Wednesday, June 10, 2009

'द डिसाइसिव मोमेन्ट': फ़ोटोपत्रकारिता के जनक ब्रेसों के कुछ फ़ोटोग्राफ़

फ़ोटोग्राफ़ी में एक खास मूड, एक खास क्षण को पकड़ा जाना सबसे महत्वपूर्ण होता है. तकनीकी भाषा में इसे decisive moment कहा जाता है. ब्रेसों का कथन है: "There is nothing in this world that does not have a decisive moment."

फ़्रांसीसी मूल के ओनरी कार्तिएर ब्रेसों (२२ अगस्त १९०८ - ३ अगस्त २००४) को आधुनिक फ़ोटोपत्रकारिता का जनक माना जाता है. उनके बारे में इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि फ़ोटोपत्रकारों की कई पीढ़ियां उनसे प्रभावित रहीं और अपने जीवन काल में ही वे एक कल्ट के तौर पर स्थापित हो चुके थे.

इन्दौर में रहने वाले श्री सुशोभित सक्तावत ने मुझे ब्रेसों के कुछ फ़ोटोग्राफ़ मेल से भेजे. क्यों न उन्हें आप के साथ शेयर किया जाए.


मशहूर शिल्पकार अल्बेर्तो ज्याकोमेती एक प्रदर्शनी में


चीन, दिसम्बर १९४८


फ़्रांस, १९६८


फ़्रांस,१९३२


फ़्रांस, १९३२


फ़्रांस, द वार डिपार्टमेन्ट


वडोदरा, गुजरात, १९४८


इटली, १९५१


हाइड पार्क, लन्दन, १९३७


विख्यात पेन्टर ओनरी मातीस अपने घर में


मैक्सिको सिटी, १९३४


पेरिस, १९५९


लूसियाना, अमेरिका, १९४७

मैनहटन, अमेरिका, १९४७

"Photography is not like painting, There is a creative fraction of a second when you are taking a picture. Your eye must see a composition or an expression that life itself offers you, and you must know with intuition when to click the camera. That is the moment the photographer is creative.Oops! The Moment! Once you miss it, it is gone forever." - ब्रेसों (द वॉशिंगटन पोस्ट को दिए गए एक इन्टरव्यू का हिस्सा, १९५७)

एक तरह से सुशोभित सक्तावत साहब की ही वजह से यह पोस्ट लगाई जा रही है, सो उन्हें शुक्रिया भी!

5 comments:

महुवा said...

amazing.....n....impressive....!!!

ravindra vyas said...

अभी कुछ दिनों पहले और कल भी, जब सुशोभित मेरे आफिस आए थे तो मैंने अपने सिस्टम में सेव कई सारे फोटोज के साथ ही ब्रेसां के फोटो उनको दिखाए थे। मैं ब्रेसां के दो फोटो जल्द ही कबाड़खाना पर लगाऊंगा। मुझे लगता है सही उच्चारण ब्रेसां हैं। निश्चित ही ये महीन और बारीक तस्वीरें हैं। प्रत्यक्षा जी ने अपने ब्लॉग पर एक पोस्ट में ब्रेसां का बहुत ही खूबसूरत चित्र लगाया था।
चित्रकार का सही नाम शायद हेनरी मातिस है। वे भी फ्रेंच हैं और फॉविज्म कला आंदोलन के जनक माने जाते हैं। फाविज्म के चित्रकारों को उस समय कटु आलोचनाएं की गई थीं और कहा गया था कि ये तो जंगली जानवर हैं, और इन्होंने जनता के मुंह पर रंगों के डिब्बे खाली किए हैं। हेनरी मातिस ने तो स्त्री के माथे पर हरा रंग लगाया है और पेड़ों को लाल कर दिया है। उनके इस अजब ढंग से रंग लगाने की योजना की खूब आलोचनाएं की गईं।
इधर आज ही खबर है कि पिकासो म्यूजियम पेरिस से पिकासो की स्कैचबुक चोरी हो गई है। इस संबंध में जल्द ही एक पोस्ट कबाड़खाना पर होगी।
इन बेहतरीन फोटो के लिए आप दोनों को बधाई।

मुनीश ( munish ) said...

The post should have stayed on top for a li'l longer ! i look forward to more posts of this caliber .

ravindra vyas said...

मुनीशजी, मैं आपकी बात से सौ प्रतिशत सहमत हूं। पिकासो की पोस्ट मुझे थोड़ा रूककर लगाना थी।

Rangnath Singh said...

simply awesome !!

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