Saturday, February 26, 2011

ये ग़म होगा तो कितने ग़म न होंगे



फरीदा ख़ानुम के बारे में एक पोस्ट कल कबाड़खाने में लगायी जा चुकी है | आज सुनिए उनकी आवाज में एक और खूबसूरत ग़ज़ल...



4 comments:

richa said...

अगर तू इत्तेफ़ाकन भी जाये
तेरी फुरक़त के सदमे कम ना होंगे...


वाह ! दिल ख़ुश हो गया फरीदा जी को सुन के... बहुत बहुत शुक्रिया इसे सुनवाने के लिये...

Arvind Mishra said...

इसी को मेहंदी हसन जी ने ऐसे ही गया है -आनंद आ गया!आभार !

abcd said...

इतने हुनर ..
इतनी कशीश की दरकार है की कोई ताजो-तख्थ केह दे--जाओ तुम्हे तो--सात खून भी माफ़.......

निर्मला कपिला said...

पूरी गज़ल सुनाई नही दी बस एक लाईन ही सुनाई दी। धन्यवाद।