Monday, April 23, 2012

याद है, यह कोट एक मेले में खरीदा था



अमेरिकी मूल की कवयित्री डेबोरा डिग्ज़ (६ फरवरी १९५०- १० अप्रैल २००९) पेशे से अध्यापिका थीं. डॉक्टर पिता और नर्स माता की छठी संतान थीं वे. अपने जीवनकाल में उन्होंने कविता की चार किताबों के अलावा दो संस्मरणात्मक पुस्तकें भी प्रकाशित कराईं. साहित्य के कई बड़े पुरुस्कारों से उन्हें नवाजा गया. उन्होंने क्यूबाई कवयित्री मारिया एलेना क्रूज वारेला की कविताओं का अंग्रेज़ी तर्जुमा करने का श्रेय भी जाता है. अंतिम दिनों में वे डिप्रेशन की शिकार हुईं और ५९ की आयु में एक ऊंची इमारत से कूद कर उन्होंने अपनी जान ले ली. 


दर असल इस पोस्ट के लिए वरिष्ठ साहित्यकार आग्नेय जी जिम्मेदार हैं. इधर भोपाल के पहले पहल प्रकाशन से उनकी सात किताबों का एक सैट छपा है जिसे मुझे भिजवाने का उन्होंने अहसान किया. इन्हीं में से एक किताब "रक्त की वर्णमाला", जो उनके द्वारा किये गए विश्व-कविता के अनुवादों का संचयन है, से मैं डेबोरा डिग्ज़ की इस कविता को कबाड़खाने पर लगा पाने से अपने को रोक न सका. 

कोट

जब तुम
शहर से बाहर गए थे
मैंने तुम्हारे कपड़ों को पहना
मैंने अपने पैजामों के साथ
तुम्हारी सफ़ेद और हल्की नीली कमीजें पहनी
जब मैं कुत्तों को घुमाने ले जाती
मैं तम्हारे कोट को पहने रहती
हम रुक जाते एक तरफ
और घोड़ों को देखते
याद है, यह कोट एक मेले में खरीदा था
वह तिब्बती उन से बना हुआ था
मैं उसके टोप को इस तरह कस कर
अपने सर पर बाँध लेती थी
मेरे बालों से बंद हो जाती थी ठण्ड
हिमकणों में खोया मेरा हृदय
एक धवल पताका जैसा है
अपवादस्वरूप केवल आज
तुम्हारी लंबी बीमारी के
उन अंतिम हृदय विदारक महीनों से आता
तुहारे जैसा एक चेहरा देखा
एक ऐसे आदमी का चेहरा
जो उसके अस्तित्व से उड़ रहा था
पीलियाग्रस्त, मुश्किल से यहाँ उपस्थित
किन्तु तत्काल अपरिचित
क्षमा करना
मैं सुखी हूँ
तुम्हारे कोट में
तुम्हें देखती

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