Wednesday, February 22, 2012

यह मेरे साथ क्या कर रहे हो दमिश्क?

निज़ार क़ब्बानी की लंबी कविता -


यह मेरे साथ क्या कर रहे हो दमिश्क?

एक.

इस दफ़ा मेरी आवाज़ गूंजती है दमिश्क से
वह गूंजती है शाम से
मेरे माता-पिता के घर से. मेरी देह का भूगोल बदलता है.
मेरे रक्त की कोशिकाएं हरी हो जाती हैं.
हरी है मेरी वर्णमाला
शाम में. मेरे मुंह के लिए उभरता है एक नया मुंह.
मेरी आकाज़ के लिए उभरती है एक नई आवाज़
और एक कबीला बन जाती हैं मेरी उंगलियां.

दो.

बादलों की पीठ की सवारी करता
मैं लौटता हूँ दमिश्क
दुनिया के दो सबसे सुन्दर घोड़ों की सवारी करता –
जूनून का घोड़ा
कविता का घोड़ा.
साठ साल बाद मैं लौटता हूँ
अपनी गर्भनाल खोजने
दमिश्क के उस नाई को खोजने जिसने मेरा खतना किया था
उस दाई को खोजने
जिसने पलंग के नीचे चिलमची में उछाला था मुझे
और मेरे पिता से पाया था सोने का एक सिक्का,
मार्च १९२३ के उस दिन
उसने छोड़ा था हमारा घर
उसके हाथ सने हुए थे
कविता के रक्त से ...

तीन.

मैं लौटता हूँ उस गर्भ तक जिसमें मेरा निर्माण हुआ था
पढ़ी हुई पहली किताब तक ...
पहली स्त्री तक जिसने मुझे पढ़ाया था ...
प्रेम के भूगोल तक ...
और स्त्रियों के भूगोल तक ...

चार.

मैं लौटता हूँ
तमाम महाद्वीपों में अपने हाथ-पैरों के बिखर चुकने के बाद
तमाम होटलों में अपने बलगम के छितर चुकने के बाद
मेरी माँ की चादरों को
सदाबहार के साबुन से खुशबूदार बना लिए जाने के बाद
मुझे सोने के लिए कोई पलंग नहीं मिला
और तेल और अजवाइन की उस “दुल्हन” के बाद
जिसे वह बिछा देगी मेरे सामने
अब दुनिया की और कोई “दुल्हन” मुझे खुश नहीं करती
और बेल के उस मुरब्बे के बाद, जिसे वह अपने हाथों से बनाएगी
मैं सुबह के नाश्ते को लेकर उतना उत्साहित नहीं रहता अब
और काली बेरियों के शरबत के बाद
जिसे वह तैयार करेगी
किसी भी और शराब से
नहीं होता नशा मुझे ...

पांच.

मैं दाखिल होता हूँ उमय्याद की मस्जिद के अहाते में
और वहाँ मौजूद हरेक से दुआ-सलाम करता हूँ
एक कोने से ... कोने तक
एक खपरैल से ... खपरैल तक
फाख्ते से ... फाख्ते तक
मैं कूफी लिखावट के बगीचों में टहलता हूँ
और ईश्वर के शब्दों के सुन्दर फूल तोड़ता हूँ
अपनी आँखों से सुनता हूँ पच्चीकारी की आवाज़
और अकीक़ की तस्बीहों का संगीत
इलहाम और परमानंद की अवस्था मुझे आगोश में ले लेती है
सो मैं सामने पड़ने वाली
पहली मीनार की सीढियां चढ़ना शुरू करता हूँ
जो पुकार रहीं -
“चमेली के पास आओ
चमेली के पास आओ”

छह.

अपनी इच्छाओं की बारिशों के दाग लिए हुए
तुम तक लौटता
लौटता हुआ
अपनी ज़ेबों को
मेवों, हरे आलूचों और हरे बादामों से भरने
लौटता हुआ घोंघे के अपने कवच में
लौटता हुआ अपनी पैदाइश के पलंग तक
क्योंकि वर्साय के फव्वारे
फाउंटेन कैफे के सामने कुछ नहीं
और लन्दन का बकिंघम पैलेस
आज़म महल के सामने कुछ भी नहीं
और वेनिस में सान मार्को के कबूतर
उमय्याद की मस्जिद के फाख्तों से ज्यादा भाग्यवान नहीं
और लेस इन्वेलिदेस में नेपोलियन की कब्र
सालाह-अल-दिन अल अय्यूबी के मकबरे से
ज़्यादा शानदार नहीं.

सात.

