उस्ताद वाहिद हुसैन खां का जन्म १९२३ में दिल्ली में हुआ था. मशहूर खुर्जा घराना के हाजी उस्ताद अल्ताफ़ हुसैन खां उनके वालिद थे. उस्ताद अल्ताफ़ हुसैन खां स्वयं गायन सम्राट कहे जाने वाले उस्ताद अज़मत हुसैन खां साहब के मामू और उस्ताद थे.
उस्ताद
वाहिद हुसैन खां गायन के क्षेत्र में बड़ी प्रतिभा माने जाते थे. वे खुर्जा घराना
के ग्यारहवें वंशज थे. स्वयं उनके और उनके भाई उस्ताद मुमताज़ हुसैन खां के पाकिस्तान
चले जाने और उस्ताद अज़मत हुसैन खां की १९७५ में हुई मौत के बाद यह घराना विलुप्त
होने की तरफ अग्रसर है. संगीत के जानकारों के अनुसार यह कहना गलत है कि खुर्जा
घराना समाप्त हो चुका है. भारत में जितेन्द्र अभिषेकी, दुर्गाबाई शिरोडकर और टी.
आई. राजू और पाकिस्तान में उस्ताद वाहिद हुसैन
खां के सुपुत्र जावेद हुसैन खां और परवेज़ खुसरो खुर्जा घराने की गायकी को जीवित
रखे हुए हैं. यह हैरानी की बात है कि कला-समीक्षकों ने इस महत्वपूर्ण घराने की
ज़रुरत से ज़्यादा अनदेखी की है.
उस्ताद
वाहिद हुसैन खां की शुरुआती ट्रेनिंग अपने मशहूर पिता उस्ताद अल्ताफ़ हुसैन खां के
साथ हुई थी. उनके अगले उस्तादों में उनके ममेरे भाई उस्ताद अज़मत हुसैन खां और
उस्ताद विलायत खां शामिल थे. उस्ताद वाहिद हुसैन खां ने भारत के हर महत्वपूर्ण
संगीत सम्मलेन में हिस्सेदारी की थी. उनकी आवाज़ में एक पसराव था जो अपने स्पष्ट
आकार और सरगम और तानों की विविधता में नज़र आता था. शानदार लयकारी उनके गायन का
विशिष्ट हिस्सा होता था. १९६४ में उनके पिता का देहांत हुआ, जिसके बाद वे और उनके
भाई कराची चले गए. उन्होंने जीवनभर भारतीय शास्त्रीय संगीत का प्रसार किया. कराची
और लाहौर में उनके बनाए असंख्य शिष्य हैं. उनके पुत्र और सिद्ध गायक परवेज़ ख़ुसरो
खुर्जा गायकी को पाकिस्तान में लोकप्रिय बनाने के काम में लगे हुए हैं.
उस्ताद
वाहिद हुसैन खां को अस्थाईयाँ और अंतरे लिखने
में भी महारत हासिल थी और उन्होंने ‘प्रभुदास’ और ‘वाहिद रंग’ उपनाम से रचनाएं
कीं. अपनी मृत्यु से कुछ साल पहले वे भारत आये थे और अपना गायन प्रस्तुत किया था.
पाकिस्तान
की सरकार ने उन्हें सुर संगम और फ़ख्र-ए-आहंग-ए-खुसरवी से सम्मानित किया था.
आज उन की
आवाज़ में राग भीमपलासी सुनिए–
और यह रहा उनके भारत दौरे के समय मुम्बई में दी गयी उनकी परफॉर्मेंस का वीडियो –
No comments:
Post a Comment