किसी
क़ौम की सबसे सच्ची अभिव्यक्ति उसके संगीत और नृत्य में है
- अफ़्रीकी कहावत
न्यू ऑर्लीन्स के बहुत से जैज़ संगीतकारों के लिए देश के बाकी
हिस्से की ओर जाने वाला सबसे बड़ा मार्ग था मिसीसिपी नदी का चौड़ा,
नावों से भरा पाट. नदी किनारे बसे शहरों के लोग एक शहर से दूसरे शहर
जाने के लिए नदी का इस्तेमाल करते और दर्जनों बड़े-बड़े बजरे अपने भाप के इंजनों
से धुँआ उड़ाते नदी के सीने को चीरते रहते. जहाँ तक यात्रियों का सवाल था, वे चाहे एक दिन के लिए बजरे पर सवार हुए हों या शनिवार-इतवार की छुट्टियाँ
मनाने या फिर पूरे हफ़्ते के नौका-विहार के लिए - उनके मनोरंजन की ज़रूरत का
ज़्यादातर हिस्सा बजरों पर मौजूद जैज़ मण्डलियों द्वारा उपलब्ध कराया जाता.
इन बजरों पर न्यू ऑर्लीन्स की कौन-सी जैज़ टोलियों ने पहले पहल
गाना-बजाना शुरू किया, इसकी याद किसी को नहीं. लेकिन बाद में आने वालों
में कुछ लोग निश्चय ही आगे चल कर बहुत मशहूर हुए. इन्हीं में थे कॉर्नेट-वादक शुगर
जॉनी जो कई वर्षों तक छै सदस्यों वाली अपनी टोली के साथ बजरों पर जैज़ बजाते दौरा
करते रहे और 1916 के आस-पास अन्ततः शिकागो जा बसे. अपनी टोली
में उन्होंने जो नयी बात पैदा की, वह थी महिला पियानो वादक
लिलियन हार्डिन को शामिल करना. लिलियन एक युवा छात्रा थी, जो
शास्त्रीय संगीत में और अधिक प्रवीणता प्राप्त करने के लिए शिकागो आयी थी, लेकिन जैज़ से परिचय होने पर वह जैज़ की ही हो कर रह गयी और बाद में श्रीमती
लुई आर्मस्ट्रॉन्ग बनी.
मिसीसिपी नदी पर तैरते बजरों में दौरा करने वाली जैज़ मण्डलियों में
से सबसे बड़ा बैण्ड सेण्ट लुई शहर के पियानो वादक फेट मैरेवल का था.
(शी’ज़ क्राइंग फॉर मी)
फ़ेट मैरेबल (1890-1947) पडुका,
केण्टकी के रहने वाले थे और उन्होंने अपनी मां से पियानो सीखा था.
सत्रह साल की उमर से वे मिसिसिपी नदी पर भाप से चलने वाले विशाल बजरों पर पियानो
बजाने लगे और जल्दी ही ऐसे बजरों पर बैण्ड संचालक हो गये जो मिसिसिपी नदी पर
आवा-जाही या सैर-सपाटे के लिए बजरों का इस्तेमाल करते थे. ये बजरे नदी पर न्यू
और्लीन्ज़ और लूज़िआना से ले कर मिनिआपोलिस और मिनेसोटा तक जाते थे और यात्रियों और
सैलानियों को इन लम्बी-लम्बी यात्राओं को गुलज़ार बनाने के लिए गीत-संगीत की दरकार
रहती. फ़ेट मैरेबल को वह "नया जैज़" संगीत बहुत पसन्द था जो न्यू और्लीन्ज़
में तरुणाई की मंज़िलें तय कर रहा था और उनके बैण्ड के ज़्यादातर संगीतकार उसी शहर
से भरती किये गये थे.
फेट मेरेबल की मण्डली में अमूमन दस साज़ और इतने ही वादक होते थे और
शायद उन्होंने न केवल सबसे ज़्यादा संगीतकारों को न्यू ऑर्लीन्स से अमरीका के अन्य
शहरों की ओर ले जाने में मदद की, बल्कि शायद सबसे
अच्छे संगीतकारों को भी - मिसाल के तौर पर लुई आर्मस्ट्रॉन्ग. ऐसी किंवदन्ती है कि
जब बजरा ऑल्टन नामक जगह से रवाना होता तो लुई ऑर्मस्ट्रॉन्ग धुन बजाना शुरू करते
और पन्द्रह मील दूर सेण्ट लुई पहुँचने तक वे उसकी अन्तराएँ ही बजा रहे होते.
