Thursday, June 19, 2008

अक्सर शब-ए-तन्हाई में, कुछ देर पहले नींद से

रेशमा से ज़्यादातर भारतीयों का परिचय १९८३ में फ़िल्म 'हीरो' में गाये उनके अविस्मरणीय गीत 'लम्बी जुदाई' से हुआ था. उसके क़रीब बीस साल बाद उन्होंने भारतीय फ़िल्मों में दुबारा गाना शुरू किया. उसके पहले उन्होंने कुछेक अल्बम भी यहां रिलीज़ किये थे. बहुत थोड़े समय तक बाज़ार में रही 'वेस्टन' कम्पनी ने उनके दो शानदार अल्बम निकाले थे. एक का नाम था 'दर्द'. इसमें उन्होंने कुछ उम्दा ग़ज़लें गाई थीं जैसे - 'लो, दिल की बात आप भी हम से छुपा गए'. दूसरा वाला पंजाबी लोकगीतों का था. 'साड्डा चिड़ियां दा चम्बा वे' मुझे उस से ज़्यादा मीठा किसी और आवाज़ में सुन चुके होने की स्मृति नहीं है. दुर्भाग्यवश ये दोनों अब मेरे पास नहीं हैं.

ख़ैर. जब रेशमा जी पांचेक साल पहले भारत आई थीं तो उनसे एक पत्रकार ने पूछा:

"क्या आप हमें अपनी पृष्ठभूमि के बारे में कुछ बता सकेंगी ... ख़ास कर के अपने संगीत की जड़ों के बारे में?"

रेशमा जी का जवाब था:

"मेरा जन्म बीकानेर, राजस्थान के एक बंजारा परिवार में हुआ था. जब मैं छोटी ही थी, हमारा परिवार पाकिस्तान चला गया. मुझे संगीत की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं मिली. लिखना-पढ़ना मुझे अब भी नहीं आता. चाहे लोकगीत हो. ग़ज़ल हो या फ़िल्मी गाना, मैं उसे अपने दिल से गाती हूं. लेकिन संगीतकारों को मेरे साथ बहुत मशक्कत करनी पड़ती है - मेरे अनपढ़ होने की वजह से मुझे बोल रटाने में उन बिचारों का बहुत समय लगता है.

... हर सुबह की नमाज़ ही मेरा रियाज़ होती है. अल्लाह ने मुझे यह आवाज़ देकर मेहरबानी की है."

डोगरी भाषा की बड़ी लेखिका पद्मा सचदेव ने रेशमा जी पर एक सुन्दर संस्मरणात्मक लेख लिखा है. कभी मौका निकाल कर पढ़वाऊंगा आपको.

इस आवाज़ की कशिश और लरज़ का मैं दीवाना हूं. लुत्फ़ लीजिये

6 comments:

sanjay patel said...

अशोक भाई;
बारिश के मौसम में ऐसी कशिश भरी आवाज़ को सुनना.....सुनने वाले का इम्तेहान है. हाँ ये कहना भी अतिरेकी नहीं होगा कि रेशमा की आवाज़ मे समोया दर्द उस बिरहन का है जिसके पाँव में काँटा चुभ गया है और निकाले नहीं निकल रहा. ज़माने की बढ़ती दुश्वारियों के बीच रेशमा को सुनने के लिये ख़ाली दिल और तमीज़ चाहिये ...ख़ाकसार को उनके साथ रिदम संगत का फ़ख़्र हासिल है ....उस वाक़ये को तस्वीस समेत विस्तार से लिखूँगा...अभी इजाज़त दें..रेशमा आपा को रिवाइंड कर कर के सुनना जो है.

siddheshwar singh said...

रेशमा का एक अलबम(सीडी) मेरे पास है.'दर्द' की आडियो कैसेट मेरे पास थी लेकिन किसी रसिया ने ली और वापस नहीं की. कई बार सोचा कि उसमें से एक रत्न निकाल लिया जय लेकिन आलस्य की वजह से टलत रह. अब यह प्रस्तुति सुनकर तो लग रहा है कि इसी क्रम में एक और प्रस्तुति कर ही दी जाय. क्या खयाल है बाबूजी?

Udan Tashtari said...

बहुत दिन बाद सुना. आज भी ताजा. अक्सर शबे तन्हाई मे...वाह!! रेशमा जी, वाह!!

आभार इसे प्रस्तुत करने का.

शायदा said...

एक बंजारगी सी जगाकर ये आवाज़ फैसला सुना देती है कि अब भागो मेरे पीछे देर तक। आप सुनते हैं बार-बार और फिर सिर्फ सुनते रह जाते हैं, तलब और तलाश हमेशा बाक़ी रह जाती है। उनसे कई मुलाक़ातें हुईं और हर बार मैंने यही पाया। आज भी ऐसा ही लगा। शुक्रिया सुनवाने का।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

रेगिस्तान की धूल उडती रहेगी सदियोँ तक और गूँजती रहेगी रेश्मा जी की आवाज़ ~~~~
क्या गातीँ हैँ सुभानल्लाह !
पद्मा सचदेव जी से मेरी मुलाकात हुई थी -
कयी बार -
वे भी बढिया लिखतीँ हैँ -
अवश्य उनका लिखा भी पढवाइयेगा - अग्रिम शुक्रिया --
- लावन्या

pallavi trivedi said...

shukroya aapka is sundar geet ko sunwane ke liye....reshma ki awaz mein madhosh kar dene walajaadu hai..