Wednesday, February 23, 2011

दून्या मिखाइल की एक कविता

चर्चित ईराक़ी कवयित्री दून्या मिखाइल की एक कविता पेश है:



मोची

एक निपुण मोची ने
अपनी समूची ज़िन्दगी
कीलें ठोकी हैं
और मुलायम बनाया है चमड़े को
अलग अलग तरह के पैरों के लिए:
बच निकलने वाले पैर
लात मारने वाले पैर
धंस जाने वाले पैर
दौड़ने वाले पैर
ठोकर खाने वाले पैर
धराशाई हो जाने वाले पैर
कूदने वाले पैर
अटकने वाले पैर
पैर जो स्थिर होते हैं
पैर जो कांपते हैं
पैर जो नाचते हैं
पैर जो लौटते हैं ...
जीवन एक मोची के हाथों में
मुठ्ठीभर कीलें होता है.

3 comments:

मुनीश ( munish ) said...

i think i am falling in love with this sort of poetry. may be am very lonely 'cos normalcy shuns this affection.

nilesh mathur said...

बहुत सुन्दर अंदाज!

प्रवीण पाण्डेय said...

छोटी छोटी चीजों में पायी जाती श्रेष्ठता।