Tuesday, November 3, 2009

दुलू दा का जुगाड़ बोट, कोकाकोला कलर मुस्कान

वह भी कोई देश है महाराज, भाग-8

नदी, कौवे औऱ रेडियो के फोकटिया आर्केस्ट्रा से उठाकर एक दिन दुलू भराली बड़े प्रेम से मुझे अपना जुगाड़ बोट दिखाने ले गए। पुरानी नाव के पतवार को चूल्हे में झोंककर लोकल माछ पकाने के बाद उन्होंने उसमें नया डीजल इंजन सेट लगा दिया था। एक पाईप से आता नदी का पानी, मशीन को ठंडा रखता था, दूसरी तरफ से निकल कर नदी में मिल जाता था। एक छोर पर बैठ कर वे एक लम्बे बांस से नाव की दिशा निर्धारित करते थे और छोटी डंडी से इंजन का नोजल पिन दबाकर स्पीड घटाते, बढ़ाते थे। कुल खर्चा आया था सत्रह हजार और मेरा किराया, तामुल से गल चुके मसूढ़ों की कोकाकोला मुस्कान के साथ कुछ नहीं। साथ में नसीहत कि जिसे भाईटी (छोटा भाई) बोल दिया, उससे किराया लेगा तो कुष्ठो (कोढ़) हो जाएगा।

अब मौज हो गई। जब जी चाहे लंबी तान कर स्टीमर के डेक पर जाड़े की धूप में सोओ, जब जी चाहे दुलू दा के इस पार-उस पार सवारियां ढोओ। अपने वतन बेगुसराय लौटने के पहले आखिरी बार उमानंद मंदिर में दर्शन करने आए एक बिहारी परिवार का नदी के बीच में इंतजार करते हुए उन्होंने एक दिन खुद से बहुत धीमी, खोई आवाज में कहा, "आल्फा लोक केमन बीर मानुस, गरीब मारि आसे।"

दुलू दा का कहना था कि अब फिर सुल्फा सरकार से पैसा लेकर पुलिस के साथ अल्फा नेताओं के घरों पर हमला करेगा। (थोड़े दिन पहले जब अल्फा कमांडर परेश बरूआ के घर जब हमला हुआ था तब उसकी मां मिलकी बरूआ अकेली थी। वह बम फेंकने वालों से अपने बेटे को समझाने की अपील कर रही थी। अल्फा के चेयरमैन अरविन्द राजखोआ के घर पर हमले के बाद उसके स्वतंत्रता सेनानी पिता अफसोस कर रहे थे कि उनकी देश सेवा व्यर्थ गई। उसी समय राजखोवा की बहन ने पुलिस इन्सपेक्टर भर्ती के लिए परीक्षा दी थी।) वह किसी भी तरह मानने को तैयार ही नहीं थे कि अल्फा आईएसआई से सिर्फ पैसा और हथियार के बदले बिहारियों को मारकर भगाएगा। अपने बनाए देसी जुगाड़ बोट की गड़गड़ाहट के ऊपर से वह चिल्लाए कि आगुत साल इलेक्शन होबो। हत्या खेल में पालिटिक्स है। सब निर्वाचन का खेला है रे भाईटी। जो पाल्टी बिहारी भगाने का सपोर्ट करेगा, उसको देसी, विदेसी मुसलमान सब उसको सपोर्ट करेगा। चालीस निर्वाचन क्षेत्र है जहां मुसलमान फैसला करेगा। इसमें मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार महंतो का क्षेत्र नगांव भी है जहां इंदिरा गांधी के राज में नेली नरसंहार हुआ था।

उसी समय केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के तहलका स्टिंग आपरेशन फेम राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण का भेजा चार सांसदों का एक दल भी असम में घूम रहा था। इन सांसदों ने जांच रिपोर्ट दी थी कि कांग्रेस और असम गण परिषद दोनों मुसलमानों को अपना वोट बैंक मानते हैं लिहाजा अल्फा को प्रत्यक्ष-अप्रत्य़क्ष मदद कर रहे हैं। ये दोनों पार्टियां चाहती हैं कि चुनाव के दौरान भाजपा का हिंदी भाषी वोटर यहां से भाग जाए। चूंकि अगप उस समय बाजपेयी की केंद्र सरकार में साझीदार थी, इसलिए उसके साथ जरा रियायत बरतते हुए बताया गया था कि भाजपा और अगप आईएमडीए (इलीगल माइग्रेशन डिटेक्शन एक्ट) पर पुनर्विचार की मांग कर रहीं हैं लेकिन कांग्रेस इसे बदलने के हक में नहीं है क्योंकि बांग्लादेशी उसके पुराने वोटर हैं। दरअसल बिहारियों को मारने का खूनी खेल चरम पर पहुंचा कर कांग्रेस राज्य में राष्ट्रपति शासन लगवाना चाहती है ताकि अपनी पुरानी, वफादार प्रशासनिक मशीनरी का चुनाव में इस्तेमाल किया जा सके।

