Sunday, February 13, 2011

फै़ज : आज तुम याद बेहिसाब आए


* जन्मशती पर फ़ैज अहमद फ़ैज़ को याद करते हुए उनकी कविता के साए में बड़ी हुई  पीढ़ी तथा   देश - दुनिया के प्रति संवेदनशीलता व समझदारी हासिल करने वालों की तरफ से स्मरण :



 / स्वर : रूना लैला

*
आए कुछ अब्र कुछ शराब आए ।
उसके बाद आए जो अज़ाब आए।

बाम-ए-मीना से महताब उतरे
दस्त-ए-साकी में आफ़ताब आए।

हर रग-ए-ख़ूँ में फिर चरागाँ हो
सामने फिर वो बेनक़ाब आए।

कर रहा था ग़मे-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बेहिसाब आए।

ना गई तेरे ग़म  की सरदारी
दिल में यूं रोज इनकिलाब आए।

इस तरह अपनी खामोशी गूँजी
गोया हर सिम्त से जवाब आए।

‘फ़ैज़’ थी राह सर-बसर मंज़िल
हम जहाँ पहुँचे क़ामयाब आए।

9 comments:

nilesh mathur said...

बहुत सुन्दर !

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

बहुत खूब...।

फ़ैज़ की शायरी का और आनंद लेना है तो यहाँ पिटारा खुला है। और भी बहुत कुछ है।

http://www.hindisamay.com

मुनीश ( munish ) said...

shukria !

Ashok Kumar pandey said...

कर रहा था ग़मे-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बेहिसाब आए।
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कैसे नहीं याद आयेगा फैज!

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

'रग़-ए-ख़ूँ में चरागाँ!'- फैज़ ही ऐसा प्रयोग कर सकते थे बाबा!

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

'रग़-ए-ख़ूँ में चरागाँ!'- फैज़ ही ऐसा प्रयोग कर सकते थे बाबा!

प्रवीण पाण्डेय said...

बेहतरीन।

डॉ .अनुराग said...

vaya.....mehandi hasan sun raha tha....

शिवा said...

बहुत खूब...।