उस ज़माने में मिसिसिपी नदी पर बहुत-से बड़े-बड़े बजरे चला करते थे जो
लोगों को नदी के किनारे बसे शहरों के बीच लाया-ले जाया करते. इन बजरों में
सवारियों के मनोरंजन के लिए गायकों और वादकों की मण्डलियां भी होतीं. इन बजरों में
कैपिटल नामक बजरा स्ट्रेकफ़स लाइन का सबसे बड़ा बजरा था और इस बजरे के बैण्ड की
बाग-डोर पियानो वादक और प्रबन्धक फ़ेट मैरेबल के हाथ में थी. मैरेब्ल ने स्ट्रेकफ़स
लाइन के साथ 1907 से 1940 तक काम किया और
इस लाइन के सभी बैंडों का बन्दोबस्त संभाला.
(कैपिटल नामक बजरे पर फ़ेट मैरेबल के बैंड का चित्र) |
(फ़ीलिक्स कैप्ट ऑन वॉकिंग)
मैरेबल अपने बैण्ड के सदस्यों से यह उम्मीद करते थे कि वे
गर्मा-गर्म, फड़कते हुए गीतों के साथ-साथ हल्के-फुल्के
शास्त्रीय संगीत के नमूने भी पेश करें और सबसे बड़ी बात, संगीत
की धुनों पर नाचने-थिरकने वाले यात्रियों को ख़ुश रखें. नतीजे के तौर पर फ़ेट मैरेबल
संगीत कौशल की अपेक्षा के साथ-साथ कड़े अनुशासन पर भी ज़ोर देते. मिसाल के लिए जब
लूई आर्मस्ट्रॉन्ग उनकी मण्डली में शामिल हुए तो मैरेबल ने जल्दी ही यह पहचान लिया
कि आर्मस्ट्रॉन्ग में हाथ-के-हाथ धुन को नयी दिशाओं में ले जाने का स्वाभाविक गुण
था और उन्होंने आर्मस्ट्रॉन्ग को लकीर का फ़क़ीर बनने की बजाय प्रयोग करने की खुली
छूट दी. मैरेबल के बैण्ड ने बहुत-से जैज़ संगीतकारों के लिए शुरुआती पाठशाला का काम
किया जो आगे चल कर जैज़ में जाने गये मसलन रेड ऐलन, बेबी
डौड्स, पौप्स फ़ौस्टर, ऐल मौर्गन,
आदि.
(बेबी डौड्स
- ड्रम)
(रेड ऐलन - ट्रम्पेट)
जॉर्ज रसेल जिन्होंने आगे चल कर संगीत के सुरों के बारे में अपना
मशहूर "लिडियन सिद्धान्त" निरूपित किया, फ़ेट मैरेबल की मण्डलियों को सुनते हुए ही बड़े हुए थे. रसेल के मुताबिक
संगीत में डौमिनेण्ट काम करने वाला सुर ही सबसे बड़ा प्रेरक तत्व होता है. इस पर
उन्होंने एक किताब भी लिखी और अपने सिद्धान्त को विस्तार से समझाया. आगे आने वाले
संगीतकारों जैसे जौन कोल्ट्रेन और माइल्स डेविस पर इस सिद्धान्त का बहुत असर हुआ.
***
न्यू ऑर्लीन्स पहुँचने से पहले मिसीसिपी नदी में कई नदियाँ आ कर
मिलती हैं, जिनमें से एक बड़ी नदी का नाम है मिसूरी और दूसरी
का नाम है इलीनॉय. ये दोनों नदियाँ सेण्ट लुई नाम की जगह के आस-पास मिसीसिपी नदी
में मिलती हैं. लिहाज़ा न्यू ऑर्लीन्स से मेम्फ़िस और सेण्ट लुई होते हुए सैलानियों
से भरे बजरे एक ओर तो मिसूरी नदी के किनारे बसे शहर कैन्सस सिटी की तरफ़ चले जाते
और दूसरी ओर इलिनॉय नदी के माध्यम से शिकागो की ओर. ज़ाहिर है बजरों के साथ सिर्फ़
सैलानी या मुसाफ़िर ही इन बड़े नगरों तक नहीं पहुँचते थे, बल्कि
न्यू ऑर्लीन्स की जैज़ मंडलियाँ भी. कुछ ही वर्षों में कैन्सस सिटी की उर्वर भूमि
में जैज़ के अंकुर पनपने लगे.
