Tuesday, November 13, 2007

पारसी क्रिकेट और हारे हुए अंग्रेज़ खिलाड़ियों की कविता




करीब करीब तीन सौ साल पहले (१७२१ में) भारत में पहला क्रिकेट मैच खेले जाने के प्रमाण उपलब्ध हैं, पहला टेस्ट मैच अलबत्ता भारत ने १९३२ में खेला था। १७२१ से १९३२ के बीच के दौर में भारत में क्रिकेट को लेकर बहुत ज्यादा दस्तावेज़ नहीं मिलते। क्रिकेट के लिए इस देश की दीवानगी के बावजूद यह बहुत दुखी करने वाला तथ्य है कि आम भारतीय क्रिकेटप्रेमी को इस खेल के इतिहास में ज्यादा दिलचस्पी नहीं है। फिलहाल कबाड़ी आप के लिए एक दिलचस्प मसाला लाया है।

१९३२ से ४६ साल पहले यानी १८८६ में बंबई से पारसी खिलाड़ियों की एक टीम ने इंग्लैंड का दौरा किया था। भारत में क्रिकेट को लोकप्रिय बनाने का काम पारसियों ने ही किया था। पारसी स्कूलों में बच्चों को १८३९ से ही क्रिकेट प्रशिक्षण दिया जाता था। १८४८ में बंबई में 'ओरिएंटल क्रिकेट क्लब' की स्थापना की गई थी। १८७६ में ए बी पटेल ने पारसी क्रिकेट क्लब शुरू किया और 'बौम्बे जिमखाना' (जिसके सदस्य केवल अंग्रेज़ हुआ करते थे) के साथ एक मैच खेल पाने में कामयाबी हासिल की। पारसी टीम ६३ रन से हार गई लेकिन ए बी पटेल को इस मैच के बाद एक विचार सूझा। वे चाहते थे कि भारत से एक टीम इंग्लैंड का दौरा करे।

यह स्वप्न १८८६ में पूरा हुआ और डाक्टर डी एच पटेल की कप्तानी में १५ खिलाड़ियों का दल इंग्लैंड के लिए रवाना हुआ. २४ मई १८८६ को लौर्ड शेफील्ड की टीम से पहला मैच था। पूरे दौरे में पारसी टीम का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा। कुल २८ मैच हुए। पारसी टीम सिर्फ एक मैच जीत पाई। ८ मैच ड्रा हुए और १९ में उन्हें शिकस्त मिली। लेकिन १८८८ में पी डी कांगा की कप्तानी में इंग्लैंड का दौरा करने वाली पारसी टीम ने ३१ मैच खेले: आठ जीते और बारह हारे। यह पिछले दौरे से कहीं बेहतर प्रदर्शन था।

३ और ४ अगस्त १८८८ को बौर्नमाउथ में जेंटलमैन ऑफ़ बौर्नमाउथ के साथ मैच खेला गया। जेंटलमैन ऑफ़ बौर्नमाउथ सकी टीम पहली पारी में ५६ पर आउट हो गई। जवाब में पारसियों ने ६१ रन बनाए। जेंटलमैन ऑफ़ बौर्नमाउथ की टीम दूसरी पारी में फकत ४१ रन बना सकी। पिच बहुत घातक थी लेकिन पारसियों ने ज़बरदस्त खेल दिखाया और चौथी पारी में जीत के लिए ज़रूरी ३७ रन चार विकेट खो कर बना लिए। इस हार से बुरी तरह खिन्न एक अंग्रेज़ फैन ने निम्नलिखित कविता रची:

The Heathen Parsees

Now I wish to remark, and my language is plain,
That for ways that are dark, and for tricks that are vain,
The Heathen Parsee is peculiar, and the same
I would like to explain.

It was August the third, and soft were the skies,
Which it might be inferred, the Parsees were likewise,
But they playedit that day upon Bournemouth,
in a way for to open our eyes.

When we had a small game with the artful Hindoo
It was cricket the same, to Parsees something new,
For they had come all the way from Calcutta
to pick up a wrinkle or two.

And the balls that they bowled, with ineffable glee
And the yorkers that told, were quite frightful to see,
Till we Bournmouths looked at each other, and said
"How on earth can this be."

Then the Parsees went in and we gave them a shout,
And pulled up our slacks, for to bundle them out,
But the foreigner were not to be beaten, and that Cooper*
He knocked us all out.

Then we rose in our places, and said all disgusted
These Indian races are not to be trusted,
For we thought we had got a soft thing on,
and so! We were utterly butted.


*आर डी कूपर: पारसी टीम के मध्यक्रम के बल्लेबाज़। १८८८ के दौरे में कूपर का बैटिंग औसत दोनों टीमों में सर्वश्रेष्ठ था। उन्होने ५२ पारियों में १८.३० की औसत से ९५२ रन बनाए।

4 comments:

siddheshwar singh said...

बाबूजी , क्या-क्या माल लाते हो ।
हमें भी बताओ कहां-कहां से निकाल लाते हो ?

स्वप्नदर्शी said...

bada badiyaa kabaad hai!!!

Tarun said...

क्या जबरदस्त कबाड़खाना है, अब तो बार बार यहाँ आना है।

ghughutibasuti said...

कबाड़खाने में बड़ा जबर्दस्त माल पड़ा है ।
घुघूती बासूती