(पिछली किस्त से आगे)
बहुत
साल नहीं बीते हैं जब अमेज़न के जंगल पूरे पचास लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले
हुए थे. ये आँकड़ा सन् 2001 का है. यानी पूरे भारत के क्षेत्रफल से डेढ़ गुना ज़्यादा इला क़े में यहाँ जंगल मौजूद थे. सन्
2008 आते आते इसका 13 प्रतिशत जंगल इंसान निगल चुका है. जितने क्षेत्रफल में
फ्रांस और जर्मनी फैले हैं उतने जंगल इस दौर में साफ़ कर दिए गए हैं. जब जब इस
दुनिया के मौसम को लेकर चिंतित लोगों की ओर से दबाव पड़ता है, ब्राज़ील
की सरकार तमाम तरह की योजनाओं-परियोजनाओं का ऐलान कर देती है. सरकार लगातार ये
दावा भी कर रही है कि अमेज़न के वर्षावनों के कटने की रफ्तार कम हुई है. फिर भी
2007 के शुरुआती सिर्फ़ पाँच महीनों में ही पाँच हज़ार वर्ग किलोमीटर जंगलों का और
सफ़ाया कर दिया गया है. और इसी साल अगस्त का आँकड़ा तो आप ऊपर पढ़ ही चुके हैं कि
इन तीस दिनों में साढ़े सात सौ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के वर्षावनों को काटकर समतल
किया जा चुका हैं.
किसके
पेट में जा रही है क़ुदरत की ये नेमत? और
क्यों?
वैज्ञानिक
और पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वालों ने इसका गहरा अध्ययन किया है. वो बताते
हैं माँसाहार की बढ़ती आदत इसका एक बड़ा कारण है. बाज़ार में अगर रोज़ाना टनों माँस
सप्लाई न हो तो हाहाकार मच जाए. बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने अमेज़न के ख़ज़ाने का स्वाद
चख लिया है. उनकी आरा मशीनें जंगलों में घुसकर टीबी के कीटाणुओं की तरह बहुत तेज़ी
से धरती के इन फेफड़ों को कुतर रही हैं. कई जंगलों पर बेतहाशा खनन चल रहा है ताकि
बड़े-बड़े शहरों और क़स्बों में रहने वालों
की ज़रुरतें पूरी की जा सकें. उनकी माँग को पूरा करने के लिए माँस कहाँ से आएगा? शहरों
में जानवर नहीं पाले जा सकते. इसलिए बरसों से खड़े निरीह वर्षा वनों को काटा जाता
है ताकि ख़ाली जमीन पर पशुफ़ार्म बनाकर जानवरों को छोड़ा जाए. सोयाबीन की खेती का
बढ़ता चलन और बाज़ार में उसकी बढ़ती क़ीमत
इसका दूसरा कारण है. ये सोयाबीन गाय बैलों और सुअरों की खिलाया जाता है और फिर
उन्हें काटकर माँस निर्यात किया जाता है. बाज़ार की बहती गंगा में हाथ धोकर मोटा
मुनाफ़ा कमाने वाले सोया-राजा अमेज़न के जंगलों पर कुल्हाड़ी चला रहे हैं और सोया
उगाने के लिए खेत बना रहे हैं. हज़ारों हज़ार हेक्टेयर जंगल लगातार कट रहे हैं. हर
क्षण. इस वक़्त भी जब आप पहल के इस अंक को पढ़ रहे हैं.
*
* *
आकाश
लगभग साफ़ है. चटख धूप निकली हुई है और दोम नेस्त्रो पर लगाया गया ब्राज़ील का झंडा
अमेज़न की हवाओं में फरफरा रहा है. भारत में अमेज़न के विस्तार की तुलना सिर्फ
ब्रह्मपुत्र नदी से हो सकता है, वो भी चौमास की बाढ़ से लबालब भरी
ब्रह्मपुत्र जो कुछ जगहों पर सागर सा रूप धर लेती है. अमेज़न में सफ़र करने पर ये
महसूस नहीं होता कि आप किसी नदी में जा रहे हैं. मीलों चौड़ी नदी में कई बार लगता
है कि आपकी नाव जैसे चारों ओर से जंगलों से घिरे किसी सागर में तिर रही हो.
