Wednesday, February 5, 2014

माफ़ करना नीडो

दिल्ली में हाल के दिनों में मारे गए छात्र नीडो की स्मृति में तिब्बत के युवा कवि तेनज़िंन त्सुंदे की एक कविता लगाना इस शर्मसार समय में प्रासंगिक होगा-


मुंबई में एक तिब्बती

मुंबई में एक तिब्बती 
को विदेशी नहीं समझा जाता.

वह एक चाइनीज़ ढाबे 
में रसोइया होता है.
लोग समझते वह चीनी है
बीजिंग से आया कोई भगौड़ा 

वह परेल ब्रिज की छाँह में 
स्वेटरें बेचता है गर्मियों में.
लोग समझते हैं वह 
कोई रिटायर हो चुका नेपाली बहादुर है. 

मुंबई में एक तिब्बती 
बम्बइया हिन्दी में गाली देता है
तनिक तिब्बती मिले लहज़े के साथ
और जब उसकी शब्द - क्षमता खतरे में पड़ती है
ज़ाहिर है वह तिब्बती बोलने लगता है.
ऐसे मौकों पर पारसी हंसने लगते हैं. 

मुंबई में एक तिब्बती को
पसंद आता है मिड-डे उलटना 
उसे पसंद है एफ़ एम. अलबत्ता वह नहीं करता 
तिब्बती गाना सुन पाने की उम्मीद 

वह एक लालबत्ती पर बस पकड़ता है
दौडती ट्रेन में घुसता है छलांग मारता
गुज़रता है एक लम्बी अंधेरी गली से
और जा लेटता है अपनी खोली में.

उसे गुस्सा आता है
जब लोग उस पर हँसते हैं
"चिंग-चौंग-पिंग-पौंग"

मुंबई में एक तिब्बती 
अब थक चूका है
उसे थोड़ी नींद चाहिए और एक सपना.
११ बजे रात की विरार फास्ट में 
वह चला जाता है हिमालय.
सुबह ८:०५ की फास्ट लोकल 
उसे वापस ले आती है चर्चगेट 
महानगर में - एक नए साम्राज्य में.

4 comments:

अफ़लातून said...

मर्मस्पर्शी

ghughutibasuti said...

उफ़! हृदय निचोड़ दिया. :(

आपका अख्तर खान अकेला said...

ashok bhaai sahii or sch dil ko chhhune valai baat ,,akhtar khan akela kota rajsthan

प्रवीण पाण्डेय said...

सबके लिये कुछ न कुछ स्थान रहे हमारे हृदयों में।