Saturday, June 20, 2015

एक मेरी ही नेकी से क्या होता है - पाकिस्तान से आधुनिक कवितायेँ - 10

१९१४  में झंग में जन्मे मजीद अमजद ने लाहौर में शिक्षा पाई. एक पत्रकार के रूप में उन्होंने अपना करियर शुरू किया. कुछ दिन तक उरूज का सम्पादन किया. फिर सरकारी नौकरी की और असिस्टेंट फ़ूड कंट्रोलर के पद से रिटायर हुए. चौथे दशक के उर्दू कवियों की फेहरिस्त में उनका नाम काफी ऊपर है. जीवनकाल में उनका एक संग्रह शबे रफ़्ता प्रकाशित हुआ. संकलित रचनाएं १९७४ में उनकी मृत्यु के बाद छप कर आईं.  

स्वीडिश चित्रकार पिया एरलांदसन के पेंटिंग


फ़र्द

-मजीद अमजद 

इतने कड़े वसीअ निजाम निज़ाम में सिर्फ़ एक मेरी ही नेकी से क्या होता है
मैं तो इससे ज़्यादा कर ही क्या सकता हूँ
मेज़ पर अपनी सारी दुनिया - काग़ज़ और क़लम और टूटी फूटी नज़्में 
सारी चीज़ें बड़े क़रीने से रख दी हैं
दिल में भरी हुई हैं इतनी अच्छी अच्छी बातें:
उन बातों का ध्यान आता है तो ये सांस बड़ी ही बेशबहा लगती है
मुझको भी तो कैसी कैसी बातों से राहत मिलती है
मुझको इस राह में सादिक़ पाकर
सारे झूठ मेरी तसदीक़ को आ जाते हैं
एक अगर मैं सच्चा होता 
मेरी इस दुनिया में जितने क़रीने सजे हुए हैं
उनकी जगह बेतरतीबी से पड़े हुए कुछ टुकड़े होते
मेरे जिस्म के टुकड़े, काले झूठ के चलते आरे के नीचे!
इतने बड़े निज़ाम से मेरी नेकी टकरा सकती थी 
अगर इक मैं सच्चा होता!

(फ़र्द: एक आदमी, वसीअ: फैला हुआ, बेशबहा: मूल्यवान, तसदीक़: पुष्टि)  

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