Wednesday, March 25, 2009

सारे कैमरे जा चुके दूसरे युद्धों की तरफ़

महान कवयित्री विस्वावा शिम्बोर्स्का की कविता- सीरीज़ की दूसरी कविता प्रस्तुत है.



अन्त और आरम्भ

-विस्वावा शिम्बोर्स्का

हर युद्ध के बाद
किसी न किसी ने चीज़ों को तरतीबवार लगाना होता है.
चीज़ें आख़िर
ख़ुद को उठा तो नहीं सकतीं.

किसी न किसी ने
मलबे को किनारे लगाना होता है
ताकि लाशों से भरी गाड़ियों के लिए
रास्ता बन सके.

किसी न किसी ने गुज़रना ही होगा
गंदगी और राख़,
सोफ़ों के स्प्रिंग,
कांच के टुकड़ों
और ख़ून सने चीथड़ों से हो कर.

किसी न किसी ने लादना होंगे खंभे
दीवार खड़ी करने के वास्ते
किसी ने साफ़ करना होगा खिड़की को
और चौखट में जमाना होगा दरवाज़ों को.

न कोई ध्वनियां, न फ़ोटो खिंचाने के मौके
और यह करने में सालों लग जाने होते हैं
सारे कैमरे जा चुके
दूसरे युद्धों की तरफ़.

पुलों को दोबारा बनाया जाना है
रेलवे स्टेशनों को भी.
आस्तीनें मोड़ी जाएंगी
तार-तार हो जाने तलक.

हाथ में झाड़ू थामे एक कोई
अब भी याद करने लगता है कि यह कैसा था.
एक कोई सुनता है, हिलाता हुआ
अपनी खोपड़ी, जो फूटने से बच गई.
लेकिन आसपास कोलाहल मचा रहे लोगों को
यह सब
तनिक उबाऊ लगेगा.

समय समय पर किसी एक ने
खोद निकालना होगा एक ज़ंग-लगा तर्क
किसी झाड़ी के नीचे से
और उछाल फेंकना होगा उसे मलबे की तरफ़.

उन्होंने
जो इस को तफ़सील से जानते हैं,
रास्ता बनाना होगा उनके लिए
जिन्हें बहुत कम मालूम है.
या उससे भी कम.
और अन्ततः कुछ नहीं से भी कुछ कम.

किसी न किसी को लेटना होगा यहां
घास पर
जो ढंके हुए है
कारणों और परिणामों को
मक्के के पत्ते से छांटा गया तिनका दांतों में दबाए
किसी मूर्ख की तरह बादलों को ताकते हुए.

7 comments:

siddheshwar singh said...

आह !
वाह नहीं कहना है , मुझे
अगर आप और 'कबाड़खाना' न होता तो मैं ये सब कहाँ से देख पाता .
दिव्य !!!!!!

प्रदीप कांत said...

समय समय पर किसी एक ने
खोद निकालना होगा एक ज़ंग-लगा तर्क
किसी झाड़ी के नीचे से
और उछाल फेंकना होगा उसे मलबे की तरफ़.

!!!!

मुनीश ( munish ) said...

Dear Ashok Bhai in a short span of life i've witnessed love and war both and i find the latter more convincing, real and eternal . In modern warfare ,however, therez hardly any romantic appeal which might have been there in ancient times and i think itz going to be worse with the usage of bio-logical weapons . However,the bacterial weapons will spare buildings and bridges and kill humans alone.Hope i don't live longer to witness the satanic scenario.

Ek ziddi dhun said...

दुनिया की महान कविताओं का हिंदी में श्रेष्ठ अनुवाद संजो रहा ब्लॉग।

रंजना said...

आह !! निःशब्द कर देने वाली मार्मिक रचना....इसपर त्वरित टिपण्णी देना असंभव है....

कोटिशः आभार ,पढ़वाने के लिए...

raag telang said...

Ab teesari Duniya ke deshon mein Terrorism Yudhdha ka nakab pahan kar aaya hai.Kala aur Sanskriti par hamle aaj jo ho rahe hain vah iska poorvabhyas hai.Samvednaon ka marana Yudhdha ki sthiti nahin to aur kya hai.Yeh kavita kalakao/lekhako ki aankhen kholti hai.Saadhuvaad.

वर्षा said...

वो मूर्ख ही ठीक जो घास के मैदान पर मुंह में तिनका लिए लेटा देखता है बादलों को