दुलू दा की असम की नब्ज पर पकड़ उतनी ही सटीक थी जितनी बांस की उस संटी पर थी जिससे वे डीजल इंजन का नोजल दबाकर अपनी जुगाड़ बोट की स्पीड घटाया,बढ़ाया करते थे। लेकिन तभी असली राजनीतिक ड्रामा सादिया कुकुरमारा कांड के बाद मुख्यमंत्री आवास में शुरू हुआ। सात दिसम्बर को तिनसुकिया और अरूणाचल के बीच सादिया के जंगल में उग्रवादियों ने शाम के धुंधलके में बिहारी मजूरों के जत्थे को एक ट्रक से उतार कर कतार में खड़ा किया, नाम-पता पूछा और भून डाला। तीस आदमी, औरतें, बच्चे मारे गए। ये मजूर तेजू में लगी साप्ताहिक हाट से राशन, तेल, मछली खरीद कर लौट रहे थे। दो दिन लाशें वहीं जंगल पड़ी सड़ती रहीं। आतंक इतना था कि कोई पत्रकार भी मौके पर नहीं जा पाया। तीसरे दिन असम के स्वास्थ्य मंत्री के काफिले के साथ वहां पहुंचने वाली पहली पत्रकार एक नगा लड़की बानू थी।
मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार मंहतो पत्रकारों को घर बुला-बुला कर एक वीडियो कैसेट दिखा रहे थे जिसमें स्क्रीन पर खुद को कांग्रेस का पुराना कार्यकर्ता बताते हुए एक नीम पागल बूढ़ा आता था। वह हाथ उठाकर ईश्वर से कहता था कि ये हत्याएं अल्फा के जरिए कांग्रेस करा रही है ताकि बांग्लादेशियों के यहां रहने की जगह बने और वह उनके वोट बटोर सके। यह भी कि इस नरसंहार से उसका मन फट गया है कि इसलिए वह कांग्रेस के कार्यकर्तापने से इस्तीफा दे रहा है। इसके बाद रिमोट का ऑफ बटन दबाते हुए महंतो कहते थे, ये है असलियत। दरअसल कांग्रेस मेरी सरकार बर्खास्त करा कर राष्ट्रपति शासन लगवाना चाहती है। लेकिन राष्ट्रपति शासन की उन्हें जरा भी परवाह नहीं थी। उनकी गवर्नर ले. जनरल एस.के. सिन्हा से खूब छन रही थी जो उन्हें सार्वजनिक मंचों पर भी बेटा प्रफुल्ल कुमार कहकर संबोधित किया करते थे।उधर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और भावी मुख्यमंत्री तरूण गोगोई अपना रिवर्स कैसेट चला रहे थे। वे हर रात, अपने घर डिनर जीमते पत्रकारों को समझाते थे कि टेलीविजन वाला बूढ़ा दरअसल असम गण परिषद का आदमी है। खुद को कांग्रेसी कहने के एवज में सरकार ने उसका पक्का घर बनवा दिया है। ये है हमारी पार्टी का जलवा, जिसका नाम लेते ही झोपड़ी की जगह पक्का मकान खड़ा हो जाता है। (जारी)

3 comments:

Unknown said...

Excuse me for incorrigble slips and proof errors. despite earnest efforts they just occur.

pankaj srivastava said...

का भाया...गलती हिंदी मा करिहो अउर माफी अंग्रेजी मा मंगिहौ..अब जिनका हिंदी नहीं आवत, उइ गलती पकिरै न पइहैं और जौन हिंदी जानत हैं,उनका पता है कि कीबोर्ड पर अंगुलिया रपट गय होई। या सक तो तुम्हरै दुस्मनौ न करत होइहैं कि तुम बोलत हौ अउर मेहरारू लिखत है... यहि तरह के दोखी तो अंगरेजिन मा हयं...
यहि लिए माफी छोड़ौ अउर बहावौ जमके यही तरह की बोर्ड से ब्रह्मपुत्र कै धार...अइस बहावौ कि गंगामाई के बेटवन के आंखी खुलि जाए..

मुनीश ( munish ) said...

@ Anil -- Errors unless create terror are pardonable my dear.
बाकी रही बात हिन्दी मेन लैंड की पब्लिक को दुनिया भर में मिल रही नफरत और
चूतडों पे लात पड़ने की तो उसकी वजह है हमारी एक बहुत ही लिज-लिजी सी छवि जो
तब सारी दुनिया के सामने उभर के आती है जब इस सुपर -पावर इन दे मेकिंग के नेतागण
सरकोजी, ओबामा और ब्लैक -बेल्ट धारी पुतिन जैसे डेली जिम-गोअर्स के साथ खडे होकर के
फोटुएं खिंचवाते हैं और उनके हाव-भाव और बाडी- लैंग्वेज पूरे भारत की चिपचिपी सी छवि को
प्रतिष्ठापित करते हैं ! पहले गैर हिंदी भारतीय राज्य मारते हैं और फिर आस्ट्रेलिया , चीन व अन्यान्य मुल्क
अब ये न पूछना क्या....?