Tuesday, August 17, 2010

अगर होते रेणु तो पूछता

* एक अकेली रचना कितनी - कितनी रचनाओं की उत्स- भूमि बन जाती है अगर यह देखना हो तो हिन्दी साहित्य और सिनेमा के इतिहास में अपना विशिष्ट स्थान रखने वाली कृति 'तीसरी कसम' ( उर्फ़ मारे गए गुलफाम) को देखा जा सकता है। फणीश्वरनाथ रेणु की यह वही लम्बी कहानी है जिसने अपने प्रकाशन के साथ ही हिन्दी कथा साहित्य का चरित्र और चेहरा बदल दिया था। १९६६ में रिलीज हुई १५९ मिनट की यह वही फिल्म है जो रेणु, राजकपूर, वहीदा रहमान, नबेन्दु घोष, सुब्रत मित्रा, हसरत जयपुरी,  शैलेन्द्र, बासु भट्टाचार्य,शंकर जयकिशन और न जाने कितने जाने पहचाने अनजाने कलाकर्मियों की सामूहिक रचनाशीलता का एक नायाब नमूना है। आइए आज इस कालजय़ी रचना को याद करें और 'पक्षधर ' पत्रिका के नए अंक में प्रकाशित केशव तिवारी की कविता कहाँ 'चला गया' को देखें - पढ़ें।२००९ के सूत्र सम्मान से सम्मानित केशव तिवारी हिन्दी के सुपरिचित युवा कवि हैं। बाँदा में रहते हैं और इसी साल उनका दूसरा कविता संग्रह'आसान नहीं विदा कहना' प्रकाशित हुआ है।



कहाँ चला गया
( केशव तिवारी की कविता )

आज देखी बाँस से लदी
मचमचाती बैलगाड़ी
याद आ गई एक फिलिम
तीसरी कसम

महुवा घटवारिन के घाट पर
न नहाने की हिदायत देता हीरामन

महुवा में खुद को खोजता
उदास हीराबाई का चेहरा

बदल  गए घाट घटवार बदल गए
पर महुवा के सौदागर तो आज भी हैं

नौटंकी की अठनिया टिकट पाकर
दुनिया पा लेने के जोश से भरा
वह अक्खड़ गाड़ीवान

आखिर तीन कसमें खाकर
कहाँ चला गया

अगर होते रेणु तो पूछता
उसका कुछ अता पता।

7 comments:

राजेश उत्‍साही said...

शायद चौथी कसम खाने।

Udan Tashtari said...

बेहतरीन कविता पढ़वाई..

सतीश पंचम said...

तीसरी कसम को लेकर एक पोस्ट लिखी गई थी मित्र, वह गाड़ीवान यहाँ है सफ़ेद घर की पोस्ट में - जिसमें मनमोहन सिंह के रूप में हीरामन और न्यूक्लीयर डील के रूप में हीराबाई विद्यमान हैं...एक व्यंग्य लेख के तौर पर - तीसरी कसम और न्यूक्लीयर डील

