Tuesday, September 7, 2010

महमूद दरवेश बता रहे हैं कविता से कैसे पैदा की जाती है उम्मीद

पिछली सदी के महानतम कवियों में शुमार महमूद दरवेश ने, अपनी मृत्यु से एक साल पहले दिये गए एक साक्षात्कार में किसी पत्रकार के एक सवाल के जवाब में कहा था:

"जब उम्मीद न भी हो, हमारा फ़र्ज़ बनता है कि हम उसका आविष्कार और उसकी रचना करें. उम्मीद के बिना हम हार जाएंगे. उम्मीद ने सादगीभरी चीज़ों से उभरना चाहिये. प्रकृति की महिमा से, जीवन के सौन्दर्य से, उनकी नाज़ुकी से. केवल अपने मस्तिष्क को स्वस्थ रखने की ख़ातिर आप कभी कभी ज़रूरी चीज़ों को भूल ही सकते हैं. इस समय उम्मीद के बारे में बात करना मुश्किल है. यह ऐसा लगेगा जैसे हम इतिहास और वर्तमान की अनदेखी कर रहे हैं. जैसे कि हम भविष्य को फ़िलहाल हो रही घटनाओं से काट कर देख रहे हैं. लेकिन जीवित रहने के लिए हमें बलपूर्वक उम्मीद का आविष्कार करना होगा."

जब पत्रकार ने उन से अगला सवाल किया: * आप ऐसा कैसे कर सकते हैं?" तो देखिये दरवेश किस तरह परिभाषित करते हैं हमारे समय के लिए ज़रूरी कविता को.

"मैं उपमाओं का कर्मचारी हूं, प्रतीकों का नहीं. मैं कविता की ताक़त पर भरोसा करता हूं, जो मुझे भविष्य को देखने और रोशनी की झलक को पहचानने की वजहें देती है. कविता एक असल कमीनी चीज़ हो सकती है. वह विकृति पैदा करती है. इस के पास अवास्तविक को वास्तविक में और वास्तविक को काल्पनिक में बदल देने की ताक़त होती है. इसके पास एक ऐसा संसार खड़ा कर सकने की ताक़त होती है जो उस संसार के बरख़िलाफ़ होता है जिसमें हम जीवित रहते हैं. मैं कविता को एक आध्यात्मिक औषधि की तरह देखता हूं. मैं शब्दों से वह रच सकता हूं जो मुझे वास्तविकता में नज़र नहीं आता. यह एक विराट भ्रम होती है लेकिन एक पॉज़िटिव भ्रम. मेरे पास अपनी या अपने मुल्क की ज़िन्दगी के अर्थ खोजने के लिए और कोई उपकरण नहीं. यह मेरी क्षमता के भीतर होता है कि मैं शब्दों के माध्यम से उन्हें सुन्दरता प्रदान कर सकूं और एक सुन्दर संसार का चित्र खींचूं और उनकी परिस्थिति को भी अभिव्यक्त कर सकूं. मैंने एक बार कहा था कि मैंने शब्दों की मदद से अपने देश और अपने लिए एक मातृभूमि का निर्माण किया था."

7 comments:

Nisha said...

ummid ke vishay me kahi Dervesh ke shabd bahut hi sataya hai.. vo kahte hai na 'ummid par duniya kaayam hai'.
aur jahan tak kavita ki baat hai to ye muje meri ek kavita ki yaad dilati hai.. jahan ek chota sa kalpnic sansar hai. ise yahan padha ja sakta hai..

http://shyamanisha.blogspot.com/2010/07/blog-post.html

aur in sundar shabdon ke liye bahut bahut shukriya Ashok Pandey Ji.

सागर said...

इसकी जरुरत थी... शुक्रिया

प्रवीण पाण्डेय said...

बिना उम्मीद जीवन व्यर्थ है।

संगीता पुरी said...

वाह !!

vandana gupta said...

यही तो दर्शन होना चाहिये………………आभार्।

शायदा said...

wah kya baat hai...मैंने शब्दों की मदद से अपने देश और अपने लिए एक मातृभूमि का निर्माण किया था."

Unknown said...

bahut achhe ashok bhai