Sunday, August 17, 2014

अब घुटनियों का उनके मैं चलना बयां करूं – नज़ीर अकबराबादी के कन्हैया


जन्माष्टमी के अवसर पर पढ़िए बाबा नज़ीर की बेपनाह ख़ूबसूरत नज़्म- 

यारो सुनो! ये दधि के लुटैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
मोहन सरूप निरत, कन्‍हैया का बालपन 
बन बन के ग्‍वाल गौएं चरैया का बालपन 
ऐसा था, बांसुरी के बजैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 

ज़ाहिर में सुत वो नंद जसोदा के आप थे 
वरना वो आप ही माई थे और आपी बाप थे 
परदे में बालपन के ये उनके मिलाप थे 
जोती सरूप कहिए जिन्‍हें, सो वो आप थे 
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन 

उनको तो बालपन से ना था काम कुछ ज़रा 
संसार की जो रीत थी उसको रखा बजा 
मालिक थे वो तो आपी, उन्‍हें बालपन से क्‍या 
वां बालपन, जवानी, बुढ़ापा सब एक था 
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन 

मालिक जो होवे उसको सभी ठाठ यां सरे
चाहे वो नंगे पांव फिरे या मुकुट धरे
सब रूप हैं उसी के वो चाहे सो करे
चाहे जवां हो, चाहे लड़कपन से मन हरे
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन 

बाले हो ब्रजराज जो दुनिया में आ गये 
लीला के लाख रंग तमाशे दिखा गये 
इस बालपन के रूप में कितनों को भा गये 
एक ये भी लहर थी कि जहां को जता गये 
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन 

यूं बालपन तो होता है हर तिफ़्ल का भला
पर उनके बालपन में तो कुछ और भेद था
इस भेद की भला जी, किसी को ख़बर है क्या
क्या जाने अपने खेलने आए थे क्या कला
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन 

राधारमन तो यारो अजब जायेगौर थे
लड़कों में वह कहां हैं, जो कुछ उनमें तौर थे
आप ही वो प्रभू नाथ थे और आप दौर थे
उनके तो बालपन ही में तेवर कुछ और थे
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन 

वह बालपन में देखते जीधर नज़र उठा
पत्थर भी एक बार तो बन जाता मोम सा
उस रूप को ज्ञानी कोई देखता जो आ
दंडवत ही वो करता था माथा झुका झुका
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन 

पर्दा न बालपन का वो करते अगर ज़रा
क्या ताब थी जो कोई नज़र भर के देखता
झाड़ और पहाड़ देते सभी अपना सर झुका
पर कौन जानता था जो कुछ उनका भेद था
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन 

मोहन, मदन, गोपाल, हरी बंस, मन हरन
बलिहारी उनके नाम पै मेरा ये तन बदन
गिरधारी, नन्दलाल, हरिनाथ, गोवरधन
लाखों किए बनाव, हज़ारों किए जतन
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन 

पैदा तो मधुपुरी में हुए श्याम जी मुरार
गोकुल में आके नन्द के घर में लिया क़रार
नन्द उनको देख होवे था जी जान से निसार
माई जसोदा पीती थी पानी की वार धार
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन 

जब तक कि दूध पीते रहे ग्वाल ब्रज राज
सबके गले के कठुले थे और सबके सर के ताज
सुन्दर जो नारियां थीं वो करती थीं कामो-काज
रसिया का उन दिनों तो अजब रस का था मिजाज़
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन 

बदशक्ल से तो रोके सदा दूर हटते थे
और खूबरू को देख के हंस हंस के चिमटते थे
जिन नारियों से उनके ग़मो-दर्द बंटते थे
उनके तो दौड़-दौड़ गले से लिपटते थे
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन 

अब घुटनियों का उनके मैं चलना बयां करूं
या मीठी बातें मूंह से निकलना बयां करूं
या बालकॊं की तरह से पलना बयां करूं
या गोदियों में उनका मचलना बयां करूं
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन 

पाटी पकड़ के चलने लगे जब मदन गोपाल
धरती तमाम हो गई एक आन में निहाल
बासुक चरन छूने को चले देख कर पताल
आकास पर भी धूम मची देख उनकी चाल
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन 

थी उनकी चाल की तो अजब, यारो चाल-ढाल
पांवों में घुंघरू बाजते, सर पर झंडूले बाल
चलते ठुमक-ठुमक के जो वो डगमगाती चाल
थांबें कभी जसोदा कभी नन्द लें संभाल