पूरे
सात घंटे तक सफ़र करने के बाद कप्तान फ़र्नादो बताते हैं हम एक फ़्लोटिंग मार्केट
(तैरते बाज़ार) पर रुकने जा रहे हैं. कुछ ही समय बाद मोटरबोट की रफ़्तार पहले कम हुई
और फिर वो बीच धारे से किनारा काटने लगी. दूर नदी किनारे बस्ती साफ़ दिख रही है.
हमें बताया गया कि ये स्थानीय लोगों के लिए सुपरमार्केट है. लोगों ने इस जगह का
नाम रख दिया है हार्ट ऑफ जीसस - यीशु का दिल. यहां लकड़ी की छोटी छोटी नावों में
पीछे एक सस्ती सी मोटर लगाकर उन्हें यातायात के सबसे सस्ते और सुलभ साधन के रूप
में इस्तेमाल किया जाता है. शहरों में जैसे लोग बड़ी दुकानों के सामने अपनी कारें
या स्कूटर आदि पार्क कर देते हैं, उसी तरह ख़रीदारी करने पहुँचे लोग अपनी
अपनी नावें किनारे बांधकर यहां के एक तैरते स्टोर से ज़रूरत का सौदा सुलफ़ ख़रीदते
हैं और नाव में रखकर मोटर की तेज़ रफ़्तार से अमेज़न की सहत पर फिसलते से अपने घरों
को लौट जाते हैं. अमेज़न यहाँ का हाईवे है और उसके साथ साथ बहने वाली सैकड़ों छोटी
छोटी धाराएँ जैसे गली-कूचे.
पूरे
अमेज़न के वनों में कई जगहों पर नदी के किनारे किनारे लोगों ने घर बसा लिए हैं. घने
जंगलों के अंदर रहने वाली जनजातियों का अपना अलग पूरी तरह आत्मनिर्भर समाज है. कई
ऐसी जनजातियाँ इन जंगलों में रहती हैं जिनका आज तक बाहरी दुनिया से कोई संपर्क
नहीं हुआ है. लेकिन जब कानूनी-गैर क़ानूनी तरीके से खनन के लिए कंपनियाँ जंगलों में
भीतर तक रास्ते बनाती हैं,
मशीनें ले जाती हैं तो उनके कर्मचारी अपने साथ कुछ ऐसे कीटाणु भी ले
जाते हैं जो अमेज़न की इन जनजातियों के लिए घातक साबित हो सकते हैं.
फ़िलहाल
शाम ढलने को है और गुरु गंभीर अमेज़न शांत भाव से बह रही है. जैसे कि वो युगाब्दों
में बहती आ रही है. पीने वालों ने अपने हाथों में कापिरीन्या (ब्राज़ील की सफ़ेद रम, नीबू
और चीनी मिलाकर बनाया गया पेय) के जाम या बीयर के टिन ले लिए हैं. सब लोग काम ख़त्म
करके अपनी अपनी तरह से अमेज़न के लगातार बदलते और गहराते रंगों को देख रहे हैं.
रात
से ही आकाश मेघाच्छादित था. अमेज़न की मीलों फैली पनीली सतह पर लगातार मेह बरसता
रहा. दूर दूर तक बारिश के रेले पर रेले उड़ते रहे, इस धरती के गहरे हरे
रंग को सलेटी मटियाली चादर में लपेटते से. इस सलेटी चादर के पार दूर जंगलों में
भाप उठती सी दिखाई देती है. नाव का इंजन तेज़ आवाज़ करते हुए भकभका कर ख़ामोश हो गया
है. इंज़न की आवाज़ सुनते हुए सोने की आदत पड़ चुकी है इसलिए उसके शोर से नहीं बल्कि
इंजन बंद होने पर अचानक पसरी ख़ामोशी से नींद खुल गई. हमें अमेज़न के आरक्षित इला
क़ों में जाना है जहाँ सरकार ने जंगलों के बीच में लोगों को बसाया है. इन जंगलों की
हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी उन्हीं लोगों पर होती है. जंगल न काटने के एवज में सरकार
यहां बसे परिवारों को कुछ पैसा भी देती है. ये आरक्षित इला क़े अमेज़न की मुख्य धारा
से दूर अंदर हैं जहाँ छोटी नावों के ज़रिए ही पहुँचा जा सकता है. इसलिए हमें अपनी
बड़ी मोटरबोट अमेज़न में ही छोड़नी होगी.
(जारी)
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