मैं टहलता हूँ दमिश्क की तंग गलियों में
खिड़कियों के पीछे, जागती हैं शहदभरी आँखें
और मुझे सलाम करती हैं ...
सोने के अपने कंगन पहने हैं सितारे
सुर सलाम करते हैं मुझे ...
अपनी बुर्जियों से उतरते हैं कबूतर
और मुझे सलाम कहते हैं ...
और साफ-सुथरी बिल्लियाँ बाहर निकल आती हैं
जो जन्मी थीं हमारे साथ ...
हमारे साथ बड़ी हुईं ...
और हमारे साथ ही उनके निकाह हुए ...
मुझे सलाम करने ...

आठ.

मैं खुद को डुबो लेता हूँ बुज़ुर्रिया सौक में
मसालों के एक बादल पर तान देता हूँ एक पाल
लौंग ...
और दालचीनी ...
और कैमोमाइल के बादल.
मैं गुलाब के पानी से नहाता हूँ एक दफ़ा
और भावनाओं के पानी से कई बार
और भूल जाता हूँ – जब मैं सौक अल-अत्तारीन में होता हूँ –
नीना रिकी और कोको चैनल के तमाम मिश्रण.
ये मेरे साथ क्या कर रहे हो दमिश्क?
क्या तुमने मेरी संस्कृति बदल दी है?
मेरा सौंदर्यबोध?
क्योंकि मैं बिसरा चुका लिकरिश के प्यालों की खनक,
राख्मानिनोफ़ की पियानो कंसर्ट ...
शाम के बगीचे किस तरह बदल देते हैं मेरा रूप?
क्योंकि मैं बन गया हूँ दुनिया का पहला संगीत-संचालक
जो राह दिखा रहा है
बेंत के पेड़ों के एक ऑर्केस्ट्रा को.

नौ.

मैं तुम तक आया हूं
दमिश्क के गुलाब के इतिहास से
जो घनीभूत कर देता है खुशबू के इतिहास को ...
अल-मुतनब्बी की स्मृति से
जो घनीभूत कर देती है कविता के इतिहास को ...
मैं तुम तक आया हूँ
कड़वे संतरों की बौरों से
और नारसिसस से ...
और “अच्छे बच्चे” से
उस पहले से जिसने मुझे चित्र बनाना सिखाया
मैं तुम तक आया हूँ ...
शाम की स्त्रियों की हंसी से
जिन्होंने मुझे सब से पहले संगीत सिखाया ...
हमारी गली की टूटी हुई टोंटियों से
जिन्होंने सबसे पहले रोना सिखाया
और अपनी माँ की प्रार्थना करने वाली दरी से
जिसने मुझे सबसे पहले सिखाया
ईश्वर की तरफ जाने वाला रास्ता.


दस.

मैं याददाश्त की दराजें खोलता हूँ
एक ...
फिर दूसरी
मुझे याद आती है मुआविया गली की अपनी वर्कशॉप से बाहर आते
अपने पिता की
मुझे इक्के याद आते हैं ...
और नाशपातियाँ बेचने वाले ...
और अल-रुब्वा के कहवाघर
जो अरक की पांच कुप्पियों के बाद
करीब करीब नदी में गिर जाया करते थे
मुझे रंगबिरंगे तौलिए याद आते हैं
जब वे नृत्य कर रहे होते थे हमाम अल-खैय्यातिन के दरवाज़े पर
जैसे कि मना रहे हों अपना राष्ट्रीय अवकाश
मुझे दमिश्क के घर याद आते हैं
तांबे के उनके दरवाजों के हत्थे
और चमकीली खपरैलों से सजी छतें
और उनके भीतरी अहाते
जो आपको स्वर्ग के विवरणों की याद दिलाते हैं ...

ग्यारह.

दमिश्क का मकान
वास्तुशिल्प के सिद्धांतों से परे होता है
हमारे घरों की बनावट ...
एक भावुक नींव पर आधारित होती है
क्योंकि हर घर टेक लेता है ...
दूसरे घर के कूल्हे की
और हर छज्जा अपना हाथ बढाता है
सामने वाले छज्जे की तरफ
मोहब्बत से भरपूर होते हैं यहाँ के घर ...
सुबह अभिवादन करते हैं आपस में
और मुलाकातें उनकीं
गुपचुप – रातों में ...

बारह.