हीरामन अपनी चार साल पुरानी टप्पर गाड़ी मे न्युक्लीअर डील को लिए चले आ रहे हैं , रस्ते मे कोई गाँववाला मिल जाता है और पूछता है - कहाँ जा रहे हो भाई। हीरामन ने कहा - छ्त्तापूर - पचीरा । ई छ्त्तापुर - पचीरा कहाँ पड़ता है । अरे कहीं भी पड़े , तुम्हे उससे क्या, इस गाँव के लोग बहुत सवाल - जवाब करते हैं, देहाती भुच्च कहीं के - हिरामन ने कुढ़ते हुए कहा । वैसे आप लोगों को बता दूँ की हिरामन को सभी लोग हीरे से तुलना करते हैं कि अरे ये आदमी तो हिरा है हिरा , देखा नहीं , जब बाघ को यहाँ से वहां ले जाने कि बारी आई तो सभी गाडीवानों ने इनकार कर दिया कि हम नहीं ले जायेंगे बाघ - फाग , तब यही हीरामन था जिसने आगे बढ़ कर सभी गाडीवानों कि लाज रख ली, आज भी लोग उन्हें हीरे जैसे मन वाला कहते हैं। हाँ तो हीरामन जी नयूक्लीअर डील कि लदनी लादे आगे बढे, रास्ते मे बैलों को यानी जनता को रह रह कर तेज चलने के लिए उनकी पूँछ के नीचे पेईना (छड़ी) से कोंच लगा देते या खोद- खाद देते जिससे बैल हरहराकर कुछ कदम तेज चलते, लेकिन महंगाई की मार झेल रहे बैल आख़िर कितना तेज चले
ईधर बैल फिर अपनी पुरानी चाल पर चलने लगे, हीरामन ने उन्हें अब छडी से मारने के लिए हाथ उठाया ही था कि टप्पर गाडी में पीछे से आवाज आई - मारो मत। धीरे धीरे चलने दो, ईतनी जल्दी क्या है। हीरामन सोचने लगे कि मैं अपने बैलों को मारता हूं तो इस न्यूक्लीयर डील को तकलीफ होती है, कितना भला सोचती है ये डील। और सचमुच ये बैल भी कितना तेज चलें, पहले से ही महंगाई का बोझ ढो रहे हैं, जातिवाद, संप्रदायवाद, उधारवाद और भी न जाने कितने सारे वाद-विवाद झेल रहे हैं मेरे ये बैल। ईस डील के जरिए ये सभी प्रकार के वाद एक झटके में दूर हो जाएंगे। और फिर मुझे लालटेन लेकर चलना भी नहीं पडेगा, सस्ती न्यूक्लीयर उर्जा मिलने से मेरी टप्पर गाडी में भी बल्ब लग जाएगा। इधर रास्ते में हीरामन के साथी लालमोहर और पलटदास (पलटा) भी मिल गए। हीरामन के दोस्तों के नाम फनीश्वरनाथ रेणूजी ने जाने क्या सोचकर लालमोहर और पलटा रख दिया था, कि आज भी उस नाम का असर हैकि लालमोहर अपने नाम के अनुसार लाल रंग को अच्छा समझता है, कम्यूनिस्टों सी बातें करता है। और पलटदास,वो भी कुछ कम नहीं, आज ईधर तो कल उधर, पलटना जारी रखता है, जाने कौन जरूरत पड जाय।तभी तो हीरामन एक जगह कहता भी है - जियो पलटदास.......जियो। ईधर न्यूक्लीयर डील को देख लालमोहर को शंका हुई, पूछा - इस डील की लदनी लादे कहां से चले आ रहे हो,इसके आने से हमारे उन्मुक्त स्वतंत्रता में बाधा होगी, हम ठीक से गा नही पाएंगे कि - उड उड बैठी ई दुकनिया, उड उड बैठी उ दुकनिया......जब हम गाएंगे तो ये डील कहेगी कि उसी को देखकर ये लोग गा रहे हैं, बोली ठोली बोल रहे हैं......ना ना बाबा नाहम तो ये डील नहीं मानेंगे, जिंदगी भर बोली-ठोली कौन सुने..... इसे तुम वहीं छोड आओ जहां से लाए हो।तब हीरामन लालमोहर को समझाने लगे, देखो इसके फलां फलां फायदे हैं, और सबसे बढकर ये हमें पास भी तोदे रही है। पास का नाम सुनकर लालमोहर और पलटा थोडा सतर्क हो गए, पूछा - पास...कैसा पास ।हीरामन ने कहा - अरे कोई अईसा वईसा अठनिया दर्जा वाला पास नहीं, न्यूक्लीयर दर्जा वाला पास।लालमोहर दर्जा का नाम सुनते ही उखड गया, लाल - लाल होते बोला - दर्जा की बात करते हो, यहां हमसभी को एक समान दर्जा की बात करते हैं और तुम एक और दर्जा बढाने की बात करते हो, लानत है तुमपर।अभी ये बातें हो रही थीं कि लालमोहर ने देखा - पलटा कहीं नजर नहीं आ रहा है।अरे ये क्या, पलटा तो उधर डील की चरणसेवा कर रहा है , जाने ईस डील ने कौन सा मंत्र मार दिया है।लालमोहर ने पलटा की बांह पकड कर झकझोरते हुए कहा - तू यार हमेशा यही करता है, जरा सा कुछ हुआ नहीं कि पट से हाथ जोड चरणसेवा करने लगता है, और आज तू सेवा कर रहा है न्यूक्लीयर डील की,तेरा तो उन लोगों जैसा हाल है कि - आज न्यूक्लीयर टेस्ट किया, कल वहीं जाकर उस जमीन से माथे पर तिलक लगा लिया, पता चला अगले दिन माथे पर फोडा हो गया।

पूरी पोस्ट यहां पढ़ें -
http://safedghar.blogspot.com/2008/07/blog-post_12.html

-सतीश पंचम

डॉ .अनुराग said...

मैला आँचल ओर परती परिकथा से ज्यादा रेणु शायद मारे गए गुलफाम उर्फ़ तीसरी कसम के लिए याद किये जायेगे .....सच कहूँ ...शैलन्द्र ने भी जैसे वाकई जी दिया था इस कहानी को .....अलबत्ता एक शानदार इन्सान को हालात ने वक़्त से पहले इस दुनिया से जुदा कर दिया वरना शायद कितनी ओर अमर गाथाये बन जाती.......
कविता बेहद सटीक है

शोभना चौरे said...

bahut achhi kavita

दीपशिखा वर्मा / DEEPSHIKHA VERMA said...

badhiya kavita :)

संतोष त्रिवेदी said...

renu ki yaad dilane ka dhanyavaad !