Saturday, May 21, 2011

यान पोल्कोव्स्की के लिए नहीं - मार्सिन स्विएतलिकी की कविता


(पिछली कविता से आगे)

यान पोल्कोव्स्की के लिए नहीं

तमाम दिक्कतें उस कविता के साथ.
श्श्श! मत जगाओ प्रेतों को. सात साल बीत चुके ह.
साहित्य का इतिहास डकार जाता है सब कु़छ. श्श्श.
ज़्यादा विवेक होता है आसमान के इतिहास के पास.

नया क्या है? ज़्यादा कुछ नहीं. हम साधे जाते हैं
अपनी असामान्य वाक्पटुता और अपने सस्ते
खेलों को मन्दबुद्धि पाठकों के साथ (प्रिय पाठक,
जनाब क्रिस कोहलर यही समझते हैं आपको)

नया क्या है? ज़्यादा कुछ नहीं. इतने सारे कैद किए जा चुके.
लेकिन फ़ैज़ का क्या हुआ? मैंने किन्डरगार्टन में ही खो दी थीं
नेतृत्व की अपनी सारी योग्यताएं. मैं अपने हथियार नीचे रख देता हूं.
मैं बैठता हूं और कविता बेचता हूं (अलबत्ता जनाब एम. बैरन

ने मुझे सलाह दी है, सन्जीदगी से सलाह दी है कि मैं ऐसा न करूं.)
मैं सांस लेता हूं. और दग़ा देता हूं. मैं बेचता हूं. मैं असहज हूं.
नियन्त्रण में. बढ़िया. मुझे पुलिस
और यातना दो. मैं आज़ादाना कविता लिखूंगा

और ईश्वर को उसमें उलझा दूंगा, चेचन्या, बाल्कन
और तुम्हें भी. जैसे भी हो सके. सब कुछ किया जा सकता है.
साहित्य का इतिहास डकार जाता है सब कु़छ. यह सच है.
ज़्यादा विवेक होता है आसमान के इतिहास के पास.

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