लूई आर्मस्ट्रांग |
1.
जैज़ संगीत अनुद्विग्नता की तीव्र अनुभूति है
- फ़्रान्स्वा सागां, लेखिका
अर्सा पहले कुमार गन्धर्व की विशेषताओं के सन्दर्भ में रघुवीर सहाय ने दो
तत्वों की चर्चा ख़ास तौर पर की थी - तल्लीनता और द्वन्द्व. जैज़ संगीत को सुनते हुए, बड़ी शिद्दत के साथ इन दोनों ही
तत्वों की अनुभूति होती है. जैज़ संगीत की सफल संरचना में तो ये विद्यमान हैं ही,
उसकी मूल प्रकृति भी ऐसी है, जिसमें लौकिकता
के साथ उदात्तता का अपूर्व मेल है. ऐसी लौकिकता, जो धरती के
सुखों की भरपूर अनुभूति से उपजती है और ऐसी उदात्तता, जो दुख
और उत्पीड़न के बावजूद ज़िन्दगी को "जानने" के बाद आती है. ये दोनों
विशेषताएँ अमरीकी नीग्रो समाज में मौजूद हैं और उसके जैज़ संगीत में भी. कई बार ये
दोनों तत्व - तल्लीनता और द्वन्द्व, लौकिकता और उदात्तता -
किसी एक ही कलाकार में बराबर की मिकदार में मौजूद रहे हैं, जैसा
कि लूई आर्मस्ट्रौंग, बेसी स्मिथ, ड्यूक
एलिंग्टन, बिली हौलिडे, चार्ली पार्कर,
माइल्स डेविस, थेलोनिअस मंक, चार्ल्स मिंगस और और्नेट कोलमैन के सिलसिले में देखा गया है. तब निश्चय ही
जैज़ संगीत एक "अनुभव" बन गया है. लेकिन मौजूद ये तत्व कम-ओ-बेश
सारे-के-सारे जैज़ संगीत में रहते हैं, भले ही कलाकार नीग्रो
न हो कर, गोरा या एशियाई हो, जैसा कि
अमरीकी क्लैरिनेट वादक बेनी गुडमैन या जिप्सी मूल के गिटार वादक जैंगो राइनहार्ट
या निस्बतन हाल के अर्से में जापानी-अमरीकी पियानो वादक तोशियो आकियोशी के सिलसिले
में देखने को मिलता है.
इसमें कोई शक नहीं कि जैज़ अमरीकी संगीत है, मगर उसकी बुनियादी लय-ताल यूरोपीय नहीं, अफ्रीकी है. तो भी अपने मौजूदा रूप में जैज़ की लयात्मक प्रकृति, उसकी ख़ास किस्म की गति, उसका "स्विंग" या
उसकी "पल्स" (जैसा कि किसी बेहतर शब्द के अभाव में उसे कहा जाता है)
अपनी अफ्रीकी जड़ों से दूर चला आया है. अब वह जैज़ संगीत की अपनी विशेषता है. इस
लिहाज़ से जैज़ संगीत का इतिहास उसकी लय और ताल के उद्भव और विकास के सन्दर्भ में
ज़्यादा सच्चाई के साथ बयान किया जा सकता है. पहले महायुद्ध के बाद जेली रोल मॉर्टन
ने और उसके बाद लूई आर्मस्ट्रौंग, ड्यूक एलिंग्टन, चार्ली पार्कर और थिलोनियस मंक जैसे संगीतकारों ने बीस, तीस, चालीस और पचास के दशकों में जैज़ संगीत के
क्षेत्र में जो भी योगदान किया, वह बुनियादी तौर पर लय और
ताल से ही सम्बन्धित है - यानी संगीत को नये ढंग से अदा करना या फिर नये ढंग से
सुरों का क्रम तय करना - वह, जिसे संगीत-विशेषज्ञ ‘लयात्मक ताल’ या ‘राग’ निर्मित करना कहते हैं.
मगर यह सब तो बहुत बाद की बात है.
***
उन्नीसवी सदी के अन्तिम चरण और बीसवीं सदी के आरम्भ में जैज़ अमरीका के
दक्षिणी हिस्से में नदी के किनारे बसे बड़े-बड़े शहरों की गलियों में या फिर रेल
की पटरियाँ बिछाने वाले मज़दूरों की बस्तियों में या फिर अमरीका के दक्षिणी राज्यों
के हरे-भरे देहातों से गुज़रती कच्ची सड़कों पर या कारागारों में सज़ा काट रहे
ज़ंजीरों से बंधे क़तारबन्द नीग्रो मज़दूरों - चेन गैंग - में अक्सर सुनाई देता था.
