Friday, October 2, 2009

कुरिन्जी की छाया में सन्नाटे का छंद



अभी कुछ दिन पहले ही कविताओं की एक छोटी - सी किताब मिली है जिसका शीर्षक है Echoes of Silence. कवयित्री हैं रानी जयचन्द्रन जो केरल के एक कस्बे वर्कला में रहती हैं. अंग्रेजी और मलयालम में लिखने वाली रानी की यह तीसरी किताब है . उनकी पहले की दो किताबें Poems on Radha and Krishna और A Perfect Legacy केरल साहित्य अकादेमी से प्रकाशित हो चुकी हैं और अब अगस्त 2009 में यह तीसरी किताब Echoes of Silence अल्का पब्लिकेशन्स , तिरुवनंतपुरम से प्रकाशित हुई है.

प्रस्तुत पुस्तक में कुल 22 कवितायें संकलित हैं.ये कवितायें समकालीन भारतीय अंग्रेजी कविता के उस रूप से परिचित कराती हैं जो अपनी जड़ों से गहराई तक संबद्ध है. ये कवितायें प्रकृति तथा परिवेश से मात्र रागात्मकता और रुमानियत ही ग्रहण नही करतीं बल्कि जीवन - जगत की चुनौतियों व संघर्षों से टकराने के लिए भरपूर ऊर्जा और उत्साह भी हासिल करती दिखाई देती हैं: और ऐसा करते हुए वे न तो सपाट बयानी पर उतरती नजर आती हैं और न ही कोई वक्तव्य या सूत्रवाक्य बन कर रह जाती हैं. लयात्मकता , सीधी सरल भाषा , आत्मपरक कहन शैली और लाउड हो जाने से बचने का आत्म - अनुशासन इस संग्रह की कविताओं की कुछ अन्य खूबियां हैं जो इसे रेखांकित करने योग्य बनाती हैं.कविता प्रेमियों के बीच इस पुस्तक का स्वागत किया जाएगा , ऐसी उम्मीद है.

रानी जयचन्द्रन के इस सद्य:प्रकाशित संग्रह से कुछ चुनिन्दा कविताओं अनुवाद मैंने किया है जिनमें से फिलहाल दो कवितायें Life Eternal और Mesmerizing Love 'कबाड़खाना' के पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं-

अनंत जीवन

घाटी की ढलानों पर
ऐश्वर्य के मुकुट की तरह
फिर खिला है कुरिन्जी*
बारह बरस के बाद.
नर्म - नाजुक फुहार और
मंद - मंथर हवा के सानिध्य में
डोल रही हैं
जामुनी- नीले रंग के फूल की चपल आँखें.

खूब गहरे तक धँसकर
पंखुड़ियों को चूमती हैं सूरज की किरणें
और उनमें भर देती हैं सुर्ख रंगत की सजावट .
चंद्रमा की रोशनी से नहाई हुई रात में
फैलता ही जा रहा है
ढलानों पर धीर धरी धरती का खिंचाव.

प्रेम की ऊष्मा से छलछलाती हवा
फुसफुसाहटों में करती आ रही है कोई बात
ठगी ठिठकी गंभीर हो ठहर जाती है
देर तक इस जगह.
और शान्त तैरता हुआ बादल
गाने लगता है
एक अकेले दिवस का
कभी न खत्म होने वाला गौरवगान ।
बारह बरस के बाद.
फिर खिला है कुरिन्जी
मंद - मंथर हवा के सानिध्य में
डोल रही हैं
जामुनी - नीले रंग के फूल की चपल आँखें।
_______

जादुई प्यार

अस्ताचल के आलिंगन में आबद्ध
डूबता सूरज
समुद्र से कर रहा है प्यार
इस सौन्दर्य के वशीकरण में बँधकर
देर तक खड़ी रह जाती हूँ मैं
और करती हूँ इस अद्भुत मिलन का साक्षात्कार।

प्यार की प्रतिज्ञाओं और उम्मीदों से भरी
भीनी हवा के जादुई स्पर्श से
अभिभूत और आनंदित मैं
व्यतीत करती हूँ अपना ज्यादातर वक्त
यहीं इसी जगह
और मुक्त हो देखती हूँ
जल में काँपते चाँद को बारम्बार.

इस अद्भुत मिलन के दृश्य से
भीगकर भारी हुई पृथ्वी
खड़ी रह गई है तृप्त -विभोर.
और चाँदनी की रश्मियों से चित्रित
बनी - अधबनी छायायें
फैलती ही जाती हैं वसुन्धरा के चित्रपट पर
यहाँ वहाँ हर ओर.
_________

* कुरिन्जी : दक्षिण भारत की नीलगिरि पर्वतमाला और केरल के कुछ इलाकों में पाया जाने वाला फूल है जो बारह वर्ष में एक बार खिलता है और विस्तृत पहाड़ी ढ़लानों को स्वर्गिक आभा से भर देता है. 'नीलगिरि' नामकरण वस्तुत: इस जामुनी - नीले रंग के फूल की ही महिमा का ही मूर्त रूप है. कुरिन्जी दक्षिण भारत के साहित्य , चित्रकला , संगीत, सिनेमा और लोक जीवन से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है.इस फूल के बारे में विस्तार से जल्द ही. अभी तो कुरिन्जी की छाया में सन्नाटे का छंद सुनिये और इस जादुई पुष्प की ऊपर लगी एक छवि भर देखिए.

3 comments:

डॉ .अनुराग said...

दूसरी कविता ने प्रभावित किया है

के सी said...

कविताओं से कहीं अनुवाद का आभास तो नहीं हो रहा, बधाई. कुरैंजी के बारे में कवि त्रिलोचन ने भी अपनी कविताओं में लिखा था, कौमार्य और पवित्रता का प्रतीक ये फूल सच में अति विशिष्ट है पूर्ण कुम्भ की तरह उपास्य भी.

Arshia Ali said...

पुस्तक परिचय और कविताओं के पद्यानुवाद के लिए शुक्रिया।
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