Wednesday, September 8, 2010

अल रबवेह - भाग एक

इन दिनों महमूद दरवेश से सम्बन्धित जो भी मिलत है उसे पढ़ता जाता हूं और जितना बन सके अनुवाद भी करता जाता हूं. दरवेश की आख़िरी दो ख़ासी लम्बी कविताओं के जॉन बर्जर और रेमा हम्मामी के द्वारा किए गए अनुवाद दो बरस पहले ’म्यूरल’ नाम से छपे हैं.

इस सत्तरेक पन्ने की किताब की भूमिका प्रस्तुत है - पाठकों को इस से इज़राइल और फ़िलिस्तीन के मौजूदा हालातों को समझ पाने में काफ़ी मदद मिलेगी


वहां से लौटने के बाद, जिसे हालिया समय तक, भविष्य का फ़िलिस्तीन राष्ट्र माना जा रहा था, और जो फ़िलहाल दुनिया का सबसे बड़ा क़ैदख़ाना (गाज़ा) और दुनिया का सबसे बड़ा वेटिंग रूम (पश्चिमी तट) है, मुझे एक सपना आया.

मैं अकेला था, कम्रर तक निर्वस्त्र, एक रेगिस्तान में आख़िरकार किसी दूसरे के हाथ ने ज़मीन से थोड़ी सी धूलभरी मिट्टी खोदकर निकाली और उसे मेरी छाती पर दे मारा. यह एक आक्रामक नहीं उदारतापूर्ण कृत्य था. मिट्टी और कंकड़ मुझे छूने से पहले कपड़े (सम्भवतः सूत) की फटी पट्टियों में तब्दील हो गए, जिन्होंने मेरे श्रोणिस्थल को चारों तरफ़ से लपेट लिया. उसके बाद ये फ़टी हुई चीथड़ा पट्टियां फिर से बदलीं और और शब्दों और वाक्यांशों में तब्दील हो गईं. इन्हें मैंने नहीं उस जगह ने निर्मित किया था. इस स्वप्न को याद करते हुए मेरे दिमाग में एक आविष्कृत शब्द चला आया - लैन्ड्स्वैप्ट. लैन्ड्स्वैप्ट एक ऐसी जगह या जगहों का वर्णन करता है जहां से सारी मूर्त-अमूर्त चीज़ें बुहार कर हटा दी गई हों, उड़ा दी गई हों, सब कुछ सिवा धरती के , जिसे छुआ जा सकता है.

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रामल्ला के पश्चिमी बाहरी इलाक़े में एक छोटी सी पहाड़ी है - अल रबवेह. यह टोक्यो स्ट्रीट के आख़िरी छोर पर है. इस पहाड़ी की चोटी के नज़दीक कवि महमूद दरवेश दफ़्न हैं. यह कोई कब्रिस्तान नहीं है.

सड़क का नाम टोक्यो स्ट्रीट इस लिए है कि यह शहर के सांस्कृतिक केन्द्र को जाती है, जो कि पहाड़ी की तलहटी पर है और जिसे जापान की आर्थिक मदद की मेहरबानी से बनाया गया था.

दरवेश ने इसी सांस्कृतिक केन्द्र में आख़िरी बार अपनी कविताएं सुनाई थीं - हालांकि किसी को भी गुमान न था कि ऐसा आख़िरी बार हो रहा है. सन्ताप के क्षणों में "आख़िरी" शब्द का क्या मतलब हो सकता है?

हम उनकी कब्र देखने गए. एक पत्थर लगा दिया गया था. खुदी हुई धरती अब भी नंगी थी. शोकाकुल लोगों ने वहां हरे गेहूं की बालियां चढ़ा रखी थीं - जैसी उन्होंने अपनी एक कविता में इच्छा ज़ाहिर की थी - वहां लाल एनीमोन के फूल थे, कागज़ के टुकड़े और फ़ोटोग्राफ़.

वे चाहते थे उन्हें गैलिली में दफ़नाया जाए जहां वे जन्मे थे और जहां उनकी माता अब भी रहती हैं, लेकिन इज़राइलियों ने इसकी इजाज़त नहीं दी.

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उनके अन्तिम संस्कार के समय यहां अल रबवेह में दसियों हज़ार लोग इकठठा हुए थे. छियानवे साल की उनकी माता ने लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा "वह आप सब का बेटा है."

(जारी)

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

वह आप सबका बेटा है। भावुक।

भारत भूषण तिवारी said...

अशोक जी,
जॉन बर्जर के इसी लेख का अनुवाद मैंने पिछले वर्ष दरवेश की बरसी पर अनुनाद पर पोस्ट किया था.

http://anunaad.blogspot.com/2009/08/blog-post_07.html