Thursday, January 21, 2010

दधिचोर गोपीनाथ बिहारी की बोलो जै


शिशिर की कँपन का अभी अंत नहीं हुआ है किन्तु तिथि तो कह रही है वसन्त आ गया है। वसंतागम के साथ ही आजकल 'कबाड़ख़ाना' पर नज़ीर अकबराबादी का साहित्योत्सव चल रहा है। सच है कि जिसने नज़ीर को नहीं पढ़ा उसने कुछ नहीं पढ़ा। इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए आइए कुछ पढ़ें और सुनें भी। प्रस्तुत है नज़ीर की एक कालजयी रचना ' कन्हैया का बालपन' के कुछ अंश।

शब्द : नज़ीर अकबराबादी
स्वर: उस्ताद अहमद हुसैन व उस्ताद मोहम्म्द हुसैन





क्या - क्या कहूं मैं कृष्न कन्‍हैया का बालपन।
ऐसा था, बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या- क्या कहूँ .......

उनको तो बालपन से ना था काम कुछ जरा।
संसार की जो रीत थी उसको रखा बचा।
मालिक थे वो तो आप ही, उन्‍हें बालपन से क्‍या।
वाँ बालपन जवानी बुढ़ापा सब एक सा।
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या - क्या कहूँ .......

बाले हो ब्रजराज जो दुनिया में आ गये।
लीला के लाख रंग तमाशे दिखा गये ।
इस बालपन के रूप में कितनों को भा गये।
इक ये भी लहर थी जो जहाँ को दिखा गये ।
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या - क्या कहूँ .........

सब मिल के यारो कृष्न मुरारी की बोलो जै।
गोबिन्द छैल कुंज बिहारी की बोलो जै।
दधिचोर गोपीनाथ बिहारी की बोलो जै।
तुम भी 'नज़ीर' कृष्न मुरारी की बोलो जै।
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन ।
क्या - क्या कहूँ ......

4 comments:

Udan Tashtari said...

वाह!! अहमद हुसैन मोहम्द हुसैन साहब को सुन आनन्द आ गया!! बहुत आभार!!

वाणी गीत said...

एक तो कान्हा की शरारत और उस पर हुसैन बंधुओं की आवाज ...सोने पर सुहागा ....!!

abcd said...

इक ये भी लहर थी जो जहाँ को दिखा गये ।
==================
लहर आई नज़िर की,

मौज आई फ़कीर की /
==================
सब मिल के यारो कृष्न मुरारी की बोलो जै।

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

क्या कहूं मैं बाबा नजीर की शायरी का बांकपन!