कैन्सस सिटी में संगीत एक अपनी परम्परा थी - ब्लूज़ पर आधारित भारी
लय वाले पियानो वादन की - जो बाद में ‘बूगी
वूगी’ के नाम से मशहूर हुई. इसके अलावा कैन्सस सिटी में जैज़
के लिए दो और महत्वपूर्ण आधार थे - एक बड़ा नीग्रो समुदाय और ढेर सारे नाचघर और
संगीत मंच. कैन्सस सिटी के संगीतकारों ने न्यू ऑर्लीन्स के जैज़ को ज़ज्ब तो किया ही,
अपने तईं उसे चुनौती भी दी. घुमन्तू मण्डलियों को वहाँ एक ऐसे संगीत
की परम्परा मिली, जो उनके संगीत जितना परिष्कृत तो नहीं था,
लेकिन उसमें एक ज़्यादा मज़बूत मर्दाना लय थी और उसकी ताल ज़्यादा
लौकिक और तीव्र थी. कैन्सस सिटी के अलावा जो दूसरा महत्वपूर्ण केन्द्र जैज़ को मिला,
वह था शिकागो. सन 20 के दशक के मध्य तक जैज़ की
लगभग सभी धाराएँ, जो मेम्फ़िस, न्यू
ऑर्लीन्स, कैन्सस सिटी और सेण्ट लुई से होते हुए अपने
जन्म-स्थान न्यू ऑर्लीन्स तक बिखरी हुई थीं, शिकागो में आ कर
केन्द्रित होने लगीं.
बहरहाल, जैज़ संगीत के पहले-पहल रिकॉर्ड भले ही गोरे
संगीतकारों ने रिकॉर्ड कराये, मगर इसके बाद मोर्चा एक बार
फिर नीग्रो संगीतकारों ने सँभाल लिया और इसमें कोई शक नहीं कि जैज़ की न्यू
ऑर्लीन्स शैली के सबसे उम्दा रिकॉर्ड सन 1926 में जेली रोल
मॉर्टन और उनके दल - रेड हॉट पेपर्स - ने पेश किये और उनका ज़्यादातर संगीत स्वयं
जेली रोल मॉर्टन का रचा हुआ था.
लुई आर्मस्ट्रांग और किंग ऑलिवर |
इस सदी के आरम्भिक वर्षों में जैज़ मण्डलियों द्वारा बजायी जाने वाली बहुत-सी परम्परागत धुनों पर उन धुनों का भी असर है, जो कवायद के समय या फिर जुलूसों के आगे-आगे चलने वाले बैण्डों द्वारा बजायी जाती थीं. मिसाल के तौर पर किंग ऑलिवर और उनके क्रियोल जैज़ बैण्ड द्वारा बजायी गयी मशहूर धुन ‘हाई सोसाइटी’.
(किंग ऑलिवर और उनका क्रियोल जैज़ बैण्ड - हाई सोसाइटी)
जोज़ेफ़ नैथन ऑलिवर (1881-1938), जिन्हें जैज़ संगीत की दुनिया ने "किंग औलिवर" का ख़िताब दिया और
इसी नाम से जाना, कौर्नेट वादक और जैज़ मण्डली के संचालक थे.
उन्हें ख़ास तौर पर उनके वादन की शैली और नयी धुनें बनाने की ख़ूबी से शोहरत मिली.
उनकी बनायी बहुत-सी धुनें आज भी बजायी जाती हैं, जैसे
"डिपरमाउथ ब्लूज़," "स्वीट लाइक दिस" और
"डौक्टर जैज़." हालांकि लूई आर्मस्ट्रॉन्ग ने शुरुआत फ़ेट मैरेबल के साथ
की थी, लेकिन उनके असली गुरु और उस्ताद किंग औलिवर ही थे.
जैज़ संगीत पर उनका इतना गहरा असर पड़ा था कि आर्मस्ट्रॉन्ग ने आगे चल कर बाद में
अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति पाने के बाद एक बार कहा था, "अगर
जो औलिवर न होते तो जैज़ वहां न होता जहां वह आज है."
