Friday, August 27, 2010

मैं कोई शेक्सपीयर नहीं हूँ

इस कविता के अनुवाद ने बहुत परेशान किया। बहुत दिनों से यह मेरे इकठ्ठा किए गए कबाड़ के ढेर में सहेज कर रखी गई थी और कई बार इससे जूझने की कोशिश करनी पड़ी। कई बार ऐसा होता है कि प्रचलित अंग्रेजी शब्दों के लिए हिन्दी में प्राय: ऐसा शब्द होता है जिसकी अर्थ छवि थोड़ी विलग होती है और उसका इस्तेमाल प्राय: संदर्भ को विचलन की ओर लेकर जाता हुआ दिखाई देने लगता है। बहरहाल, इस कविता को देखें - पढ़ें....




चार्ल्स बुकोवस्की की कविता
उस पतुरिया के लिए जिसने  हर लीं मेरी कवितायें
( अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह )


लोग कहते हैं
अपनी कविता से परे रक्खो वैयक्तिक पछतावे
बने रहो गूढ़ और अमूर्त
क्योंकि इसमे जरूर छिपा होता है कोई रहस्य।

किन्तु हे प्रभु !
मेरी एक दर्जन कवितायें चली गईं
जिनकी कार्बन प्रति भी नहीं है मेरे पास।
और तो और
तुम मेरी सबसे उम्दा पेंटिंग्स भी ऊठा ले गईं
यह सब देख घुटता है मेरा दम।
क्या तुम मुझे ध्वस्त कर देना चाहती हो
बाकी बची चीजों की मार से ?

तुम क्यों नहीं ले गईं रुपए - पैसे
जो प्राय: पड़े रहे रहते हैं
बीमार शराबी जैसे कोने में लेटे मेरी पतलूनों में
अगली बार तुम भले ही उमेठ देना मेरी बायीं बाँह
अथवा पचासों और भी चीजों पर कर देना हाथ साफ
पर हाथ न लगाना मेरी कविताओं को।

मैं कोई शेक्सपीयर नहीं हूँ
अक्सर बहुत साधारण तरीके से
हो जाता हूँ गूढ़ और अमूर्त
यदि ऐसा न हो तो
उभरती दीखने लगेंगी
रुपयों वेश्याओं शराबियों और दुनिया को बर्बाद कर देने वाले
अंतिम बम की छवियाँ।

याद रहे
ईश्वर ने कही है एक सच्ची बात-
....कि उसने दुनिया में बनाए बेशुमार कवि
किन्तु
हर ओर
कितनी कम - कम
कितनी कमतर
दिखाई  दिए जा  रही है कविता।
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* टीप : इस कविता के अनुवाद के सिलसिले में हमारे समय के दो समर्थ कवि - ब्लागर  साथियों विजय गौड़ और शरद कोकास की बहुमूल्य सम्मतियों ने बहुत मदद की है, सो उनके प्रति हृदय से आभार। प्रसिद्ध अमरीकी कवि - कथाकार चार्ल्स बुकोवस्की ( 1920 -1994 ) का परिचय और उनकी  कुछ और कविताओं  के अनुवाद जल्द ही ,  यहीं  इसी  ठिकाने पर ...

4 comments:

राजेश उत्‍साही said...

पता नहीं क्‍यों इस कविता के शीर्षक में पतुरिया शब्‍द खटक रहा है।

दीपा पाठक said...

अच्छी कविता है और अनुवाद भी बढ़िया हुआ है। बुकोवस्की का साहित्य वैसे भी बहुत आसान नहीं है समझना लिहाज़ा अनुवाद में आई मुश्किल बहुत स्वाभाविक है। बहरहाल आपकी मेहनत का परिणाम अच्छा निकला है।

वीरेन डंगवाल said...

bahut sunder hai siddheshwar,anuwad bhi thikthak hai,halan ki ek baar aur haath lagao to

डिम्पल मल्होत्रा said...

याद रहे
ईश्वर ने कही है एक सच्ची बात-
....कि उसने दुनिया में बनाए बेशुमार कवि
किन्तु
हर ओर
कितनी कम - कम
कितनी कमतर
दिखाई दिए जा रही है कविता।..ak achhi rachna ke anuvaad ke liye shukriya..