Friday, September 18, 2009

जीवन ने हमें जिया हमने जीवन को नहीं



पुर्तगाली महाकवि फ़र्नान्दो पेसोआ ने कुछ रचनाएं अंग्रेज़ी में भी की थीं. अलैक्ज़ैंडर सर्च के नाम से की गई इन रचनाओं में 'सालोमन वेस्ट की कहानी' और 'स्मृतिलेख' सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती हैं.

'स्मृतिलेख' से प्रस्तुत हैं चार अंश.


१.

कुछ प्रेम किए जाते प्रेम जैसे थे कुछ इनाम दिए जाते इनामों जैसे.
मेरे खाए-पिए साथी के लिए मैं एक नैसर्गिक पत्नी जैसा था
मैं पर्याप्त था जिसके लिए मैं पर्याप्त था.
मैं चला, सोया और बूढ़ा हुआ बिना किसी भाग्य के.

२.

एक ख़ामोशी है जहां शहर पुराना था.
वहां घास उगती है जहां एक भी स्मृति नहीं नीचे.
हम जो भोजन कर रहे थे शोर करते, आज बालू हैं.
कही जा चुकी कथा.
फुसफुसाती है सुदूर टापों की आवाज़.
रैनबसेरे की आख़िरी बत्ती बुझती है.

३.

जीवन ने हमें जिया हमने जीवन को नहीं. हमने देखा, बातें कीं
और हम रहे जैसे मधुमक्खियां शहद चूसती हैं.
पेड़ तब तक बढ़े जब तक हम ज़िन्दा थे.
हमने प्रेम किया देवताओं को लेकिन जैसे हम देखते हैं एक जहाज़ को
न जानते हुए कि हम जानते हैं हम गुज़रे.

४.

यह ढंके है मुझे जिसके ऊपर कभी नीला आसमान था.
मिट्टी रौंदती है मुझे जिसे कभी मैंने रौंदा. मेरे अपने हाथ ने
लिखा इन स्मृतिलेखों को यहां, आधा जानते हुए कि क्यों
आख़िर में, और गुज़र रहे जुलूस का सब कुछ देख चुकने के बाद.

2 comments:

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

कविता जरूर अच्छी होगी। पुर्तगाली महाकवि की लिखी हुई जो ठहरी।

मुझे समझ में नहीं आयी, यह मेरी समस्या है। कोई मदद करेगा?:)

naveen kumar naithani said...

माटी कहे कुम्हार से...
कवितायें पसन्द आयीं.जरा चित्र के बारे में भी जानकारी दें.लगता है कहीं कुछ पहचाना सा है.cubism से जुडे़ बहुत से चित्र सिर्फ श्वेत- श्याम पुस्तकों में ही देखे हैं.
अशोक भाई , आपके चित्रकार होने का लाभ उठाते हुए हम अपना कला-बोध भी दुरूस्त कर लें तो यह एक बडे़ पाठक वर्ग के हित में होगा.