नहीं जाना जा सकता मुझे
-पॉल एलुआर
नहीं जाना जा सकता मुझे
जितना तुम जानती हो मुझे, उस से
ज़्यादा
तुम्हारी आँखें जिनमें हम सोया
करते हैं
हमने मिलकर
निर्माण किया है एक बेहतर नियति का
मेरे पौरुष के उल्लास के लिए
बजाय हस्बे-मामूल आने वाली रातों
के
जिनमें यात्रा करता हूँ में
तुम्हारी उन आँखों ने संकेत बना दिए
हैं सड़कों पर
जिनका अर्थ बाकी धरती के लिए अजनबी
तुम्हारी आँखों में जो खोलती हैं
हमारे आगे
हमारा अंतहीन एकाकीपन
वे नहीं रहीं जो वे अपने को समझती थीं
नहीं जाना जा सकता तुम्हें
जितना मैं जानता हूँ तुम्हें, उस
से ज़्यादा.
1 comment:
बहुत ही खुबसूरत ख्यालो से रची रचना......
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