अमेज़न! अमेज़न!!
- राजेश जोशी
(पेशे से पत्रकार और उन्मुक्त सैलानी राजेश जोशी काफी समय
जनसत्ता के संपादकीय में रहे. लातीनी अमेरिका की भरपूर सैर की. वे एक वास्तविक
पहाड़ी है,
विचरण करने वाला. कभी हम उनकी क्यूबा यात्रा भी छापेंगे. इन दिनों
बीबीसी हिन्दी में सेवारत है. अंग्रेजी आउटलुक में भी रहे और काफी समय लंदन में.
-'पहल' में छपा राजेश जोशी का परिचय)
हवा
की तेज़ सनसनाहट अब भी कानों में गूँजती महसूस होती है. इस सनसनाहट में बच्चों की
किलकारियाँ घुलमिल जाती हैं. स्मृति के किन्हीं विस्मृत कोनों से आती हुई ये ध्वनि
तरंगें कभी तेज़ तो कभी मद्धम हो जाती है, जैसे साँझ ढले पहाड़ी गाँव के
किसी छोर पर धीमी आवाज़ में कोई रेडियो बज रहा हो.
ये
ध्वनियाँ,
आकाश में घुमड़ते बादलों का गहरा सलेटी रंग और उसके पीछे फैला उजास,
अचानक टिन की छत पर आकर टकराने वाली मोटी मोटी बूँदों की दनदनाहट,
मीलों दूर से अमेज़न नदी के विस्तार को पार कर आने वाली ऊँची ऊँची
लहरें, फिर अचानक दबे पाँव पसर जाने वाली असीम शांति जिसमें
सत्रह हज़ार क़िस्म की चिडिय़ों का चहचहाना ही सुनाई पड़े. बिना बताए शरमाती हुई सी
निकल आई धूप, फिर उसका उग्र होता मिज़ाज और उस गर्म मिज़ाज को
समझाती बुझाती अमेज़न के जंगलों से निकल कर आने वाली सरसराती, अच्छी हवा और इन जंगलों में आबाद अच्छे लोग.
अमेज़न
के जंगलों से लौटे पूरे आठ बरस बीत चुके हैं, लेकिन ये स्मृति बिंब धूमिल
नहीं पड़े हैं. डर है कि अमेज़न के ये बिंब कुछ सालों बाद कहीं सिर्फ़ स्मृति में ही
बचे न रह जाएँ.
इन
बरसों में अमेज़न के बारे में लगभग रोज़ाना बुरी ख़बरें छपती रही हैं. लंदन के
गार्डियन अख़बार ने 2008 में ख़बर छापी कि सिर्फ़ अगस्त के महीने में अमेज़न के 756
वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में जंगलों का सफ़ाया कर दिया गया. यानी सिर्फ़ एक महीनें में
ही नैनीताल के जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क से लगभग डेढ़ गुना ज्यादा जंगल आरा मशीनों
की भेंट चढ़ा दिया गया है. जंगल काटे जाने की ये रफ़्तार अगस्त 2007 के मुकाबले 228
प्रतिशत ज़्यादा है. विडंबना ये है कि अमेज़न
के बारे में जब जब बातें होती है तब तब लगभग सभी के दिमाग़ में वहाँ काटे जा रहे
जंगलों और बरबाद हो रहे वन्य जीवन की चिंता होती है. वहां अपना अस्तित्व बचाने के
लिए लड़ रहा आदमी कौतूहल का विषय तो होता है, चिंता का शायद नहीं. लेकिन
दुनिया के बड़े और चमकदार बाज़ार के शिकार सिर्फ़ जंगल और जानवर ही नहीं हैं. इन
जंगलों में सदियों से रहने वाले मूल निवासी धीरे-धीरे करके बाज़ार की बेदी पर काटे
जा रहे हैं. (कृपया इस मुहारवे को अनावश्यक अतिरेक न समझा जाए. क्रूरता और अन्याय
की पराकाष्ठा को प्रकट कर पाने में अक्सर डरावने मुहावरे भी नाकाम रहते हैं).
अमेज़न के आदिवासी भी ठीक उसी तरह अपने जंगल, अपनी नदियाँ और
अपनी जीवन शैली को बचाने के लिए लगभग आख़िरी प्रयास कर रहे हैं, जैसे नर्मदा घाटी, झारखंड, छत्तीसगढ़
या नियामगिरि के मूल निवासी.
