Sunday, July 12, 2009

उदय प्रकाश जी ने ऐसा किया ही नहीं होगा - आप झूठ बोल रहे हैं!

अविनाश

अरसा हुए, ब्‍लॉगिंग से कटे। कल दिलीप मंडल जी के फोन से कबाड़खाने पर चल रही बहस के बारे में ख़बर मिली। पूरी बहस देखे बिना ही मैंने उनसे कहा कि मसला गंभीर है - लेकिन उदय प्रकाश जी की दलील सुननी चाहिए। उदय प्रकाश जी ने दलील दी भी है, ऐसा उन्‍होंने बताया। पर वह संतोषजनक नहीं है। शाम में उदय प्रकाश के प्रिय और हमारे मित्र विश्‍वदीपक से आजतक के दफ्तर में मुलाक़ात हुई, तो उन्‍होंने डीटेल्‍स दी। कहा कि उदय प्रकाश जी ने बात की है, लेकिन वे मूल मसले से कट गये हैं। मसला ये कि वो कौन-सी मजबूरी रही कि योगी आदित्‍यनाथ के हाथों उन्‍हें पुरस्‍कार लेना पड़ा।

तो ख़बर ये है कि जुलाई 2009 के पहले हफ्ते में गोरखपुर में उन्‍होंने योगी आदित्‍यनाथ के हाथों पहला नरेंद्र स्‍मृति सम्‍मान पाया। सम्‍मान पाना बड़ी बात नहीं है। उदय प्रकाश हमारे समय के बड़े लेखक हैं - और यक़ीनन किसी भी सम्‍मान से बड़े। कई बार ऐसा होता है कि बड़ा लेखक बड़े सम्‍मान की जगह छोटे सम्‍मान को अपने से मोहब्‍बत करने वालों का मान रखने के लिए गहरी उदारतापूर्वक ग्रहण कर लेता है। हम मान सकते हैं कि नरेंद्र स्‍मृति सम्‍मान ऐसी ही कोटि का सम्‍मान रहा होगा। लेकिन योगी आदित्‍यनाथ? वह तो दलित और मुस्लिमविरोधी शख्‍सीयत के रूप में प्रचारित है और यह प्रचार कतई झूठा भी नहीं है। ऐसे योगी के साथ एक सार्वजनिक मंच पर खड़े होने का दुस्‍साहस भी उदय प्रकाश जी ने कैसे किया - यह हम जैसे उदय प्रकाश के प्रशंसकों के लिए एक दुख का प्रसंग है, क्षोभ का प्रसंग है।

क्‍या इस मंच शेयरिंग को हम उदय प्रकाश जी की महानता के रूप में देखें? या उन प्रशंसकों की आत्‍माओं पर हमले के रूप में देखें - जो उदय प्रकाश जैसे लेखकों को अपना आदर्श मानते रहे हैं? हज़ारों मुसलमानों का क़त्‍ल करने वाले योगी के साथ खड़े होने की पारिवारिक दुविधा और मजबूरी का तार्किक पक्ष भला क्‍या हो सकता है? नहीं हो सकता है, इसलिए उदय प्रकाश जी ने उस तर्क को रचा भी नहीं है बल्कि इस मसले की आड़ में खुद की हो रही आलोचना को समाज और साहित्‍य में जातिवादी गंठजोड़ की साज़‍िश बता कर मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की है। हमारी सदिच्‍छा भी है कि ये मामला रफा-दफा हो जाए और उदय प्रकाश हमारे लिए उतने ही बेदाग़ बनें रहें - जैसा कि वे रहे हैं। पर लेखकीय हठ इसके आड़े आ रहा है। आत्‍मस्‍वीकार एक बड़ा हथियार हो सकता था उदय जी के बेदाग़ बने रहने में - पर वे इससे बच रहे हैं। पटना में नब्‍बे के दशक में ग़रीब-मज़लूमों के नरसंहारों के दौर में तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री लालू यादव से पुरस्‍कार लेने के बाद बाबा नागार्जुन ने उन्‍हें दम भर गाली देकर खुद को पवित्र किया था।

बहरहाल, मेरे लिए विस्‍मयकारी प्रसंग ये है कि जो लेखक महाराष्‍ट्र के अमरावती में दलित आंदोलनकारियों के बीच नायक की तरह सम्‍मान पाता है, वह उत्तर भारत में एक दलित और मुसलमान विरोधी खलनायक के साथ खड़ा नज़र आता है! क्‍या कुछ हज़ार किलोमीटर की यात्रा में विचार और चिंतन का भी कायांतरण हो जाता है? नहीं ऐसा संभव नहीं है। मुझे तो नहीं लगता। यह सब झूठ है, जो लिखा जा रहा है। अख़बार की वो कटिंग भी झूठ है, जो कबाड़खाने पर चिपकायी गयी है। जितने लोगों ने लिखा है - सब झूठ है। एक सच की प्रतीक्षा में मैं खूब रोना चाहता हूं...

...आइए हम, उदय प्रकाश के प्रशंसक, अपने आंसू बहा कर अपने लेखक की तरफ से प्रायश्चित करें।

4 comments:

sanjay vyas said...