(किंग औलिवर - क्रिओल जैज़ बैंड - डिपर माउथ ब्लूज़)
ऑलिवर लूज़िआना के एक कस्बे में पैदा हुए थे लेकिन अपनी जवानी ही
में न्यू और्लीन्ज़ आ गये थे. पहले उन्होंने ट्रौम्बोन पर हाथ आज़माया पर जल्दी ही
वे कौर्नेट बजाने लगे. वे आम मण्डलियों में भी बजाते और नृत्य के आयोजनों से जुड़ी
मण्डलियों में भी और न्यू और्लीन्ज़ के उस इलाके में भी जो अपनी तवायफ़ों के लिए
जाना जाता था. सबसे बड़ी बात यह थी कि रंग-जाति और नस्ल के भेद-भाव के होते हुए भी
किंग औलिवर के चाहने वालों में हर रंग, जाति,
नस्ल और वर्ग के लोग थे, ग़रीब भी और अमीर भी,
काले भी और गोरे भी. और किंग औलिवर की कलाकारी उसी हरदिलअज़ीज़ी के
साथ काम-काजी काले समुदाय और तवायफ़ ख़ानों में और ऊंचे तबक़े के गोरों के जलसों में
चमकती. 1910 के दशक के अन्त में किंग औलिवर का बैण्ड न्यू
और्लीन्ज़ के सबसे लोकप्रिय बैण्डों में शामिल हो चुका था. तभी एक ऐसी घटना हुई कि
औलिवर को अपनी पत्नी और बेटी के साथ अपने पसन्दीदा शहर न्यू और्लीन्ज़ को छोड़ कर
शिकागो जाना पड़ा. बहुत बाद में ऑलिवर की पत्नी एस्टेला ने एक इंटरव्यू में बताया
कि नाच के एक जलसे में लड़ाई-झगड़ा हो गया. पुलिस आयी और उसने झगड़ा करने वालों के
साथ औलिवर और उनकी मण्दली के सभी संगीतकारों को भी गिरफ़्तार कर लिया. साथ ही उन
दिनों तवायफ़ों के इलाक़े "स्टोरीविले" भी बन्द कर दिया गया. नतीजा यह हुआ
कि 1918 में किंग ऑलिवर अपनी पत्नी एस्टेल और बेटी रूबी के
साथ शिकागो चले आये. न्यू और्लीन्ज़ के इस नुक़सान से फ़ायदा शिकागो के जैज़ जगत को
हुआ.
चार बरस में किंग ऑलिवर ने एक बार फिर अपना बैण्ड खड़ा कर लिया था
और 1922 में उन्होंने "किंग ऑलिवर ऐण्ड हिज़
क्रियोल जैज़ बैण्ड" की बुनियाद रख दी थी जिसमें एक-से-एक कलाकारों की भरमार
थी - लूई आर्मस्ट्रॉन्ग (कौर्नेट), बेबी डौड्स (ड्रम),
जौनी डौड्स (क्लैरिनेट), होनोरे डूट्रे (ट्रौम्बोन)
और विलियम मैनुएल जौन्सन (बेस गिटार) तो थे ही, ऑलिवर ने एक
महिला संगीतकार लिलियन हार्डिन को पियानो वादक के तौर पर मौक़ा दिया. लिलियन आगे चल
कर श्रीमती आर्मस्ट्रॉन्ग बनीं. 1923 से किंग ऑलिवर ने
बाक़ायदा संगीत रिकौर्ड कराना शुरू किया और एक नये क्षेत्र को अपने संगीतकारों के
लिए खोल दिया.
(कनैल स्ट्रीट ब्लूज़ - किंग ऑलिवर - क्रिओल जैज़ बैंड )
अफ़सोस की बात यह थी कि संगीत के फ़न में किंग ऑलिवर जितने बड़े उस्ताद थे, कारोबार के मामले में उतने ही अनाड़ी थे. कई
प्रबन्धकों ने उन्हें चूना लगाया और उनके पैसे हड़प कर गये. ख़ुद ऑलिवर ने कई बार
ज़्यादा पैसे मांगने की वजह से अवसर खो दिये, जैसा न्यू यौर्क
के मशहूर "कौटन क्लब" के सिलसिले में हुआ, जब यह
मौक़ा उनकी बजाय ड्यूक एलिंग्टन को मिल गया जिन्हों ने यह अवसर स्वीकार कर लिया और
आगे चल कर शोहरत हासिल की. ऊपर से 1929 की मन्दी के दौर ने
रही-सही कसर पूरी कर दी. औलिवर का सारा पैसा जो बैंक में जमा था बैंक के दीवालिया
हो जाने पर डूब गया. फिर जैसे इतना ही काफ़ी नहीं था, उनके
मसूढ़ों की तकलीफ़ की वजह से उन्हें कौर्नेट बजाने में परेशानी होने लगी. मण्डली टूट
गयी. इस महान संगीतकार के आख़िरी दिन सवाना, जौर्जिया के एक
मनोरंजन केन्द्र में सफ़ाई कर्मचारी की नौकरी करते हुए बीते, जहां
1938 में जिगर की बीमारी से उनकी मृत्यु हो गयी, जिसका इलाज करने के साधन भी उनके पास नहीं बचे थे.
लेकिन इस सब के बावजूद किंग ऑलिवर ने जैज़ को आगे बढ़ाने में जो काम
किया वह अनमोल था. जाने कितने जैज़ कलाकारों को उन्होंने आगे बढ़ाया,
प्रेरित किया और अनगिनत गायकों-वादकों पर अपना असर छोड़ा.
(जारी)
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