वहाँ भी नाम रखे जाने को लेकर बड़ी हील-हुज्जत हुई. आखिरकार मैं रूठ गया. चूँकि मामला दामाद जी का था इसलिए मेरी ही चली और मैंने नाम रखा- 'विश्वप्रिय'.

यह नाम सुनते ही करीब ४-५ सौ लोग मुझे बधाई देने दौड़ पड़े. ये सब मेरे ससुर जी के सहकर्मी, अफसरान, व्यौहारीजन, संबंधीजन थे. बड़ा जंका-मंका था.

पता चला कि प्रियजन मेरा रूठना देखना चाहते थे (शादी में दामाद जी घड़ी तक के लिए नहीं रूठे थे; कलेऊ में हमने चीलगाड़ी यानी हवाई जहाज माँगा था; वरना उन्होंने तो पहले ही तय कर रखा था कि नामकरण दामाद जी ही करेंगे और जो नाम वह रखेंगे वह सबको स्वीकार्य होगा).यह बाद को जाहिर हुआ. अब लो, सभी विश्वप्रिय बोलने का अभ्यास कर रहे हैं. उनकी सुविधा के लिए मैंने लाड़ का नाम 'विशु' रख दिया है.

उम्मीद ही नहीं यकीन है कि 'विश्वप्रिय' कबाड़ियों और अन्य आत्मीयों को पसंद आयेगा. आप सबके शुभासीष का एक अर्थ होगा.

ख़ता मु'आफ: टिप्पणियों में से एक टिप्पणी शिरीष के प्रसंग में मुझे बहुत नागवार गुज़री है उसका उल्लेख करना आवश्यक नहीं. लोग चाहते हैं कि यह ब्लॉग भी उनकी तरह हो जाए! मुझपे अनेक वार करके अपना ब्लॉग कितने लोगों ने चमका लिया यह कोई छिपी बात नहीं. कृपया इस महत्वपूर्ण ब्लॉग को भाजपा की तरह दुष्प्रचार (हिटलर का सूक्त) करके अनर्गल न बनाएं. मेरे दादा जी कहते थे 'ह्वा परोसिन हमरी साही.'

शिरीष को मैं एक कवि के रूप में जानता हूँ. 'कबाड़खाना' से वह तभी हटेंगे जब वह कोई निजी कारण देंगे. अन्यथा शिरीष हम सबके चहेते हैं. वह कोई बटमारी या डाकाजनी नहीं करते. वह शब्दों की साधना में तल्लीन है. उन्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं.

...अब एक बात शिरीष के लिए, मुनीष की टिप्पणी में ऐसा कुछ भी नहीं था कि इतना बड़ा निर्णय लिया जाए. या तो आप उस समय उद्विग्न थे या कोई और कारण होगा. बहस की बात तो मैं कर सकता हूँ. लेकिन नशे में भी मैं कभी 'कबाड़खाना' से अलग होने की बात नहीं सोच पाया. इस ब्लॉग से जुड़कर कोई किसी पर अहसान नहीं कर रहा है. अशोक भाई पर तो हरगिज नहीं. एक सदस्य होने के नाते मैं फिर कहता हूँ कि मुनीष की टिप्पणी शिरीष आप फिर पढ़ें. और कोई वजह होने का अंदेशा शायद इसलिए नहीं है कि उसकी बाकायदा वजह आपने पोस्ट के तौर पर स्पष्ट छापी है... जो कहीं से कोई छोटी-मोटी वजह भी नहीं लगती. बहरहाल...

गाना नहीं सुन पा रहा हूँ!

12 comments:

siddheshwar singh said...

बोफ़्फ़ाइन !
भौत बढ़िया नाम !
विशु को चच्चा ओर से पियार!!
और क्या!!

मुनीश ( munish ) said...

Sundar! Badhaee ! A very contemporary name in this era of VISHVIKARAN .

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

सिधू बलदाऊ, जे देक्खो , आर्शीवाद तो रह ही गया!

siddheshwar singh said...

आशीष !!
आशीष !!
आशीष !!
आशीष !!
आशीष !!

Ashok Pande said...

बहुत अच्छा नाम ध्ररा बालक का. विश्वप्रिय को आशीष और उसके माता-पिता को बधाई.

अच्छा है विजय भाई, बहुत अच्छा! बच्चे का ख़्याल रखें.

PD said...

badhai ji badhai..
hame naam bahut badhiya laga.. :)

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

आप सबका बहुत ज़ोर से धन्यवाद!

दीपा पाठक said...

विश्वप्रिय का इस दुनिया में स्वागत, माता-पिता को हार्दिक बधाई। शिशु को स्वस्थ, सुखी, सुंदर जीवन की ढेर सारी शुभकामनाएं।

Unknown said...

माता सहमत हैं न इस नाम से। अपन की शुभकामना है कि बालक ब्रह्मांडप्रिय बने।

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

Anil ji, Deepa ji ka dhanyavaad! Sab sahmat hain ji.

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

विश्वप्रिय को आशीष। उसके पापा को बधाई।

ravindra vyas said...

नाम अच्छा है। बधाई।