इस प्रकरण पर सबसे ज्यादा संवेदित करने वाली पोस्ट.
मेरे जैसों की एक पूरी पीढी उदय प्रकाश के लिखे को cult following के अंदाज़ में पढ़ती रही है.पहली बार उनको लेकर मेरे मन में बनी मूर्ति में खरोंच जैसा कुछ तब हुआ जब अभय तिवारी के ब्लॉग पर उनकी कविताओं के बारे में पढा था. "विद्रोह का भी बना बनाया स्पेस है हिंदी में........"ये टिप्पणी उनकी कविताओं में आये तयशुदा तेवरों,मुहावरों और भंगिमाओं को लेकर थी. उनकी कविताओं को लेकर ये एक नया पाठ था जो शायद और लोग भी महसूस कर रहे होंगे पर मेरे जैसे प्रशंसकों के लिए ये स्वतः संभव नहीं था.
उसके बाद कठिनता से हासिल एक सम्यक दृष्टि से उनका लिखा पढता रहा हूँ और उनकी कहानिओं को पढने के बाद अब भी लगता है की मैं एक शानदार यात्रा से लौटा हूँ.और इस पोस्ट ने शायद मेरी मनः स्थिति को छुआ है जो इस प्रकरण के बाद नित नयी बहस से दो चार होकर बनी है.
सच में लगता है कि काश ये सच न होता. शायद ये सच न हो.एक देवता का अवरोहण देखना क्लेशकारी है.....

मुनीश ( munish ) said...

Yes O noble ones! Weep n' wail as they do in the final acts of Greek tragedies ! Thus crying yourselves hoarse u will endear yourselves to NATRAJ-- THE GOD OF ALL DRAMATIC ARTS.

Unknown said...

रोओ मत अविनाश। बड़ी डिजाइन के विश्लेषण और लगातार झरती छोटी सूचनाओं पर आधारित एक्शन की प्रतीक्षा करो। वे तत्व मेन्डलीफ की आर्वत सारिणी से बाहर कर दिए जाएंगे। सब ठीक हो जाएगा।
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मैंने ऐसा कुछ नहीं किया है जिसकी 'सफ़ाई' देने की ज़रूरत मुझे हो. अपने ब्लाग में मैं इसका खुलासा करूंगा. अपने भाई की मृत्यु के बाद उनकी स्मृति में होने वाले नितांत पारिवारिक कार्यक्रम का यह सारा प्रसंग है. योगी आदित्य नाथ ने कोई 'पुरस्कार' नहीं, मेरे भाई कुंवर नरेंद्र प्रताप सिंह की स्मृति में 'नरेंद्र स्मृति' पहला सम्मान इसलिए मुझे दिया था क्योंकि ऐसा परिवार के सभी लोग चाहते थे. योगी आदित्य नाथ से उनके पारिवारिक संबंध हैं. 'अमर उजाला' में छ्पी तस्वीर में दायीं ओर मेरी भतीजी डा. भारती सिंह, जो एंसिएंट हिस्टरी की प्राध्यापिका हैं और उसके बगल में मेरे भतीजे सामंत राज की तस्वीर है. इस अवसर पर जिस किताब का विमोचन हुआ उसमें मेरे भाई के साथ मेरे संबंधों का पूरा ज़िक्र है.वैचारिक मतभेदों का भी. किताब का शीर्षक है 'इससे बेहतर शबाब क्या होगा'.
इस मुद्दे को तूल बनाने के पीछे क्या मंशा है, मैं इतना अबोध भी नहीं हूं, कि न समझूं. आप सबका मेरे प्रति सदभाव के लिए शुक्रिया. वैसे बिना तथ्यों की पड़ताल किए मुद्दा खड़ा करने की बीमारी से मीडिया और ब्लागर्स दोनों को बचना चाहिए. (उम्मीद है ऊपर के वाक्यों में ऐसा कुछ नहीं होगा जिससे 'लोकतांत्रिक मंच' के 'जाति-निरपेक्ष' सदस्य कोई और मुद्दा खड़ा करें. मैंने इसे एक 'बड़ी डिज़ाइन' इस लिए कहा था क्योंकि इस पूरे प्रकरण में सम्मिलित तत्वों के बारे में मुझे सूचनाएं लगातार मिल रही हैं. आभार और शुभकामनाएं!)
July 12, 2009 2:08 PM

जहाजी कउवा said...

अरे हिंदी के रखवालो अब शांति रखो....
एक बात सोचो.
कबाड़खाने का या फिर उदय प्रकाश का पाठक कौन है?
अरे पाठक है आम आदमी
क्योंकि हिंदी में लेखक ज्यादा है और पाठक कम है
मैं कबाड़खाने पर पढने आता हूँ
सुन्दर रचनाएँ, सुन्दर संगीत और तसवीरें
यह क्या चल रहा है यहाँ
क्यों कबाड़खाना ऐसी छीछालेदर की आज्ञा दे रहा है
अरे उदय प्रकाश ने एक गलती की
पर कबाड़खाना वालो आप तो गलती पर गलती करते जा रहे हो
पिले पड़े हो यार
हो गया जाने दो
नए नए कबाडी बने लोग, और ये वही लोग है जो उदय प्रकाश के गुण गाते नहीं फिरते थे
आज बंदूकें लेकर खड़े हो गए और हर घंटे हवाई फायर दाग रहे है
बंद करो बॉस , तुंरत बंद करो
क्योंकि एक बार पढने वालो ने आपका पाखाना संवाद पढना बंद किया
तो बस लिखने वाले बचेंगे
और
लिखने वाले बस लिख लिख कर झगडा करेंगे
पढेगा कोई नहीं
तो बस बैठे रहना
व्हाट एन आईडिया सरजी करते !!