Saturday, August 4, 2018

सोचेंगे तुम्हें प्यार करें कि नहीं

फ़िल्मी गानों की समीक्षा – 3
सोचेंगे तुम्हें प्यार करें कि नहीं

काव्य समीक्षा:
ख़्वाबों में छुपाया तुमको,
यादों में बसाया तुमको”
- कवि द्वारा नायिका का अपहरण कर उसे न सिर्फ सपनों में छिपाया गया है कवि की स्मृतियों में मुल्क में उसका फर्जी पासपोर्ट भी बनवा दिया गया है. इन अपराधों के लिए कवि को इन्डियन पीनल कोड की धाराओं 363 और 369 के तहत सज़ा हो सकती है. बेपरवाही कवियों के स्वभाव में होती है सो इस सब से बेखबर इस कविता का रचयिता इतना बौड़म है कि अपराध कर चुकने के पश्चात विचार करना चाहता है कि जिस मंशा से उसने जुर्म को अंजाम दे दिया वह ठीक थी भी या नहीं –
सोचेंगे तुम्हें प्यार करें कि नहीं.”
और
ये दिल बेकरार करें कि नहीं.”
मल्लब भैया पहले नहीं सोच सकते थे प्यार करना है या नहीं करना है. दिल को बेकरार करना है या नहीं करना है. हो सकता है कवि को भांग-सुल्फा इत्यादि का कुटैव भी रहा हो. जाहिर है ऐसे नशेड़ी-बौड़म कवि के पास मिमियाते हुए अपने अपराध को जस्टीफाई करने और दूसरों की मिन्नत के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं बचता. कविता के दूसरे पैरे में कवि नायिका के सौदर्य इत्यादि के बारे में कंवल, गजल, चाँद का टुकड़ा जैसी घिसी हुई फूहड़ उपमाओं का प्रयोग करता है.
तीसरे पैरा में ज्ञात होता है कि कवि के घरवालों ने उसे डांट-डपट कर नायिका को उसके घर छोड़कर आने को कहा होगा और फिलहाल वह वह ऐसा कर भी आया है अलबत्ता लगातार भविष्यकाल में बात करता हुआ अपनी काली योजनाओं की तफसीलें पाठकों के साथ शेयर करता है. उसकी शब्दावली देखिये – देखेगी, होगा, रखेंगे, भर लेंगे, सुलझाएंगे, भुलाएंगे.
"जिस दिन तुमको देखेगी नज़र
जाने दिल पे होगा क्या असर
रखेंगे तुमको निगाहों में
भर लेंगे तुम्हें बाँहों में
ज़ुल्फ़ों को हम सुलझाएंगे
इश्क़ में दुनिया भुलाएंगे"
नायक संभवतः बेरोजगार है और घर पर रहकर अपने बाप की कमाई रोटी तोड़ा करता है. 363 और 369 के के बारे में उसे शायद किसी ने बता दिया है सो कविता की अंतिम पंक्ति में वह अपने बौड़मपन और नायिका के न मिल सकने की वास्तविकता के साथ समझौता करता हुआ अपनी औकात पर आकर अपनी वर्तमान परिस्थिति को स्वीकार कर लेता है – “ये बेकरारी अब तो होगी न कम.”
कवि को बताया जाना चाहिए कि बेटा बेकरारी कम कभी न होत्ती. दो महीने पहले टूटी टांग का पलस्तर अस्पताल जाकर कटा तो आये हो, दरद होत्ता रहेगा.
वीडियो रिव्यू: मोहल्ले के किसी ऐसे मुटाते हुए प्रौढ़ लौंडे टाइप के आदमी को काला चश्मा पहना कर उसके हाथ में उलटा गिटार (*गिटार न हो तो हारमोनियम या संपेरे की बीन या बैंडपार्टी के साथ चलने वाला झुन्ना भी चलेगा) थमा कर नायक बना दिया जाय जो बात-बात पर अपने ज़माने की पूनम ढिल्लों या किम्मी काटकर के नामों का जाप करने लगता हो - बताया जाता है ऐसा कवि ने अपने फुटनोट्स में लिखा था सो यही किया गया है. ऊपर से पिच्चर में नायक को सफ़ेद सूट पहनाया गया है. नायिका दर्शकों में बैठी हुई मंद-मंद मुस्करा रही है और उसकी मुस्कान का स्रोत इस तथ्य में निहित है कि घर पर जीजाजी आये हुए हैं और उन्होंने कह रखा है कि शाम को सारी बच्चापार्टी को आगरा चाट वाले के यहाँ गोलगप्पे दबाने ले चलेंगे.
दरअसल यह होली के समय गाई जाने वाली टुन्न-कविता है. बेहतर होता नायक को होली के रंगों में रंगा पुराना और फटा हुआ सफ़ेद कुर्ता-पाजामा पहना कर हुड़दंग मचाते समूह का नेतृत्व करते नायिका की गली में दिखाया जाता. इससे बौड़म कवि द्वारा भांग का सेवन कर लिया जाना भी न्यायोचित लगता और मोहल्ले के खड़ूस बुड्ढों को सबक सिखाने की नीयत से छत से कीचड़ से भरी बाल्टी रखे नायिका को कुछ एक्शन करने का अवसर मिलता. पिच्चर की स्पीड बढ़ती. यह अलग बात है कि नायिका जैसे ही नायक पर कीचड़ फेंकने को होती है उसके जीजाजी पीछे से आकर उसके गालों में नजीबाबाद से लाया हुआ असली मार्का सफेदा पोत जाते हैं.
क्षमा करें होली का नाम सुनते ही इन पंक्तियों का लेखक भावुक हो जाता है और उसके मानसपटल पर होलिका-प्रेरित उन तमाम फिल्म-कविताओं की पंक्तियाँ और उन पर रचित दृश्य गड्डमड्ड होने लगते हैं जिन्हें वास्तविकता में गा या परफॉर्म सकने की इच्छा लिए-लिए न जाने कितने कवियों की पीढ़ियां आगरा चाट भण्डार के सामने दम तोड़ गईं.

मल्लब आखिर क्यों? यही तुम्हारा ईमान है?

No comments: