Wednesday, July 7, 2010

बदल डालो

बदल डालो उस सभ्यता और संस्कार को
जहाँ मनुष्य मनुष्य का चेहरा देखता
जाति, धर्म, गोत्र के आईने में
सुधैव कुटुम्बकम का श्लोक बस रह गया पुराणों के पन्नों में

बदल डालो उस समाज और दुनिया को
जहाँ स्वतंत्रता की बात पुरानी
लोकाचार की बात बेईमानी
छुआछूत, ऊंची-नीच पर रोक सिमटा है संविधानों के पन्नों में

बदल डालो उस सत्ता और प्रतिष्ठानों को
जहाँ पोस्टमार्टम के नाम पर बस होती है खानापूर्ति
मामला दर्ज करने के नाम पर सिमट जाती हैं फाइलें
जाँच के नाम पार मौन हो जाती है सरकार

बदल डालो उस सरकार और इंसाफ के दरवाजों को
जहाँ गढ़े जाते हैं अनाप-शनाप आरोप-प्रत्यारोप
खाई जाती है झूठी-मूठी शपथ
जहाँ नहीं मिलता इंसाफ, नहीं मिलती किसी को सजा

बदल डालो उस संसद और विधानसभाओं को
जहाँ मुद्दे उठते और धूल में मिल जाते हैं
अपराधियों और शरीफों के चेहरे पहचाने नहीं जाते हैं
देश में जनता मरती है, सदन में भाषण होते हैं

बदल डालो उस परिवार और समाज के कानूनों को
जहाँ झूठी इज्जत के सामने खून होती है मानवता
प्यार के खातिर घोटा जाता है गला
बेटों के लिए मन्नतें और बेटी को मिलती है मौत

बस, बहुत हो चुका
आग में झोंक दो पुराणों और शास्त्रों को
आग में झोंक दो ब्राह्मणवाद के नारों को
आग में झोंक दो इज्जत के झंडाबरदारों को

क्योंकि, जिन्दगी मजाक नहीं एक हकीकत है.

10 comments:

आचार्य उदय said...

स्वागतम।

Ek ziddi dhun said...

किसी वक्त में कोई बात इसी तरह कही जा सकती है सीधे-सीधे। और इस वक्त जब साहित्य और विचार भी धर्म, परंपरा और लंपट पूंजीवाद के फासिज्म को पोसने में लगे हों तो बात को इसी अंदाज में कहना होगा.

आपका अख्तर खान अकेला said...

kbaad khaan ke kbaad bhaayi aadaab mene tin baar sodebaazi ki post likhnaa chaahaa lekin baar baar laait jaane se presaan hun kher koi baat nhin fir se aapko bdhaayi dena chaahtaa hun saath hi aapke kbaad khaane men men khud zng lgaa kbaa hone ke kaarn rhnaa chaahta hun taaki aapke kbaad ke paars ko chukr men sonaa bn skun meri 610 posten hen men chaahtaa hun ke aapki yeh post in sb poston ke bdee mujhe de den to men dhny ho jaaungaa isme aapne bhaart ki zindgi khyaalaat mjburi bebsi bhr di he to jnaab aapki post kr rhe hen naa mere naam agr nhin krnaa chaate to koi baat nhin aapko is behtrin post ke liyen bhaayi or mujhe aapki post nhin milne ke kaarn mere liyen rulaai. akhtar khan akela kota rajsthan

S.M.Masoom said...

आग में झोंक दो पुराणों और शास्त्रों को
start to follow these पुराणों और शास्त्रों. the best solution.

मुनीश ( munish ) said...

आपका आक्रोश सराहनीय है भाई किन्तु बस ये नहीं जमा --- "वसुधैव कुटुम्बकम का श्लोक बस रह गया पुरानों के पन्नों में"--चूंकि आप ही देखिये वो कौन मुलुक है जिस की टीम का वर्ल्ड कप फ़ुटबाल में कोई नाम लेवा न हो और उसके ५ करोड़ ३० लाख बेगाने अबदुल्लों की शादी में दीवाने हुए जा रहे हों ! यही तो है ''वसुधैव कुटुम्बकम '' जो अमर है ! वैसे उन चैनलों वगैरह को जलाने के बाबत क्या ख्याल है जो ड्राइंग रूम में घुस के चोकलेट फ्लेवर का कंडोम बेच रहे हैं या वो झूठे किस्से जिनसे यहाँ की निरीह ,नौजवान आबादी की प्यास तो बढ़ रही है मगर बुझाने का माल उसकी पहुँच से बाहर है :) साउंड इफेक्ट --अट्टहास --फेड आउट ;)

प्रवीण पाण्डेय said...

विद्रोही स्वर में परिस्थितियाँ वास्तविक हैं ।

Anonymous said...

असहमत !

अविनाश वाचस्पति said...

कविता ने सच कहा है
कविता में सच कहा है

सब कुछ अपना लें
आओ बदल डालें।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

badalega tabhi jb jan-jan kahega...badal daalo.

बाबुषा said...

तत्काल !

अभी झोंक दिया जाए !

देर की गुंजाइश नहीं !