जब पांवों चलने लागे बिहारी नन्द किशोर
माखन उचक्के ठहरे, मलाई दही के चोर
मुंह हाथ दूध से भरे कप्ड़े भी शोर-बोर
डाला तमाम ब्रज की गलियों में अपना शोर
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन 

करने लगे यह धूम जो गिरधारी नन्द लाल
इक आप और दूसरे साथ उनके सब ग्वाल बाल
माखन मलाई दूध जो पाया सो खा लिया
कुछ खाया, कुछ ख़राब किया कुछ गिरा दिया
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन 

कोठी में होवे फिर तो उसी को ढंढोरना
गोली में हो तो उस में भी जा मुंह को बोरना
ऊंचा हो तो भी कांधे पै चढ़ के न छोड़ना
पहुंचा न हाथ उसे मुरली से फोड़ना
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन 

गर चोरी करते आ गई ग्वालिन कोई वहां
और उसने आ पकड़ लिया तो उस से बोले हां
मैं तो तेरे दही की उड़ाता था मक्खियां
खाता नहीं मैं उसकी निकाले था चूंटियां
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन 

गर मारने को हाथ उठाती कोई ज़रा
तो उसकी अंगिया फाड़ते घूंसे लगा-लगा
चिल्लाते गाली देते मचल जाते जा ब जा
हर तरह वां से भाग निकलते उड़ा छुड़ा
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन 

ग़ुस्से में कोई हाथ पकड़ती जो आन कर
तो उसको वह सरूप दिखाते थे मुरलीधर
जो आफ लाके धरती वो माखन कटोरी भर
ग़ुस्सा वो उनका आन में जाता वहीं उअतर
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन 

उनको तो देख ग्वालिनें जी जान पाती थीं
घर में इसी बहाने से उनको बुलाती थीं
जाहिर है उनके हाथ से वो ग़ुल मचाती थीं
पर्दे में सब वह किशन के बलिहारी जाती थीं
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन 

कहती थीं दिल में दूध जो अब हम छिपाएंगे
श्रीकिशन इअसी बहाने हमें मुंह दिखाएंगे
और जो हमारे घर में यह माखन न पाएंगे
तो उनको क्या ग़रज़ है ये काहे को आएंगे
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन 

सब मिल जसोदा पास ये कहती थीं आ के बीर
अब तो तुम्हारा कान्ह हुआ है बड़ा शरीर
देता है हमको गालियां फिर फाड़ता है चीर
छोड़े दही न दूध न माखन मही न खीर
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन 

माता जसोदा उनकी बहुत करती मिनतियां
और कान्ह को डरातीं उठा बन की सांटियां
जब कान्ह जी जसोदा से करते यही बयां
तुम सच न जानो माता, ये सारी हैं झूटियां
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन

माता कभी ये राह मेरी छुंगलिया छुपाती है
जाता हूं राह में तो मुझे छॆड़ जाती हैं
आप ही मुझे रुठाती हैं आपी मनाती हैं
मारो इन्हें ये मुझको बहुत सा सताती हैं
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन

माता कभी ये मुझको पकड़ कर ले जाती हैं
गाने में अपने साथ मुझे भी गवाती हैं
सब नाचती हैं आप मुझे भी नचाती हैं
आप ही तुम्हारे पास ये फ़रियादी आती हैं
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन


एक रोज़ मुंह में कान्ह ने माखन झुका दिया
पूछा जसोदा ने तो वहीं मुंह बना दिया
मुंह खोल तीन लोक का आलम दिखा दिया
एक आन में दिखा दिखा दिया और फिर भुला दिया
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन

थे कान्ह जी तो नन्द जसोदा के घर के माह
मोहन नवल किशोर की थी सबके दिल में चाह
उनको जो देखता था सो कहता था वाह वाह
ऐसा तो बालपन न हुआ है किसी का आह
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन

सब मिल के यारो किशन मुरारी की बोलो जै
गोबिन्द छैल कुंज बिहारी की बोलो जै
दधिचोर गोपीनाथ, बिहारी की बोलो जै
तुम भी नज़ीर किशन बिहारी की बोलो जै
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन 
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन 
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन 


अब इसी के कुछ अंश अहमद हुसैन मुहम्मद हुसैन की आवाज़ में -

1 comment:

abcd said...

kya baat hai nazir akbarabaadi ki...adbhut