अमेज़न
की सहायक शिंगू नदी पर ब्राज़ील की सरकार बेलो मोन्टे बांध बनाने जा रही है जिसे उस
नदी पर निर्भर जुरूना आदिवासी अपने अस्तित्व के लिए ख़तरा मानते हैं. मात्तो ग्रोसो
राज्य में आदिम जनजाति एनावेने नावे प्रगति और विकास के हमले से ख़ुद को बचाने के
लिए आंदोलनरत है. पारा राज्य में मूल निवासियों को उनकी ज़मीन और उनके जंगलों से
खदेडऩे के लिए बड़ी कंपनियाँ, बड़े एक्सपोर्टर, उनके
विद्वान अर्थशास्त्री और उनके बंदूकधारी पूरी निर्ममता और एकजुटता के साथ काम कर
रहे हैं. पिछले एक दशक में यहाँ जनजाति अधिकारों और उनकी संपदा के लिये लडऩे वाले
कई लोगों की हत्याएँ की जा चुकी हैं. क्रिस्टोफ़र कोलंबस के नई दुनिया में क़दम रखने के साथ लातीनी अमरीका की आदिम
जनजातियों और इंडियन समुदाय के लोगों के व्यापक विनाश की शुरूआत हुई थी. ये विनाश
आज पाँच सौ साल बाद भी जारी है. तरी क़े ज़रूर बदल गए हैं.
सीमाओं
में बाँट दी गई इस दुनिया का सौभाग्य तो कुछ राष्ट्रों ने अपनी हदों में समेट लिया
है लेकिन इसके दुर्भाग्य को सीमाओं में नहीं बाँधा जा सकता है. मौसम की मार, तूफ़ान,
सूखा और बाढ़ किसी एक देश की सीमा में बँधे नहीं रह सकते. शायद इस
वजह से भी अमेज़न हमारी चिंता का विषय भी होना चाहिए.
*
* *
पाँच
मई दो हज़ार आठ की शाम को साँओ पालो हवाई अड्डे से तीन घंटे की उड़ान के बाद मनाऊस
पहुँचा. अमेज़न के जंगलों के विस्तार का अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि
इस दौरान ज़्यादातर समय जहाज़ सिर्फ़
जंगलों के ऊपर ही उड़ता है. मनाऊस के बारे
में पहले से ही बताया गया था कि अमेज़ोनिया प्रांत का ये शहर ठीक जंगल के बीच बसा
हुआ है और यहाँ हर तरह की आधुनिक सुख सुविधा मौजूद हैं - शॉपिंग मॉल्स से लेकर
कारों के शो रूम और नाइट क्लब वगैरह. लेकिन फिर भी जंगल के बीच बस्ती की मेरी
कल्पना में मनाऊस एक ऊँघता सा क़स्बा था
जहाँ ज़्यादा से ज़्यादा एक मुख्य सड़क, कुछ
छोटी दुकानें और जंगल के किनारे दूर दूर बने कुछ छोटे छोटे घर होंगे. रात गहराई
हवाई अड्डे से होटल तक पहुंचने में ये भ्रम थोड़ा बहुत बना रहा. दूसरे दिन तड़के
उठकर दस मंज़िले होटल की छत पर गया तो भौंचक रह गया. साफ़ सुधरी चौड़ी सड़कों पर
कारों के काफ़िले, बीस-बीस मंज़िला इमारतें, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दफ़्तर - यानी मेरे चारों ओर एक अत्याधुनिक शहर
था मौजूद जिसे मैं अपनी कल्पना में एक ऊँघते
क़स्बे की तरह देख रहा था. कोई डेढ़ सौ साल पहले मनाऊस वा क़ई एक ऊँघता
हुआ क़स्बा रहा होगा जब पुर्तगाली औपनिवेशक
शासकों ने यहाँ के जंगलों से रबड़ का दोहन शुरू किया. यहां से रबड़ को जहाज़ों के
ज़रिए विदेशों में लेजाकर बेचा जाता था. कुछ ही वर्षों में मनाऊस अमेज़ोनिया प्रांत
के सबसे बड़े व्यापारिक केंद्र के तौर पर उभरा, तय कार्यक्रम
के मुताबिक बीबीसी की टीम को रियो नेग्रो यानी काली नदी के तट पर पहुंचना है.
मनाऊस शहर के पहलू को छूती हुई बहने वाली रियो नेग्रो का पानी वास्तव में काला है.
कुछ मील बाद जब रियो नेग्रो अमेज़न से मिलती है दोनों नदियों की धाराएं बिना
घुलेमिले बहुत दूर तक साथ साथ बहने वाली काली सफ़ेद सामानांतर पट्टियों जैसी दिखती
हैं. रियो नेग्रो के तट पर खड़ी है सात छोटे छोटे चेम्बरों वाली हमारी मोटरबोट दोम
नोस्त्रे, जो अपने आप में एक छोटा मोटा संयुक्त राष्ट्र है.
