Wednesday, June 18, 2008

मेंहदी से लिख दो री हाथ पे सखियो मेरे संवरिया का नाम


अपनी अद्वितीय आवाज़ और अलग क़िस्म की अदायगी के लिए विख्यात ताहिरा सय्यद को आप कबाड़ख़ाने पर पहले भी सुन चुके हैं. बेग़म मल्लिका पुखराज की इस योग्य सुपुत्री से एक मीठा सा मंगल गीत



और हफ़ीज़ जालन्धरी साहब एक ग़ज़ल:



बेज़बानी ज़बां न हो जाए
राज़-ए-उल्फ़त अयां न हो जाए

इस क़दर प्यार से न देख मुझे
फिर तमन्ना जवां न हो जाए

लुत्फ़ आने लगा जफ़ाओं में
वो कहीं मेहरबां न हो जाए

ज़िक्र उनका ज़बान पर आया
ये कहीं दास्तां न हो जाए

ख़ामोशी है ज़बान-ए-इश्क़ 'हफ़ीज़'
हुस्न अगर बदगुमां न हो जाए

7 comments:

Alpana Verma said...

pahli baar suna hai in ko aur in ka naam bhi pahli baar suna hai--

In gayan bahut hi khuubsurat hai aur bahut pasand aaya..

shukriya tahira ji se milwane ke liye.

sanjay patel said...

ताहिरा आपा की आवाज़ की ख़ुशबू ने मन के मंडप में मेहंदी रचा दी दादा.

रंजू भाटिया said...

बहुत सुंदर

pallavi trivedi said...

beautiful...

Unknown said...

Good selection.
हफीज़ जालंधरी की यह ग़ज़ल पहले बेगम अख्तर की आवाज़ में सुनी थी पर यह version भी सुंदर है |

Udan Tashtari said...

अर्रर्रर्र...........गजब भाई...आनन्द आ गया..मेंहदी से लिख दो...क्या बात है, वाह!!!

deepak sanguri said...

abhi abhi sun paya hoon,

khus kitta..abhaar dada..