तीस बरस पहले
जब मैं ब्रिटेन में एक कूटनीतिज्ञ था
वसंत की शुरुआत में मेरी माँ मुझे चिठ्ठियां भेजा करती थी
हरेक चिठ्ठी के भीतर टेरागान की एक पोटली ...
जब अंग्रेजों को मेरी चिठ्ठियों पर शक होता था
वे उन्हें प्रयोगशाला में ले जाया करते थे
और वहाँ से उन्हें थमा दिया जाता था
स्कॉटलैंड यार्ड को
और विस्फोटक-विशेषज्ञों को
और जब वे मुझसे ... और मेरे टेरागान से थक जाते
वे मुझ से पूछते –
खुदा के वास्ते बता दो ...
इस जादुई जड़ी का नाम क्या है जिसने हमें उनींदा बना दिया है?
क्या यह कोई ताबीज है?
दवा?
या कोई गुप्त कोड?
इसे अंग्रेज़ी में क्या कहते हैं?
मैं उन से कहता -
यह समझा पाना मेरे लिए मुश्किल होगा
क्योंकि टेरागान एक भाषा है
जिसे शाम के बगीचे बोला करते हैं
यह हमारी पवित्र जड़ी है ...
हमारी सुगन्धित वक्तृता
और अगर आपके महाकवि शेक्सपीयर ने जाना होता टेरागान के बारे में
तो उस के नाटक बेहतर होते ...
संक्षेप में ...
मेरी माँ एक शानदार महिला है ...
वह मुझे बेहद प्यार करती है ...
और जब भी उसे मेरी याद आती है
वह मेरे वास्ते टेरागान का एक गुच्छा भेज देती है
क्योंकि टेरागान उस के लिए “मेरे प्यारे” का समतुल्य है
- जब अँगरेज़ मेरे काव्यात्मक तर्क का एक भी शब्द नहीं समझ पाते थे
वे लौटा दिया करते मेरा टेरागान और
जांच बंद कर दी जाती ...

तेरह.

खान असद बाशा से
उभरता है अबू खलील अल-क़ब्बानी ...
दमश्क के बने अपने लिबास में ...
पहने अपनी ज़रीदार पगड़ी ...
सवालों से अभिशप्त उसकी आँखें ...
गोया हैमलेट की आँखें हों ...
वह एक अवां-गार्द नाटक पेश करने की कोशिश करता है
मगर लोग “करागोज़ के तम्बू” की मांग करते हैं
वह कोशिश करता है
शेक्सपीयर का एक टुकड़ा पेश करने की
लोग उस से अल-ज़िर की ख़बरों की बाबत सवाल करते हैं
वह कोशिश करता है एक इकलौता स्त्री-स्वर ढूँढने की
जो उस के साथ “ओ शाम” गा सके
लोग अपनी ऑटोमन राइफलों में गोलियाँ भर लेते हैं
और पेशेवर गवैये गुलाब के हर पौधे पर गोलियां दागते हैं
... वह कोशिश करता है एक स्त्री को ढूँढने की
जो उसके पीछे दोहरा सके – “ओ चिड़ियों की चिड़िया, ओ फाख्ते!”
वे अपने चाकू बाहर निकाल लेते हैं
और फाख्तों की तमाम संततियों का क़त्ल कर देते हैं ...
और स्त्रियों की तमाम संततियों का ...
सौ बरस बाद
दमिश्क ने अबू खलील अल-क़ब्बानी से माफी माँगी
और उसकी याद में खड़ा कर दिया एक भव्य थियेटर.

चौदह.

मैंने मुह्यी अल-दिन इब्न अल-अरबी का लबादा पहना
मैं उतरा कैसीउन पहाड की चोटी से
नगर के बच्चे ...
आड़ू
अनार
और तिल का हलवा थामे ...
और उस की स्त्रियों के लिए फीरोज़े के हार ...
और प्यार की कवितायेँ ...
मैं प्रवेश करता हूँ ...
गौरेय्यों की एक लंबी सुरंग
जिलीफ्लावर ...
गुडहल ...
चमेली के गुच्छे ...
और मैं प्रवेश करता हूँ खुशबू के सवालों में ...
मेरा स्कूल का बस्ता खो गया है
और तांबे का बना लंच-बॉक्स
जिस में मैं अपना खाना ले जाया करता था ...
और वे नीले मनके
जिन्हें मेरी छाती पर टांग देती थी माँ ...
सो शाम के लोगो
तुम में से जो भी मुझे खोज ले
उसने लौटा देना चाहिए मुझे
उम्म मुआताज को और ईश्वर उसका भला करेगा
मैं तुम्हारी हरी गौरैय्या हूँ ...
शाम के लोगो
तुम में से जो भी मुझे खोज ले
उसने चुगाना चाहिए मुझे गेहूं का एक दाना ...
मैं तुम्हारे दमिश्क का गुलाब हूँ ...
शाम के लोगो
तुम में से जो भी मुझे खोज ले
उस ने सजा देना चाहिए मुझे पहले फूलदान में
मैं तुम्हारा पागल शायर हूँ ...
शाम के लोगो
तुम में से जो भी मुझे देखे
उस ने खींच लेना चाहिए
याददाश्त के वास्ते मेरा एक फोटो
इस के पहले कि मैं निकल आऊं
अपने जादुई पागलपन से बाहर
मैं तुम्हारा शरणार्थी चंद्रमा हूँ
शाम के लोगो
तुम में से जो भी मुझे देखे
उस ने दान में देनी चाहिए एक चारपाई ...
और एक ऊनी कम्बल ...
सदियों से सोया नहीं हूँ मैं.

(शाम- वृहत्तर सीरिया के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला प्राचीन नाम)

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