Wednesday, March 7, 2018

इस तरह रोज तुम्‍हारे सपनों का घर खड़ा किया

अत्र कुशलम तत्रास्तु
- नवीन सागर

सितारे जब अकेले
छूट जाते हैं आसमान के साथ दूर
बत्तियॉं बुझी होती हैं
और दिन भर की नींद हमारी
टूटती है बिस्‍तरों पर
तो अंधेरे में चुपचाप लगता है मुझे
न जाने कौन लेटी हो तुम!

क्‍योंकर
बंद दरवाजे के आर-पार रह गए
एक दूसरे में मर कर
मृत्‍यु के इस पार!

चिट्ठी लिख रहे हैं
मॉं! अत्र कुशलम् तत्रास्‍तु.

एक आदमी घर आता
घर से चला जाता है
वह रह जाती है अकेली
चीजों के बीच जिनमें
उसकी कीमत लिखी है

भीतर से कोई
दस्‍तक दे रहा है बाहर कोई
खड़ा है दस्‍तक दिए
दरवाजा
खुला पड़ा है.

घर गिरा
सुबह से पहले मैंने मलबे का घर
खड़ा किया
मां! इस तरह रोज मैंने

तुम्‍हारे सपनों का घर खड़ा किया.

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