Saturday, January 22, 2011

ही वाज़ अ फ्रेंड ऑव माइन

इस पोस्ट को लिखने के लिए मैंने तीन महीने इंतज़ार किया है | सच बताऊँ तो अपनी बात कहने के लिए मैंने डेढ़-दो साल इंतज़ार किया है कि मुझे कभी कबाडखाना जैसा मंच मिल जाए | हरदम इसी ख्यालों में डूबा तो नहीं रहता, या ऐसा भी कोई जिंदगी का लक्ष्य नहीं बनाया इसे, बस ऐसे ही कभी अकेले में रहकर 'Jack, I Swear ' करता हूँ |


एडलैब्स से कल्याणी वेज वाले रास्ते पर चले जाइए, बिग बाजार से भी आगे, एच एस बी सी के ऑफिस की तरफ, तो बारहवीं तक का एक स्कूल सड़क के दायीं तरफ उन्नीस सौ सैंतालिस से शान से खड़ा है | वहाँ पर अक्सर शाम सड़क किनारे एक बेंच पे बैठा हुआ मैं, जिंदगी को शुक्रिया अदा करता हुआ मिलता हूँ | पुणे जैसे व्यस्त शहर के कल्याणी नगर जैसे इलाके में इस तरह का अकेलापन बहुत किस्मत से मिलता है | हल्का अँधेरा घिरने वाला होता है, और मैं पास्ट को लगातार रीवाइंड करता हुआ सुनता रहता हूँ | पच्चीससाला जिंदगी यकायक बहुत बड़ी लगने लगती है | कितने सारे अफ़सोस, इसी उम्र में ? कितने सारे पाप और प्रायश्चित ... बहुत तलब लगती है उस वक़्त सिगरेट पीने की, जब तक खुद बुझ नहीं जाता (अफ़सोस, मैं सिगरेट नहीं पीता) | २२ जनवरी २००८, तीन साल पहले जब दवाओं के घातक मिश्रण मेरे लिए संजीवनी बूटी साबित हो रहे थे, किसी और दुनिया का बेहद अनजान आदमी इन्ही दवाओं से मर चुका था | न मेरे आयुष से उसे फर्क पड़ना था, न उसके मरने से मुझे फर्क पड़ा | दिन में पंद्रह घंटे अँधेरे कमरे में टी वी देखने में गुजार दिया करता | बीच बीच में माँ जरूर आकर परदे हटाती, खाना खिलाती, बिस्तर की चादर, तकिये के कवर बदलती | सिर्फ उसी वक़्त मयूर विहार के उस छोटे से कमरे में धूप साँस लेती थी | माँ के जाते ही कमरा फिर से अँधेरे जैसा हो जाता |


हीथ लेजर और मेरी जिंदगी में कोई समानता नहीं है, सिवाय इसके कि मुझे भी लगता है कि मेरा दिमाग मुझे सोने नहीं देता | जब दिमाग ख़याल बुनने लगता है, जब आंखें बन्द करने के लिए सोचना पड़ता है, रात का वो पहर बिलकुल निर्जन, अकेला होता है | अक्सर बिना सोये, दो-तीन दिन बीत जाते हैं | डॉक्टर अटेन 25 एम जी से 50 एम जी कर देता है | 'गेट सम स्लीप, बी पी नोर्मल हो जाएगा' दवाइयां लिखते हुए वो कहता है | २२ जनवरी २००८ को २८ साल की उम्र में वो इस दुनिया से रुखसत कर गया |


जो बोलना चाहता हूँ, जब वो नहीं बोल पाता हूँ तो बहुत चिढ़ होती है | ये महज चिढ़ नहीं , बल्कि एक सेल्फ-डेस्ट्रक्टिव फीलिंग है | जिसमें सिर्फ आप अपनी साँसों की आवाज सुन रहे होते हैं | बहरहाल, हीथ लेजर मेरे लिए वही मुकाम रखते है जो प्रेम कवियों के लिए जॉन कीट्स का है | जॉन कीट्स भी फ़क़त पच्चीस साल ही जिया था, कवियों के बारे में मुझे ज्यादा पता नहीं है | लेकिन हीथ के बारे में कह सकता हूँ कि बेशक वो मार्लन ब्रांडों नहीं है, लेकिन सिर्फ दो किरदारों के लिए सब याद रखेंगे उसे, 'जोकर' और दूसरा 'एनिस डेल मार' | 'यू नो हाव आई गोट दीज़ स्कार्स' पहली बार ही मैं उसे देखके मन्त्रमुग्ध सा हो गया था | लेकिन उसका फैन बना तो 'ब्रोकबैक माउन्टेन' के उसके किरदार 'एनिस डेल मार' के लिए | 'ब्रोकबैक माउन्टेन' ने उस संवेदनशील विषय को छुआ था जिसे हमारे फ़िल्मकार मजाक उड़ाने के लिए भुनाते हैं, समलैंगिकता | जब आखिरी दृश्य में 'एनिस डेल मार' अल्मिरा में एक ओर चिपकाये ब्रोकबैक माउन्टेन के पोस्टकार्ड को देखता है, हल्के हाथों से अपनी और जैक की शर्ट को छूता है, जो उसने एक के अन्दर एक रखी है और... और हल्के हल्के बन्द लफ़्ज़ों में अपने आंसुओं से लड़ता है, "Jack ... I swear", तब महसूस होता है कि खोना क्या होता है | 'ही वाज़ अ फ्रेंड ऑव माइन' पृष्टभूमि में बजता है |


मैं उसी बेंच पर पिछले तीन घंटों से घुमा फिरा के वही दृश्य याद कर रहा हूँ |


एक छोटा सा किस्सा हीथ के लिए ,
मैं मुंबई से दिल्ली आ रहा था | और मेरे साथ ट्रेन में सफ़र कर रहा था, बालाजी टेलीफिल्म्स का क्रू; एक लेखक कोई अफज़ल अहमद जैसा कोई नाम | उसने मुझे स्क्रीनप्ले लिखना सिखाया, और अपना स्क्रीनप्ले भी पढ़ाया | बात चलते चलते फिल्मों तक पहुंची, और हम दोनों साथ साथ 'दि डार्क नाईट' देखने लगे | उसने आधे में मूवी बन्द कर दी, कि बहुत साधारण फिल्म है | जाते हुए उसने मुझे अपना कार्ड दिया, ट्रेन से बाहर निकलते ही मैंने वो कार्ड फाड़ दिया |

4 comments:

अजेय said...

मुझे ऐसे पोस्ट चाहिए . थेंक्स, नीरज.

प्रवीण पाण्डेय said...

जीवन के अन्जान मोड़,
सब क्यों जाते हैं छोड़?

sanjay vyas said...

हीथ लेजर को मैं सिर्फ डार्क नाईट के ज़रिये ही जानता हूँ.बल्कि अब तो ये कह सकता हूँ कि डार्क नाईट को हीथ के ज़रिये ही जानना चाहता हूँ.दूसरी जिसका ज़िक्र तुमने किया है,नहीं देखी.अब ज़रूर देखूंगा.
ऐसे ही लिखते रहो दोस्त.हमेशा.ऐसी पोस्ट अरसे तक मन में रहती है.
सपनों में आने वाली पोस्ट.

उत्‍तमराव क्षीरसागर said...

अच्‍छी पोस्‍ट....एक सि‍म्‍फ़नी-सी...।