Thursday, July 1, 2010

आज ज्योत्सना राते



बीते शनिवार और इतवार रानीखेत में अज़ीज़ों और स्कॉचेत्यादि पेयों की संगत में गुज़रे. साफ़ आसमान के नीचे रानीखेत क्लब के खुले बरामदे में, शौकिया गायन का एक लम्बा सत्र चला. देवदार के पेड़ की सिलुएट से उभरता तक़रीबन पूरा चांद किसी सर्रियल दृश्य की रचना कर रहा था. काठमांडू में रहने वाले एक मित्र ने रवीन्द्रनाथ ठकुर का एक मीठा गीत सुनाया. उस वक़्त मुझे रवीन्द्रनाथ के जिस गीत की याद लगातार आती रही वही आपके सामने पेश कर रहा हूं.

वसन्त, चांदनी, विरह और भक्ति की शाश्वत थीम्स पिरोई गई हैं इस रचना में. ठाकुर के लिखे और स्वरबद्ध किए अन्य सारे गीतों की तरह इसे भी कितने ही गायकों ने अपनी आवाज़ दी है. आज इस गीत को सुनिये अल्बम नूतन जोबनेर दूत से. पिछले साल रिलीज़ हुए इस अल्बम को बांग्ला बैण्ड भूमि ने तैयार किया था.

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

सुन्दर, मधुर, मदिर ।