Saturday, June 29, 2013

फिर मैंने केले खाने शुरू किये और छिलके आमतौर पर पैगम्बरों के रास्ते में फेंकता गया


गोलियां चलने से पहले

-संजय चतुर्वेदी

हर मूर्ख अपने आपको तपस्वी समझता है
हर लफंगा मनीषी
मुझे चाहकर भी ग़लतफ़हमी नहीं हो पाई
मैं सिर्फ़ एक मूर्ख लफंगे की तरह नमूदार हुआ
दुनिया के पापों और पुण्यों के बीच अपनी जगह बनाने के लिए
न मैंने क्रिश्चियन को केवल क्रिश्चियन कहा
न मिशनरी को केवल मिशनरी
मैंने मक्का मदीना जाने का मन बना लिया पक्की तौर पर
लेकिन मेरी काफ़िरी को देखते
मेरे मुस्लिम दोस्तों ने ऐसा न करने की सलाह दी
फिर मैंने करबला जाने की कोशिश की
लेकिन तब तक स्वतंत्रता के रखवाले
इराकी सीमाओं को बंद कर चुके थे
मैं वृंदावन गया अलबत्ता
जहां मुझे वेणुगोपाल मिला
जो स्कूटर के पीछे बैठा गन्ना चूस रहा था
मैंने एक बकरी को संटी से धमकाकर भगाया
और निधिवन में प्रवेश किया
हरिदास बाबा की समाधि पर मुझे सचमुच रोमांच हो आया
लेकिन वहां मिला मुझे एक पंडा
जो अभी अभी कृष्ण भगवान से मिलकर आया था
और थरथर काँप रहा था
जब उस लीला-पुरुषोत्तम ने देखा मैं सुस्त घोड़े की तरह उसे देखे जा रहा हूँ
तो उसने चलते-चलते कोशिश की
कि मैं उसे दो दौ रूपये चंदे के दे दूं
अब मेरी हंसी छूट गयी और उसने मुझे कस के श्राप दिया
रात स्टेशन की बेंच पर
खटमलों ने मार-मार जूते मेरा परलोक सुधार दिया
मैंने कनॉट प्लेस से बांसुरी खरीदी और चांदनी चौक से पेड़े
मैं हरी कमीज़ पहन कर मन्दिर में घुसा भगवा ओढ़ कर तवाफ़ को निकला
मैंने ढेर सारी कविताएँ लिखीं
लेकिन आलोचकों ने अपनी सुविधा के हिसाब से छः-सात चुनीं
और भुनगे की तरह मुझे उन पर ठोक दिया
फिर मैंने केले खाने शुरू किये
और छिलके आमतौर पर पैगम्बरों के रास्ते में फेंकता गया
मैंने तमाम ज्योतिषियों के हाथ बांचे
औलियाओं, मुल्लाओं के फाल निकाले
एक मुबारक दरगाह पर मुझे एक मुबारक महात्मा की पूंछ का बाल मिला
मैंने उसकी खाल निकाल ली
जिसकी जैकेट बनवाकर मैं फ़ायरिंग स्क्वाड के सामने चला
गोलियाँ चलने से पहले मैं दो-एक बातें और आपको बता दूं
पवित्र आत्माओं के दिन
गोल्फ़ लिंक का एक क्रांतिकारी
मार्क्सवाद की चांदनी में नौकाविहार कर रहा था
मैंने उसका बजरा पलट दिया
जब उसने देखा यह तो सचमुच की हुई जा रही है
उसने दिल कड़ा करके गोता लगाया
और गुनगुनी रेत की तरफ भागा
अगले दिन वह तमाम अखबारों में बयान देता डोला
क्रान्ति के दुश्मनों का नाश हो
मेरा बजरा पलट दिया हरामखोरों ने
मैंने कौए की चोंच और छछूंदर के नाखून एक ताबीज़ में भरे
और मकर संक्रांति के दिन कमर तक गंगा में खड़े हो भविष्यवाणी की
2023 के तेईसवें गुरूवार को
दुनिया के सारे ज्योतिषी नष्ट हो जाएंगे
मुझे अलीगढ़ी के लिए ज्ञानपीठ मिला
और हाथरसी के लिए साहित्य अकादमी
हालांकि मैं लगातार हिन्दी में लिखता रहा
मेरी सूरत देखकर किसी की तबीयत नहीं खराब होती थी
इसलिए मुझे विद्वान नहीं माना गया
मैंने तीज-त्यौहारों पर अपनी प्रतिबद्धताओं के बक्से नहीं खोले
मैं कभी कहीं इतना महत्वपूर्ण नहीं हो पाया
कि लोग बहस करते
यह शैतान की औलाद था या भगवान की
मैंने विचारहीन गर्भ का मज़ाक उड़ाया
लेकिन मैंने कभी जन्म का मज़ाक नहीं उड़ाया
मृत्यु को तो मैंने सदा बड़े आदर के साथ देखा
मैंने कुछ राजनैतिक और सांस्कृतिक भविष्यवाणियां भी की थीं
जिन पर किसी ने ध्यान नहीं दिया.


(यह कविता ‘वर्तमान साहित्य’ में वर्ष १९९१ में छपी थी) 

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