यही उसका इलाका था और यही उसका मंच और उसके शुरू के कलाकार थे गिटार या माउथ ऑर्गन
बजाने वाले मामूली मज़दूर या छन्दोबद्ध किस्से-कहानियाँ सुनाने वाले गायक या अपने
दुख और उदासी को लय-ताल-शब्दों में व्यक्त करने वाले वे सारे-के-सारे अनाम नीग्रो
संगीतकार, जिन्होंने अपनी उस
कठिन चट्टानी ज़िन्दगी का सामना करते हुए, उस कठिन, चट्टानी ज़िन्दगी के अन्दर से इस संगीत को बाहर निकाला था जैसे किसी खान से
कोई धातु या खनिज निकाला जाता है, जैसे किसी गहरे कुएं से
पानी निकाला जाता है और फिर उसे गढ़ कर, मुनासिब पात्र में रख
कर उन तमाम लोगों के बीच बाँटा-बिखेरा था, जो उसके लयात्मक
कड़वे-मीठे स्वाद में अपनी ख़ुद की रची सुन्दरता की आन्तरिक दबी हुई ज़रूरत पूरी
होती महसूस करते. यही लोग थे, जिन्होंने उसे जन्म दिया,
पाला-पोसा और एक रूप प्रदान किया.
***
सन् 1914 में, जब पहला विश्वयुद्ध शुरू हुआ, जैज़ संगीत अपने
प्रारम्भिक रूप में कमोबेश लोक-संगीत की तरह था. अमरीका के एक छोटे-से हिस्से में
सीमित. अनुमान है कि उस समय जैज़ संगीतकारों की संख्या सौ-सवा सौ के आस-पास रही
होगी और सुनने वालों की तादाद लगभग पचास हज़ार. लेकिन आज जैज़ संगीत दुनिया के
कोने-कोने में फैल चुका है उसका एक ‘कायदा,’ कहा जाय कि एक ‘पद्धति,’ बन
चुकी है; और हालांकि यह बात हमेशा याद रखने की है कि जैज़
अन्य शास्त्रीय संगीत और कला-रूपों से बिलकुल अलग है, उसका
एक ‘शास्त्र’ विकसित हो चुका है और
अमरीका के एक छोटे-से हिस्से के सीमित दायरे से बाहर आ कर वह दुनिया के अन्य
संगीत-रूपों की पाँत में शामिल हो गया है.
लोक जीवन से शुरू हो
कर शास्त्र या लगभग शास्त्र बनने तक की यह यात्रा लगभग ढाई सौ वर्षों के अर्से में
फैली हुई है और इसे ले कर अनेक मत-मतान्तर हैं, अनेक विवाद
हैं. मगर इतना सभी मानते हैं कि जैज़-संगीत की जड़ें एक ओर तो उस अफ्रीकी संगीत में
खोजी जा सकती हैं, जो नीग्रो ग़ुलामों के साथ अमरीका आया था
और दूसरी ओर विभिन्न प्रकार के उस यूरोपीय संगीत में, जो
अमरीका के दक्षिणी राज्यों में गाया-बजाया जाता था.
***
आज का जैज़ संगीत बहुत जटिल हो गया है. ग़ुलामी और उसके दौर के ज़ख़्म हालांकि
बीती हुई बात बन चुके हैं, पर वे पूरी तरह मिटे
नहीं और अफ़्रीकी मूल के अमरीकी संगीतकारों की जातीय स्मृति की गहराइयों में मौजूद
हैं और जैसा कि लुई आर्मस्ट्रौंग ने कहा है "जैज़ संगीतकार के लिए बीते समय की
स्मृतियां बहुत महत्वपूर्ण होती हैं." तो भी आज जैज़ के साज़ कहीं अधिक
संश्लिष्ट हैं और बड़ी ख़ूबी से परम्परा से चली आ रही नियमबद्धता और शुद्धता को
उन्मुक्त प्रयोगशीलता के साथ पेश करते हैं. शायद यही वजह है कि जैज़ किसी संगीत
सम्मेलन के मंच पर भी उतने ही सहज भाव से पेश किया जा सकता है, जितना गली-कूचे के चायख़ानों या होटलों या शराबख़ानों में.
ज़ाहिर है कि इस
संगीत के साथ वही हुआ है, जो काफ़ी हद तक पश्चिमी या भारतीय
शास्त्रीय संगीत के साथ - यानी विकास, मगर फ़र्क़ सिर्फ़ इतना
है कि इन दोनों शास्त्रीय संगीत परम्पराओं ने जो फ़ासला सैकड़ों वर्षों में तय किया,
उसे जैज़ संगीत ने कुछ दशकों में तय कर लिया है और इस लिहाज़ से जैज़
संगीत विकास नहीं, बल्कि विस्फोट जैसा जान पड़ता है. दूसरा
महत्वपूर्ण अन्तर यह है कि जैज़ संगीत ने ‘शास्त्रीयता’
के स्तर तक पहुँचने के बाद भी लोक-परम्परा में डूबी अपनी जड़ों से
कभी नाता नहीं तोड़ा. यही कारण है कि वह एक साथ मंच और मैदान, बड़े आयोजन या छोटे चायघर - सभी जगह समान रूप से लोकप्रिय रह सका है जो
बात कि पश्चिमी या भारतीय शास्त्रीय संगीत में नहीं देखी जाती. रविशंकर और विलायत
ख़ां, किशोरी अमोनकर और भीमसेन जोशी या ज़ुबिन मेहता और
आन्द्रे प्रेविन को किसी छोटे चायघर में गाते-बजाते देखने की बात तो दूर, उन्हें वहाँ सुनने की भी कल्पना नहीं की जा सकती, लेकिन
जैज़ संगीत अकसर ऐसी छोटी-छोटी जगहों में भी सुना जाता रहा है और अब भी सुना जा
सकता है.
(जारी)
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