Thursday, February 10, 2011

लचके है ज़र्द जामा में खूबां की जो कमर

यह पोस्ट एक्सक्लूसिवली हमारे एक बहुमूल्य और सुधी पाठक जनाब एबीसीडी (असल नाम से तार्रुफ़ नहीं है) की डिमांड को नज्र है. सही है पिछले बरस मैंने बसंत के समय बाबा नज़ीर अकबराबादी की बसंत से सम्बंधित एकाधिक रचनाएँ आपको पढवाई थीं पर इस बरस कुछ और ही तरह के हालात पैदा होने की वजह से ऐसा कुछ न कर सका. उम्मीद करता हूँ मार्च के महीने से मैं यहाँ अपने इस अड्डे पर ज्यादा सक्रिय हो सकूंगा.

फ़िलहाल नज़ीर



आने को आज धूम इधर है बसंत की
कुछ तुमको मेरी जान ख़बर है बसंत की.

होते हैं जिससे ज़र्द ज़मीं-ओ-ज़मां तमाम
ऐ महर तलअतो वह सहर है बसंत की.

लचके है ज़र्द जामा में खूबां की जो कमर
उसकी कमर नहीं वह कमर है बसंत की.

जोड़ा बसंती तुमको सुहाता नहीं ज़रा
मेरी नज़र में है वह नज़र है बसंत की.

आता है यार तेरा वह हो के बसंत रू
तुझ को भी कुछ "नज़ीर" ख़बर है बसंत की.

7 comments:

OM KASHYAP said...

आने को अज धूम इधर है बसंत की
कुछ तुमको मेरी जान ख़बर है बसंत की.
होते हैं जिससे ज़र्द ज़मीं-ओ-ज़मां तमाम
ऐ महर तलअतो वह सहर है बसंत की

sunder abhivaykti

मुनीश ( munish ) said...

ऐ महर तलअतो वह सहर है बसंत की.
pls explain this Ashok bhai. couldn't get it.

दीपशिखा वर्मा / DEEPSHIKHA VERMA said...

वाह, बसंत बिखेर दिया हर सिम्त .. बहुत खूबसूरत !

जीवन और जगत said...

वाह क्‍या बसन्‍ती गजल है। इसे पोस्‍ट करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।

abcd said...

अशोक भाई,

’शुक्रिया ’ शब्द छोटा है...

आप सब लोग अन्जाने ही उत्ने अज़ीज़ हो चले है...जैसे की..नज़ीर/
.................................

Rahul Singh said...

आया बसंत, आया बसंत...

Syed Ali Hamid said...

I'm back in Almora after being away for over a month and shall now keep in touch with your blog as usual.
Nice poem. I've posted a song on my blog which I'm sure you'll like.