Tuesday, April 14, 2015

इस नगरी के दस दरवाजे जोगी फेरी नित देता है


कुमार गन्धर्व जी के स्वर में गुरु मत्स्येन्द्रनाथ (मछिन्दरनाथ) का एक भजन -



शून्य गढ़ शहर शहर घर बस्ती कौन सूता कौन जागे है
लाल हमरे हम लालान के तन सोता ब्रह्म जागे है

जल बिच कमल कमल बिच कलिया भँवर बास न लेता है
इस नगरी के दस दरवाजे जोगी फेरी नित देता है

तन की कुण्डी मन का सोटा ज्ञानकी रगड लगाता है
पांच पचीस बसे घट भीतर उनकू घोट पिलाता है


अगन कुण्ड से तपसी तापे तपसी तपसा करता है
पाँचों चेला फिरे अकेला अलख अलख कर जपता है

एक अप्सरा सामें उभी जी, दूजी सूरमा हो सारे है
तीसरी रम्भा सेज बिछावे परण्या नहीं कुँवारी है

परण्या पहिले पुत्तुर जाया मात पिता मन भाया है
शरण मच्छिन्दर गोरख बोले एक अखण्डी ध्याया है

1 comment:

Mayur said...

आपका ब्लॉग मुझे बहुत अच्छा लगा,आपकी रचना बहुत अच्छी और यहाँ आकर मुझे एक अच्छे ब्लॉग को फॉलो करने का अवसर मिला. मैं भी ब्लॉग लिखता हूँ, और हमेशा अच्छा लिखने की कोशिश करता हूँ. कृपया मेरे ब्लॉग www.gyanipandit.com पर भी आये और मेरा मार्गदर्शन करें