वियतनाम और इंडोनेशिया से लेकर चीन, यूक्रेन, पर्तगाल, पाकिस्तान और भारत सहित कम से कम बारह देशों
के लोग अगले कई दिन तक इस नाव में साथ साथ सफ़र करने वाले हैं. खाने, पीने, सोने और यहाँ तक कि रेडियो प्रसारण और इंटरनेट
के लिए ख़बरें भेजने का तकनीकी इंतज़ाम भी मोटरबोट में ही मौजूद है.
दोम
नोस्त्रे के कप्तान फ़र्नादो साबीनो अपने सफ़ेद बालों की तरफ़ इशारा करते हुए कहते
हैं कि मैंने बचपन से इस नदी को देखा है और अब मेरे बाल सफ़ेद हो चुके हैं. यात्रा
शुरू करने से पहले फ़र्नान्दो एक प्रार्थना गीत गाते हैं जिसमें ईश्वर से नाव को
बचाए रखने की दुआ की जाती है:
सेंग्योर!
स्टो
ज़ियाँची ज़िमाइस उमा वियाज़ी.
एओ पैसो
असुआ प्रोते साँउ,
पारा
केनादा अकाउंतेसा,
से ज़ो
ओ
सेंग्योर.
अज़ी
रिज़ीर ओबार्को कोमीगो. आमोन.
हे
ईश्वर
मैं एक
नई यात्रा शुरू कर रहा हूँ.
मैं
प्रार्थना करता हूँ कि हम सुरक्षित हों,
हे
ईश्वर,
मेरे साथ तू भी ये नाव चला. आमीन!
*
* *
मोटरबोट
का इंजन अचानक बहुत तेज़ी से भकभकाता है और एक हलके झटके के साथ हम तट छोड़ देते
हैं. रियो नेग्रो में पानी का पारावार नहीं है. गहरे काले-कत्थई रंग की लहरों को
चीरते हुए नाव बहुत तेज़ी से आगे बढ़ रही है. उसकी रफ़्तार का अंदाज़ा तभी लगता है जब
पीछे छूटती हुई मनाऊस की इमारतों पर नज़र पड़ती है. आगे दूर दूर तक पानी का
विस्तारऔर दूर क्षितिज में जंगलों के झुरमुट का बस आभास मात्र.
अगर
नाव डूबने लगे तो क्या करना होगा? तैरना तो थोड़ा बहुत आता है लेकिन इतना
नहीं कि सागर जैसी नदी पार करके किनारे लग सकें. सुरक्षा की ज़िम्मेदारी कॉलिन
परेरा की है. कॉलिन ने अपनी बात को बिना नाटकीय अंदाज़ में एक सपाट बयान की तरह पेश
किया जिससे लोग आश्वस्त होने की बजाए थोड़ा और सजग और संजीदा हो गए हैं. सबको
बताया गया कि सेफ़्टी जैकेट्स कहां हैं और उनका इस्तेमाल कैसे किया जाए. अगर गए रात
नींद में आसपास पानी पानी महसूस हो तो कैसे लाइफ़ जैकेट पहनी जाए, आग लग जाए तो सबसे पहले क्या करें आदि. फिर कमान सँभालते हैं पत्रकार
एडसौं पोर्तो. वो ख़ुद ब्राज़ील के रहने वाले हैं और पहले भी अमेज़न की यात्रा कर
चुके हैं.
एडसौं
सबसे पहले ये ग़लतफ़हमी दूर करने की कोशिश करते हैं कि अमेज़न में सिर्फ़ जंगल हैं और
कुछ नहीं. वो बताते हैं कि इन जंगलों के बीच में ज्ञात अज्ञात जातियों-जनजातियों
के कुल मिलाकर ढाई से तीन करोड़ लोग आबाद हैं. बीच बीच में हमें छोटी छोटी
बस्तियाँ मिलेंगी,
तैरते बाज़ार मिलेंगे और उन बाज़ारों में ज़िंदा जंगली जानवर बेचने
वाले भी होंगे. हमें हिदायत दी गई है कि घडिय़ाल के बच्चे, कछुए,
सुंदर चिडिय़ाएं बेचने वालों से कुछ न ख़रीदा जाए क्योंकि ऐसे ही
छोटे छोटे कामों से भी अमेज़न में जीवन की विविधता खत्म हो रही है. हालाँकि अमेज़न
के गले में दाँत गड़ाने के लिए असली जिम्मेदार हैं अरबों डॉलरों वाली राष्ट्रीय और
बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, सोयाबीन के दानवाकार फ़ार्म, माँस उत्पादन करने के लिए जंगल काटकर हज़ारों हेक्टेअरों में गाय बैल पालने
वाले गोमांस निर्यातक और आरा मशीनों के मालिक. ये सब बिना रुके, दिन रात अमेज़न को खोखला कर रहे हैं.
(जारी)
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